भाजपा अपने गिरेबान में झांकने की कायल नहीं
एक जून यानि शनिवार को लोकसभा चुनाव अंतिम चरण की वोटिंग के साथ निपट गया। ऐसे में इस बार चुनाव प्रचार के दौरान उछले परिवारवाद के मुद्दे पर वोटरों की राय गौरतलब है। जिनका यही सवाल था कि विपक्ष पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी क्या इस सियासी-बीमारी से अछूती है ?
इस मुद्दे पर हिंदी समाचारपत्र दैनिक भास्कर ने भी आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट प्रकाशित कर अहम खुलासा किया। जिसके मुताबिक इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 442 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें से 110 कैंडिडेट ऐसे रहे हैं, जिनके परिवार की कहीं ना कहीं राजनीतिक-पृष्ठभूमि रही है। कहा जा सकता है कि भाजपा के हर चौथे उम्मीदवार का कनेक्शन परिवारवाद से है। इनमें से करीब 70 फीसदी दूसरी पीढ़ी से हैं और करीब 25 फीसदी पहली पीढ़ी से आए।
दूसरी तरफ, कांग्रेस में करीब 30 फीसदी उम्मीदवार राजनीतिक परिवार से हैं, यानि, हर तीसरा उम्मीदवार परिवारवाद से जुड़ा है। यूपी में सपा मुखिया अखिलेश यादव के परिवार के पांच लोग चुनावी मैदान में उतरे। जबकि बिहार में राजद सुप्रीमो लालू यादव की दो बेटियां चुनाव लड़ रही हैं। यहां गौरतलब है कि लालू ने ही परिवारवाद के मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी पर पलटवार किया था। जिसके जवाब में बीजेपी नेताओं ने हम हैं मोदी का परिवार नारा बुलंद किया था।
जहां तक जनता का सवाल है तो इस चुनाव में कहीं- ना कहीं वह पसोपेश में नजर आई। मोदी-भाजपा ने मजबूती के साथ विपक्ष पर परिवारवादी-राजनीति का इलजाम जड़ा था, उससे जनता में भ्रम की स्थिति बनी रही। खैर, अब चुनाव तो निपट चला, लेकिन परिवारवादी राजनीति का सवाल है तो जनता के लिए यह जानना आज भी जरुरी है कि इस मुद्दे पर क्या भाजपा अपने विपक्षियों से अलग है ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर चाल, चरित्र और चेहरा जैसे नारे उछालने वाली भाजपा भी विपक्ष से कोई अलग नही है।
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