केंद्रीय राज्यमंत्री बिट्टू के ऐलान से अकाली दल से गठबंधन की अटकलों पर विराम, सियासी चर्चाएं शुरु
चंडीगढ़, 14 अक्टूबर। पंजाब में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी वैसे तो फिलहाल तक पसोपेश में है। हालांकि भाजपा से राज्यसभा सांसद बने केंद्रीय राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू इस मुद्दे पर कई बार साफ कर चुके हैं कि अकालियों से अब गठजोड़ नहीं होगा। हालांकि संगठनात्मक स्तर पर पार्टी नेतृत्व ने इस बारे में अभी कोई टिप्पणी नहीं की है।
उन्होंने अब तो ऐलान कह दिया कि भाजपा राज्य की सभी 117 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। ऐसे में लगभग तय माना जा रहा है कि भाजपा अगले विस चुनाव में शिरोमणि अकाली दल-बादल के साथ गठबंधन के मूड में नहीं है। यहां काबिलेजिक्र है कि पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोत बिट्टू कांग्रेस से तीन बार जीत कर लोकसभा सांसद बने थे। बीजेपी में आने के बाद भले ही वह लुधियाना से पिछला लोस चुनाव हारे, लेकिन उनको राज्यसभा में भेजकर केंद्रीय मंत्री बनाया गया।
बिट्टू के दावे में कितना दम ?
ऐसे में सियासी-जानकार मानते हैं कि पंजाब के मामले में बीजेपी हाईकमान बिट्टू को इग्नोर नहीं करेगा। हालांकि पिछले कुछ समय से यह चर्चा थी कि पुराने सहयोगी अकाली दल से बीजेपी फिर गठजोड़ कर सकती है। भाजपा की ओर से सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा एक बड़ी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। पार्टी राज्य में अपने संगठन को लगातार मजबूत कर रही है। शहरी क्षेत्रों में समर्थन बढ़ाने पर खास फोकस कर रही है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पंजाब में अब भाजपा को किसी क्षेत्रीय दल की आवश्यकता नहीं है। वह अपने बलबूते पर सरकार बनाने की क्षमता रखती है।
शिअद ने डाले डोरे, रहा नाकाम :
इस बीच, अकाली दल की ओर से भी कई बार गठबंधन को लेकर बयानबाजी हुई। हालांकि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर स्पष्ट रुख सामने आया कि गठबंधन की कोई योजना नहीं है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि पहले के गठबंधन में उसे बराबरी का स्थान नहीं मिल पाया था और वर्तमान राजनीतिक स्थिति में वह एक जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाने को तैयार नहीं है। पंजाब की राजनीति में यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हो रहा है, जब आम आदमी पार्टी सत्ता में है और कांग्रेस पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है। भाजपा, जिसे अब तक पंजाब में सीमित समर्थन वाला दल माना जाता था, वह खुद को एक स्वतंत्र और मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने की दिशा में बढ़ रही है। भाजपा का यह कदम राज्य की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है।
तस्वीर का दूसरा रुख, पंजाब भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती :
जानकारों की मानें तो जमीनी हकीकत यही है कि बीजेपी के सामने अभी ग्रामीण इलाकों और किसान वर्ग में समर्थन जुटाने की बड़ी चुनौती है। हालांकि शहरी मतदाताओं और हिंदू समुदाय के बीच पार्टी का जनाधार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। भले ही अब पंजाब की राजनीति में ‘फ्रंटफुट’ पर खेलने को तैयार है, लेकिन उसके पास मॉस-लीडरों की कमी है। लुधियाना समेत कई शहरी इलाकों में बीजेपी के पास जनता को आकर्षित करने वाले पहले जैसे ‘करिश्माई-नेता’ इस दौर में नहीं है।
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