देश की राजधानी दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर हादसे के बाद दिल्ली महानगर पालिका निगम सक्रिय हो गयी हैं । एमसीडी ने आधा दर्जन से अधिक भूमिगत निर्माणों पर ताला जड़ दिया है और तमाम निर्माणकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस दे दिए हैं। राजनीतिक दल मिलकर इन हादसों के लिए जिम्मेदार लोगों की तलाश कर रहे हैं और एक-दुसरे पर आरोप – प्रत्यारोप लगाने में अपना पुरुषार्थ दिखा रहे हैं। लेकिन न हमेशा की तरह कोई दोषी मिल रहा है और न मिलेगा।
हकीकत ये है कि हम एक ‘ हादसा-प्रूफ ‘ देश में रहते हैं । यहां आये दिन छोटे-बड़े हादसे होते रहते हैं लेकिन उनके लिए जिम्मेदार लोगों का ,सिस्टम का कभी ,कोई पता नहीं चलता। दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर की कोचिंग संस्था में हुया हादसा इसलिए अभी सुर्ख़ियों में है क्योंकि इस संस्थान में देश की भावी नौकरशाही में शामिल होने के लिए प्रतियोगी युवक मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। ये हादसा प्रकृति जनित है या मनुष्य जनित ये तय करना आसान नहीं है। दिल्ली के उप राज्यपाल ने दिल्ली के कमिश्नर से हादसे के बारे में रिपोर्ट मांगी है। उप राज्यपाल दिल्ली में हादसा स्थल से थोड़ी सी ही दूरी पर रहते हैं। वे चाहते तो वहां खुद जाकर सब कुछ देख सकते थे,किन्तु ऐसा सम्भव नहीं हुआ ,क्योंकि हमारे यहां हर चीज का एक सिस्टम है। ये सिस्टम तय करता है कि हमारे भाग्यविधाता कहाँ जाएँ और कहाँ न जाएँ ?
अपने आलेखों में मै अक्सर लोकोक्तियों और मुहावरों का इस्तेमाल करता हूँ और लोगों को बताता रहता हूँ रिवायतों के बारे में। हमारे यहां हादसे दर हादसे होते हैं लेकिन हर जगह ,हर कोई नहीं जाता । मिसाल के तौर पर देश की संसद ने कहा,देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संघ ने कहा लेकिन हमारे प्रधानमंत्री आजतक मणिपुर नहीं गए। वे रूस जा सकते हैं, ऑस्ट्रिया जा सकते हैं लेकिन मणिपुर नहीं जा सकते। मणिपुर छोड़िये वे हाथरस नहीं जा सकते। ऐसे में वे दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर क्यों जाएँ ? प्रधानमंत्री जी ही क्या उनके मंत्रिमंडल का कोई सदस्य क्यों जाए ? उनके जाने या न जाने से सिस्टम कौन सा पलक झपकते सुधरने वाला है ? प्रधानमंत्री या उप राज्य पाल को फायर ब्रिग्रेड या रेपिड एक्शन फ़ोर्स तो हैं नहीं !
दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर का हादसा भी कोई नया तो है नहीं। ये वो ही दिल्ली है जहां उपहार सिनेमा हादसा हुआ था। हादसे की वजह चाहे आग हो चाहे पानी ,लेकिन जिम्मेदार कम से कोई सिस्टम ,कोई नेता नहीं होता। मेरे ख्याल से हर हादसे के लिए भगवान जिम्मेदार होता है और भगवान को दण्डित नहीं किया जा सकता। भगवान का काम सृजन और ध्वंश दोनों हैं। वे जो न करें सो कम हैं ,इसलिए किसी भी हादसे के लिए न किसी आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और न किसी ख़ास आदमी पार्टी [सत्तारूढ़ पार्टी ] को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिम्मेदारी ठहरने के लिए कोई शंख बजे या बांसुरी ,इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
हमारा देश कितने करोड़ की आबादी वाला देश है , ये हमें क्या ,हमारी सरकार को भी पता नहीं है। हमारे यहां पिछले 13 साल से जनगणना नहीं हुई ,जबकि उसे हर दस साल में करना ही होता है। भाजपा की बैशाखी सरकार जनगणना को फालतू का काम समझती है ,इसीलिए उसने न 2021 में जनगणना कराई है और न उसका ऐसा कोई इरादा है। हमारे यहां जन और गण की हैसियत कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं है । इसलिए उन्हें गिनने से क्या फायदा। हमारी सरकार किसी भी हादसे में अकाल मृत्यु के लिए पीडितों के परिजनों को मुआवजा देने का पुण्य कार्य करती है । हमारे देश में 10 हजार से लेकर दस लाख तक का मुआवजा दिया जाता है । जिसकी जैसी हैसियत ,उसे वैसा मुआवजा। सबका जीवन अलग-अलग है। उसकी कीमत अलग- अलग है।
ओल्ड राजेंद्र नगर हादसे में मारे गए युवक चूंकि भावी नौकरशाह थे ,इसलिए मृतकों के साथी मुआवजे कोई राशि पांच करोड़ मांग रहे हैं। उन्हें पता है कि नौकरशाही का अंग बनने के बाद करोड़ों रूपये कमाना बाएं हाथ का खेल है। हमारे यहां नौकरशाह और नेता किसी के मोहताज नहीं होते । वे एक -दुसरे के सहायक हैं। लूटमार करने में ,असंवेदनशील होने में, संविधान की ऐसी-तैसी करने में। कोई किसी से कम नहीं। इस मामले में सभी दलों का चरित्र एक जैसा है। कोई दूध का धुला नहीं है। चाहे दक्षिण पंथी हो या वाम पंथी। कांग्रसी हो या धुर समाजवादी।
आप मानते हों या न मानते हों किंन्तु मै मानता हूँ कि हिन्दुस्तान उस देश का नाम नहीं है जिस देश में गंगा बहती है। हिन्दुस्तान उस देश का नाम है जहां 85 करोड़ भिखमंगे रहते है। हिंदुस्तान उस देश का नाम है जिसमें साम्प्रदायिकता की खेती होती है और गेंहूं -चावल ,दाल -तिलहन पैदा करने वाले किसान अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मांगे जाने पर या तो मारे जाते हैं या उनके लिए दिल्ली को कील दिया जाता है। हिंदुस्तान वो देश है जहां सरकार चलने में सहयोग करने वाले दलों को न्यूतम समर्थन मूल्य दिया जाता है और ऐलानिया बजट प्रावधान करके दिया जाता है। बैशाखियाँ लगाना इस देश का सबसे बड़ा और पवित्र कार्य है। इसके लिए कितनी भी कीमत दी जाये कम है।ये कीमत जनादेश को मोथरा करने की कीमत है। सत्ता में आने के लिए कोई भी दल ,किसी भी दल को ये कीमत दे सकता है। इस समय बारी भाजपा की है और तैयारी कांग्रेस ने भी कर रखी है।
हम देश में एक विधान,एक निशान एक चुनाव ,एक नेता की बात जरूर करते हैं लेकिन नगरीय विकास और ग्रामीण विकास के लिए एक क़ानून कीबात कभी नहीं करते। हम भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का नाम बदलकर भारतीय न्याय सन्हिता तो कर सकते हैं, लेकिन किसी भी क़ानून का सत्यनिष्ठा से अक्षरश: पालन नहीं कर सकते। हमारे यहां असंख्य कानूनों की मौजूदगी के बावजूद आपको आजादी है कि आप देश की किसी भी नदी,किसी भी नाले,किसी भी वन भूमि पर अतिक्रमण कर लें उसे अपराध नहीं माना जाता। दिल्ली का हादसा भवन निर्माण कानूनों की अनदेखी का सबसे बड़ा उदहारण है। हमारे यहां जहां भूमिगत पार्किंग होना चाहिए वहां आईएएस बनाने वाली संस्थाओं की लाइब्रेरी है। बिगाड़ लीजिये आप किसी का कुछ ? हम उस देश के वासी हैं जो नोटबंदी का अपराध करने वालों को दण्डित नहीं कर पाये । हम उस देश के वासी है जो देश का पैसा खाकर विदेश जाने वालों को पकड़ नहीं पाया । हम उस देश के वासी हैं जहाँ आज भी देश की अर्थव्यवस्था में कालाधन आराम से छापा जा रहा है।हम उस देश के वासी हैं जहां कोई दूसरा चंडीगढ़ नहीं बनाया जा सका।
बहरहाल कहने को बहुत कुछ है लेकिन सुनने वाले तो हों। हमारे पाठक अकेले क्या कर सकते हैं ? हमें भी मौक़ा मिलता है तो हम भी बेशर्मी के साथ कानूनों को तोड़ने में अपने आपको पुरुषार्थी समझते है। आखिर यथा राजा -तथा प्रजा तो होगी है । राजा नगा होगा तो प्रजा काहे को कपडे पहनने लगी ?
@ राकेश अचल
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