रहे होशियार; बस स्टॉप-रेलवे स्टेशन पर आंख लगी और बच्चा गायब:7 लाख में सौदा, दिल्ली-यूपी-उत्तराखंड-तेलंगाना-तमिलनाडु में गैंग एक्टिव; 6 बच्चे बरामद

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18 सितम्बर –
22 अगस्त की बात है। राजस्थान में ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करने वाले सुरेश के पांव तले तब जमीन खिसक गई, जब उनका 6 महीने का बेटा गायब हो गया। वो भी तब जब पूरा परिवार स्टेशन पर एक साथ सो रहा था। ये घटना देश की राजधानी दिल्ली की है। सुरेश अगले ही दिन परिवार के साथ राजस्थान के बहरोड़ काम करने जाने वाले थे, लेकिन इस घटना ने उन्हें और उनके पूरे परिवार को परेशान कर दिया।
सुरेश ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। दिल्ली पुलिस जब बच्चे की खोजबीन में जुटी तो वो उत्तर प्रदेश में चाइल्ड ट्रैफिकिंग के एक गैंग तक पहुंची। ये गैंग नवजात बच्चों को डॉक्टर या किसी हॉस्पिटल के जरिए लाखों रुपए में बेचती थी। सुरेश का बच्चा भी इसका शिकार होने वाला था, लेकिन पुलिस की कार्रवाई के बाद वो बच गया।
दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए सुरेश के बच्चे के अलावा 5 और बच्चे बरामद किए। इन्हें लखनऊ, आगरा और नैनीताल बेचा गया था। पुलिस ने रैकेट से जुड़े 10 लोगों को अरेस्ट किया है, जिसमें डॉक्टर, मेडिकल स्टूडेंट और कस्टमर समेत दलाल शामिल हैं। ये गैंग बस स्टॉप और रेलवे स्टेशन पर बच्चों को टारगेट करती। इसका नेटवर्क दिल्ली और यूपी ही नहीं, तेलंगाना, तमिलनाडु और उत्तराखंड तक फैला है।
सुरेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के रहने वाले हैं। पिछले 7-8 सालों से राजस्थान के बहरोड़ में एक ईंट-भट्ठे पर मजदूरी कर रहे हैं। दिहाड़ी पर उन्हें मजदूरी मिलती है। उसी ईंट-भट्टे पर पत्नी गुड़िया और चार बच्चों के साथ रहते भी हैं।
23 अगस्त की सुबह उन्हें बहरोड़ के लिए बस पकड़नी थी। इसलिए खाना खाकर रात को बस स्टैंड के प्लेटफॉर्म नंबर-2 पर सो गए। रात करीब 11 बजे जब नींद खुली तो उनका सबसे छोटा बेटा गायब था। सुरेश और उनकी पत्नी ने बच्चे को आसपास काफी देर तक ढूंढा, लेकिन कुछ पता नहीं चला। फिर उन्होंने PCR पर कॉल करके जानकारी दी। पुलिस ने पहले आसपास छानबीन शुरू की।
घटना को याद करते हुए सुरेश बताते हैं, ‘पहले हमने अनाउंसमेंट करवाई। पुलिस भी हमारे साथ बहुत देर तक ढूंढती रही, लेकिन बच्चा नहीं मिला। आसपास की झुग्गियों में जाकर देखा, फिर भी कुछ पता नहीं चला। इसके बाद हमने रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस ने टीम बनाकर जांच शुरू की। CCTV खंगालने शुरू किए।‘
सुरेश के मुताबिक, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान वो कर्जदार भी हो गए। उन्हें बच्चे के मिलने तक दिल्ली में ही रुककर रहने-खाने का इंतजाम करना पड़ा। इसी दौरान उनके एक बच्चे की तबीयत भी बिगड़ गई। उसके इलाज में करीब चार हजार रुपए लग गए। इन तीन-चार दिन में उनके 10 हजार से ज्यादा रुपए खर्च हो गए। इसके लिए उन्हें एक रिश्तेदार से कर्ज लेना पड़ा। साउथ-ईस्ट दिल्ली के DCP डॉ. हेमंत तिवारी बताते हैं, ‘जब हमने वहां का CCTV फुटेज खंगाला तो हमें उसमें दो संदिग्ध व्यक्ति बच्चे को साथ लेकर जाते दिखे। इसके बाद हमने स्पेशल स्टाफ की टीम को इस काम पर लगाया। इस टीम ने तकनीकी छानबीन शुरू की। तीन-चार ऐसे नंबर मिले, जो संदिग्ध लगे। हमने टारगेट करते हुए एक नंबर को फोकस किया तो हमें आगरा के फतेहाबाद कस्बे की लोकेशन मिली।’ फतेहाबाद कस्बे में छापेमारी करके पुलिस ने सबसे पहले वीरभान और कालीचरण नाम के लोगों को हिरासत में लिया। पुलिस के मुताबिक, इन दोनों ने पूछताछ में पहले कुछ भी बताने से इनकार किया। जब उनके घर की तलाशी ली तो पुलिस को वो मोबाइल मिल गया, जिसकी लोकेशन घटनास्थल से मिल रही थी। पुलिस ने सख्ती से पूछताछ कि तो दोनों ने बच्चा चोरी की बात भी कबूल कर ली। पूछताछ में दोनों ने बताया कि उन्होंने अपने रिश्तेदार रामबरण के कहने पर बच्चा चुराया था। उसके बदले पैसा देने की बात तय हुई थी। दिल्ली से चोरी के बाद उन्होंने बच्चे को आगरा के फतेहाबाद में ही डॉक्टर कमलेश के हॉस्पिटल (केके हॉस्पिटल) में दे दिया।
DCP हेमंत बताते हैं, ‘पूछताछ के बाद पुलिस कमलेश के हॉस्पिटल पहुंची। हमारे स्पेशल स्टाफ के इंस्पेक्टर ने हार्ट अटैक का बहाना बनाया और अस्पताल में दाखिल हुए। जब डॉक्टर (कमलेश) देखने आया तो उन्होंने अपनी पहचान जाहिर की। पूछताछ हुई तो कमलेश ने बताया कि उसने बच्चे को एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव सुंदर के पास बेच दिया।‘
‘सुंदर को छापेमारी का पता चल चुका था। वो राजस्थान की तरफ भागने लगा। हमने 50 किलोमीटर तक पीछा करके उसे पकड़ा।‘
इस कार्रवाई में शामिल रहे एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि इस केस को सॉल्व करने स्पेशल स्टाफ (साउथ ईस्ट दिल्ली पुलिस) की पूरी टीम आगरा पहुंची थी। 23 अगस्त की रात पुलिस वहां तीन गाड़ियों में पहुंची। आरोपी का फोन चेक किया तो उसमें बच्चे की फोटो मिली। लोकेशन भी मैच कर गई। इसके बाद हमने उससे सारी जानकारी निकलवाई। हालांकि, जिसके कहने पर इन्होंने बच्चे की तस्करी की, वो रामबरण अभी फरार है। कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इस केस में एक के बाद एक किरदार सामने आते गए। सुंदर से जब पूछताछ शुरू हुई तो उसने बताया कि बच्चे को आगरा के राजनगर इलाके में रहने वाली कृष्णा शर्मा और प्रीति शर्मा के पास बेचा है। पुलिस के मुताबिक, ये दोनों बहन हैं और BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) कर रही हैं। पुलिस की टीम ने इनके घर छापेमारी की और उन्हें गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने इनके घर से सुरेश के 6 महीने के बच्चे को बरामद कर लिया। पुलिस के मुताबिक, दोनों बहनों ने पूछताछ में बताया कि वे रितु नाम की बिचौलिए के जरिए इस बच्चे को ज्योत्सना को बेचने वाली थीं।
इसके बाद पुलिस ने रितु का घर ट्रेस किया और उसे भी गिरफ्तार कर लिया। वहीं पूछताछ के लिए ज्योत्सना को भी हिरासत में लिया। पुलिस ने 48 घंटे में बच्चे को रिकवर कर लिया और परिवार को सौंप दिया। इसके बाद पुलिस मामले में अरेस्ट सभी 10 आरोपियों को दिल्ली ले आई। जब इनसे पूछताछ शुरू हुई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। पता चला कि ये लोग एक गैंग की तरह काम कर रहे हैं। सुरेश के बच्चे की तरह ही कई और बच्चों को भी बेचा गया है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने एक स्पेशल जांच टीम (SIT) बनाई और आगे की कार्रवाई शुरू की। आरोपियों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने आगरा और लखनऊ में छापेमारी की। पुलिस ने गैंग के जरिए बेचे गए 5 और बच्चों को बरामद कर लिया। DCP हेमंत बताते हैं, ‘पूछताछ में पता चला कि डॉ. कमलेश, कृष्णा या इस तरह के दूसरे डॉक्टरों के जरिए आरोपी पूरा नेक्सस चला रहे हैं।‘ इसमें कई ऐसे मामले भी मिले, जैसे- शादी से पहले बच्चा होने या पैसों के लिए मां-बाप ने खुद अपने बच्चे बेच दिए। हमने जो बच्चे रिकवर किए हैं, उनमें से एक को साढ़े सात लाख रुपए में बेचा गया था।‘ DCP ने बताया कि इसमें मुख्य आरोपी सुंदर, कृष्णा और प्रीति हैं, ये लोग करीब ढाई-तीन साल से इस काम में लगे हैं। हो सकता है कि इन्होंने और भी बच्चों को बेचा हो, अभी इसकी जांच चल रही है। डॉक्टर कमलेश और ऐसे दूसरे लोग इस मामले में बैकचेन संभालते हैं और रितु, ज्योत्सना जैसे लोग ऐसे पेरेंट्स ढूंढते हैं, जिन्हें बच्चों की जरूरत है। इन सभी को दिल्ली सरकार के चलाए जा रहे स्टे होम ‘निर्मल छाया’ में रखा गया है। इनके पेरेंट्स की पहचान अब तक नहीं हो सकी है। दो महीने के बच्चे को आगरा में किसी परिवार को बेचा गया है। दिल्ली पुलिस ने बच्चे को रिकवर कर लिया। वहीं आरोपी सुंदर के जरिए एक और दो महीने के बच्चे को बेचा गया था, उसे भी रिकवर किया गया। रचिता नाम की आरोपी के बताने पर आगरा से ही 10 दिन का बच्चा बरामद किया गया। पूछताछ में सुंदर ने बताया कि निखिल नाम के एक व्यक्ति ने उसे एक साल की बच्ची दी थी, जिसे उसने अगस्त महीने में फतेहाबाद में एक परिवार को बेचा था। पुलिस ने उस बच्ची को भी रिकवर कर लिया है। वहीं, कृष्णा शर्मा और प्रीति शर्मा से पूछताछ में खुलासा हुआ कि उन्होंने एक बच्चे को उत्तराखंड के नैनीताल में बेचा है। दिल्ली पुलिस ने नैनीताल से उस दूसरे बच्चे को भी रिकवर कर लिया है। सभी 10 आरोपियों के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। पुलिस का कहना है कि इनसे पूछताछ में कई और बच्चों की तस्करी का पता चल सकता है। DCP हेमंत का कहना है कि जांच में ये भी पता चला है कि दिल्ली, यूपी के साथ ही हैदराबाद, चेन्नई और उत्तराखंड में भी तस्करों का नेटवर्क काम कर रहा है। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर ये गरीब परिवारों को टारगेट करते हैं और बच्चे चोरी कर बेचते थे। मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाली संस्था ‘आश्रय ट्रस्ट’ के वकील गौरव कश्यप कहते हैं कि दिल्ली चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लिए हॉट स्पॉट है, क्योंकि यहां हर जगह से बच्चे आते हैं। गौरव कहते हैं, ‘बच्चों को चोरी करके संतानहीन कपल को बेचना तस्करी का नया ट्रेंड है। ऐसे मामले अभी कम हैं। यात्रा के दौरान ऐसा अक्सर होता है। सरकार को ऐसे मामलों के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए।‘ गौरव बताते हैं कि इसके अलावा बाल तस्करी के दूसरे मामले भी आते हैं। तस्करी से आए बच्चे ढाबों, फैक्ट्रियों में काम करते हैं। वहीं लड़कियों को सेक्स वर्क और घरेलू कामों में धकेला जाता है। दिल्ली में बच्चों की तस्करी का ये पहला मामला नहीं है। इस साल अप्रैल में भी दिल्ली पुलिस ने एक गैंग का भंडाफोड़ किया था। ये गैंग छोटे बच्चों को राजस्थान और गुजरात के अस्पतालों में 5 से 10 लाख रुपए में बेचती थी। पुलिस ने उस दौरान सिर्फ चार-पांच दिन के एक बच्चे को भी बरामद किया था। तब पुलिस ने बताया था कि कम से कम 35 बच्चों की तस्करी की गई है। इन बच्चों को भी संतानहीन कपल को बेचा जाना था। पूरे देश के आंकड़ों को देखें तो बाल तस्करी की समस्या अब भी काफी बड़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, 2022 में देश भर में 2,878 नाबालिग बच्चों की तस्करी की गई। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बाल तस्करी के बढ़ते मामलों पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट की मांग की थी। कोर्ट ने इस मुद्दे पर खुद संज्ञान लेते हुए चिंता जताई थी और सरकार से पूछा था कि इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि बाल तस्करी के मामलों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। इसी मामले पर अप्रैल में कोर्ट ने कहा था कि नवजात बच्चों की तस्करी जैसे केस की सुनवाई 6 महीने में पूरी हो जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को निर्देश भी दिया था कि बाल तस्करी के पेंडिंग मामलों का डेटा रिव्यू करें और ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दें।

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