18 जून 2024 से सभी नए विज्ञापनों के लिए स्व घोषणा प्रमाणपत्र अनिवार्यता से लागू
प्रिंट/डिजिटल मीडिया विज्ञापनों के लिए पीसीआई के पोर्टल पर व टीवी/रेडियो विज्ञापनों के लिए विज्ञापन दाताओं को मंत्रालय प्रसारण सेवा पोर्टल पर स्व घोषणा प्रमाणपत्र ज़मा करना ज़रूरी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर तेज़ी से बढ़ती प्रौद्योगिकी के कारण पूरी दुनियां में वस्तुओं, सेवाओं व उत्पादोंका निर्माण तेज गति से बढ़ता जा रहा है जिसमें उत्पादन व सेवाएं आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बीच अति कंपटीशन हो जाना लाजमी है, यहीं से शुरुआत होती है कि अपनी मार्केटिंग बढ़ाने के लिए प्रिंट इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया में अपने-अपने विज्ञापन देकर अपने संस्थान की मार्केटिंग में बढ़ोतरी करनें की, तो दूसरी तरफ़ प्रिंट इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफॉर्म्स को अपने-अपने संस्थान चलाने के लिए इन्हें विज्ञापनों की आवश्यकता होती है ताकि उनके संस्थान के खर्चों वह अपने रोजी-रोटी को निकाला जा सके, परंतु इस प्रक्रिया में विज्ञापनदाता विज्ञापन लेने वाला प्रिंट मीडिया व प्रकाशित/प्रसारण करने वाला इलेक्ट्रॉनिक संस्थान दोनों का काम तो हो जाता है, परंतु उनके बीच में उपभोक्ताओं का ध्यान रखने वाला शायद कोई नहीं होता, क्योंकि प्रिंट/इलेक्ट्रानिक/सोशल मीडिया पर बाकायदा एक क्लेरिफिकेशन दिया जाता है कि इस विज्ञापन के किसी बातों पर वह सहमति नहीं रखते यही से उपभोक्ताओं के हित की रक्षा करने का प्रश्न उठ जाता है। आज हम इस मुद्दे पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कुछ दिनों पूर्व पतंजलि का मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा उठाया गया था जो सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक जा पहुंचा था जिसमें पतंजलि द्वारा माफी की बात कही गई थी जिसपर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। माननीय उच्चतम न्यायालय ने रिट याचिका सिविल संख्या 645/2022-आईएमए एवं एएनआर बनाम यूओआई एवं ओआरएस मामलेमें अपने दिनांक 07.05.2024 केआदेश में निर्देश दिया कि सभी विज्ञापनदाताओं/विज्ञापन एजेंसियों को किसी भी विज्ञापन को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले एक स्व-घोषणा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगामाननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टीवी और रेडियो विज्ञापनों के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) के प्रसारण सेवा पोर्टल और प्रिंट एवं डिजिटल/इंटरनेट विज्ञापनों के लिए भारतीय प्रेस परिषद के पोर्टल पर एक नई सुविधा शुरू की है। विज्ञापनदाता/विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र को इन पोर्टलों के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा। चूंकि 18 जून 2024 से सभी नए विज्ञापनों के लिए स्व घोषणा प्रमाण पत्र अति अनिवार्यता से लागू होगा इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी केसहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे प्रिंट/डिजिटल मीडिया विज्ञापनों के लिए पीसीआई के पोर्टल पर व टीवी रेडियो विज्ञापनों के लिए विज्ञापन विज्ञापनदाताओं को मंत्रालय प्रसारण सेवा पोर्टल पर स्व घोषणा प्रमाण पत्र जमा करना जरूरी है।
साथियों बात अगर हम मंत्रालय के प्रसारण सेवा पोर्टल के शुरू होने की करें तो, पोर्टल 4 जून, 2024 से काम करने लग गया है। सभी विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को 18 जून, 2024 या उसके बाद जारी/टेलीविजन प्रसारण/रेडियो पर प्रसारित/प्रकाशित होने वाले सभी नए विज्ञापनों के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक है। सभी हितधारकों को स्व प्रमाणन की प्रक्रिया से परिचित होने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने के लिए दो सप्ताह का अतिरिक्त समय रखा गया है। वर्तमान में चल रहे विज्ञापनों को स्व-प्रमाणन की आवश्यकता नहीं है। स्व घोषणा प्रमाणपत्र यह प्रमाणित करता है कि विज्ञापन (i) भ्रामक दावे नहीं करता है, और (ii) केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7 और भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण के मानदंडों में निर्धारित सभी उचित नियामक दिशा निर्देशों का अनुपालन करता हैविज्ञापनदाता को संबद्ध प्रसारक, प्रिंटर, प्रकाशक या इलेक्ट्रॉनिकमीडिया प्लेटफ़ॉर्म को उनके रिकॉर्ड के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र अपलोड करने का प्रमाण देना होगा। माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार, वैध स्व-घोषणा प्रमाणपत्र के बिना किसी भी विज्ञापन को टेलीविज़न, प्रिंट मीडिया या इंटरनेट पर चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
साथियों बात अगर हम सूचना प्रसारण मंत्रालय के बयान की करें तो, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बयान में कहा कि उच्चतम न्यायालय का निर्देश पारदर्शिता, उपभोक्ता संरक्षण और जिम्मेदार विज्ञापन व्यवहार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। टीवी और रेडियो विज्ञापनों के मामले में स्व-घोषणा प्रमाणपत्र को ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल पर और प्रिंट, डिजिटल और इंटरनेट विज्ञापनों के लिए भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की वेबसाइट पर डालना होगा। सरकार ने सोमवार को सभी विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों से स्व-घोषणा प्रमाणपत्र जमा करने को कहा जिससे यह स्पष्ट हो सके कि विज्ञापन में भ्रामक दावे नहीं किए गए हैं और यह नियामकीय दिशानिर्देशों का पालन करता है। उच्चतम न्यायालय की तरफ से पिछले महीने जारी निर्देशों के मुताबिक,सभी नए प्रिंट, डिजिटल टेलीविजन और रेडियो विज्ञापनों के लिए स्व-घोषणा देना जरूरी होगा।इस स्व-घोषणा प्रमाणपत्र पर विज्ञापनदाता या विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि के हस्ताक्षर भी होने चाहिए।सभी हितधारकों को स्व-प्रमाणन की प्रक्रिया से परिचित होने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने के लिए दो सप्ताह की बफर अवधि रखी गई है।हालांकि, अभी प्रसारित या प्रकाशित हो रहे विज्ञापनों को स्व-प्रमाणन की जरूरत नहीं होगी। दस्तावेज़ को प्रमाणित करना चाहिए कि विज्ञापन में भ्रामक दावे नहीं किए गए हैं और यह सभी प्रासंगिक नियामक दिशानिर्देशों का अनुपालन करता है। इसमें केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम सात और भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण के मानदंड शामिल हैं।विज्ञापनदाता को संबंधित प्रसारक, मुद्रक, प्रकाशक या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मंच को उनके रिकॉर्ड के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र अपलोड करने का प्रमाण देना होगा।
साथियों बात अगर हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश की करें तोमीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार, भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ दिशा-निर्देशों के निराशाजनक कार्यान्वयन पर संज्ञान लेते हुए, माननीय दो न्यायमूर्तियों की पीठ ने कहा कि अब से किसी विज्ञापन के मुद्रित/प्रसारित/प्रदर्शित होने से पहले विज्ञापनदाता या विज्ञापन एजेंसी को केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7 के अनुसार एक स्व-घोषणा प्रस्तुत करनी होगी।शीर्ष अदालत ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में सात मई को आदेश पारित किया था। आदेश की एक प्रति हाल ही में अपलोड की गई, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने ग्राहकों के अधिकारों के संबंध में कुछ टिप्पणियां की हैं।इसने आगे कहा कि घोषणा में यह उल्लेख होना चाहिए कि विज्ञापन, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमों के तहत प्रदान की गई विज्ञापन संहिता का अनुपालन करता है।इस स्व-घोषणा को बाद में विज्ञापनदाता या विज्ञापन एजेंसी द्वारा ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा, जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तत्वावधान में चलाया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रेस/प्रिंट मीडिया/इंटरनेट में विज्ञापनों के लिए संबंधित मंत्रालय को 7 मई से चार सप्ताह के भीतर एक समर्पित पोर्टल बनाने के लिए कहा गया था। अदालत के आदेश के अनुसार, यदि पोर्टल सक्रिय होने के बाद स्व-घोषणा पत्र उस पर अपलोड नहीं किया जाता है, तो संबंधित चैनलों या प्रिंट मीडिया/इंटरनेट पर कोई भी विज्ञापन चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।इसमें कहा गया है कि,इन निर्देशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत इस न्यायालय द्वारा घोषित कानून माना जाएगा। विज्ञापनों के माध्यम से इन उत्पादों का समर्थन करने में मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली व्यक्तियों की जिम्मेदारी पर टिप्पणी करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, हमारा दृढ़ मत है कि विज्ञापनदाता/विज्ञापन एजेंसियां और समर्थक झूठे और भ्रामक विज्ञापन जारी करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।चूंकि ये विज्ञापन किसी उत्पाद को बढ़ावा देने में बहुत सहायक होते हैं, इसलिए अदालत ने कहा कि किसी भी उत्पाद का विज्ञापन करते समय जिम्मेदारी की भावना के साथ कार्य करना और जिम्मेदारी लेना उनके लिए अनिवार्य है। सर्वोच्च न्यायालय भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा प्रकाशित कथित भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों के विनियमन की मांग की गई थी।उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टीवी और रेडियो विज्ञापनों के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) के प्रसारण सेवा पोर्टल और प्रिंट एवं डिजिटल/इंटरनेट विज्ञापनों के लिए भारतीय प्रेस परिषद के पोर्टल पर एक नई सुविधा शुरू की है। विज्ञापनदाता/विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र को इन पोर्टलों के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अटेंशन प्लीज ! सभी विज्ञापन दाताओं,विज्ञापन एजेंसियों के लिए 18 जून 2024 से नया नियम लागू।18 जून 2024 से सभी नए विज्ञापनों के लिए स्व घोषणा प्रमाणपत्र अनिवार्यता से लागू प्रिंट/डिजिटल मीडिया विज्ञापनों के लिए पीसीआई के पोर्टल पर व टीवी/रेडियो विज्ञापनों के लिए विज्ञापन दाताओं को मंत्रालय प्रसारण सेवा पोर्टल पर स्व घोषणा प्रमाणपत्र ज़मा करना ज़रूरी है।
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*