राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंगलवार को प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए की गई क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश का प्रयास विफल हो गया। आईआईटी कानपुर की टीम ने दिल्ली के कई इलाकों में सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिकों का छिड़काव किया, लेकिन हवा में नमी की मात्रा बेहद कम होने के कारण बारिश नहीं हो सकी। वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम वर्षा के लिए कम से कम 50% नमी जरूरी होती है, जबकि मंगलवार को यह मात्र 20% रही।
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार के परीक्षण “पूरी तरह सफल” नहीं रहे। उन्होंने कहा कि क्लाउड सीडिंग प्रदूषण के समाधान के लिए कोई जादुई उपाय नहीं, बल्कि एक आपातकालीन विकल्प है। वैज्ञानिक बुधवार को दोबारा प्रयास करेंगे और इसके लिए विशेष विमान दिल्ली में ही तैनात रखा गया है।
कैसे किया गया क्लाउड सीडिंग का प्रयोग
कानपुर से आए विमान ने दिल्ली के बुराड़ी, करोल बाग और मयूर विहार जैसे इलाकों के ऊपर उड़ान भरते हुए आठ झोकों में रसायनों का छिड़काव किया। प्रत्येक झोके में लगभग 2 से 2.5 किलोग्राम रसायन का उपयोग किया गया और यह प्रक्रिया करीब 17 से 18 मिनट तक चली। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि अगर आगे के परीक्षण सफल रहे तो फरवरी तक कृत्रिम वर्षा की विस्तृत योजना तैयार की जाएगी।
80 साल पुरानी तकनीक से उम्मीदें
क्लाउड सीडिंग कोई नई तकनीक नहीं है, बल्कि करीब 80 वर्ष पुरानी प्रक्रिया है। यह तकनीक तब खोजी गई जब वैज्ञानिकों ने लैब में बादल बनने की प्रक्रिया का अध्ययन किया। इस तकनीक में नमी वाले बादलों पर रासायनिक यौगिक छिड़ककर उन्हें वर्षा के लिए प्रेरित किया जाता है। हालांकि, यह तभी सफल होती है जब वातावरण में पर्याप्त नमी मौजूद हो — जो इस बार दिल्ली में नहीं थी।





