हिमाचल और उत्तराखंड में आपदाओं के बीच आर्थिक लाभ बनाम पर्यावरणीय लागत केंद्र में
शिमला, देहरादून/यूटर्न/10 अगस्त। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कुदरती कहर की घटनाओं में बढ़ोतरी के साथ राज्य के अधिकारी भी विरोधाभास में फंसे हैं। दरअसल पर्यटकों को ना आने के लिए कहने से उनकी जानें बच सकती है। दूसरी तरफ, ऐसा करने से पर्यटन पर भारी निर्भरता वाली पहली से ही संकटग्रस्त पर्वतीय अर्थव्यवस्था को भी झटका लगेगा।
पर्यटन पर दोनों राज्य निर्भर :
इन हिमालयी राज्यों में पर्यटन सकल राज्य घरेलू उत्पाद में लगभग 10 प्रतिशत का योगदान देता है। पर्यटन होटल मालिकों, टैक्सी चालकों से लेकर छोटे विक्रेताओं तक हज़ारों लोगों की आजीविका का साधन है। फिर भी, पर्यटकों की लगातार आमद, खासकर मानसून के मौसम में अनियोजित विकास से पहले से ही कमज़ोर पड़े नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी दबाव डाल रही है। हिमाचल में, 20 जून से अब तक मानसून से संबंधित आपदाओं से कुल नुकसान लगभग 1,952 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि उत्तराखंड में भूस्खलन और अचानक बाढ़ के कारण मौतों और बुनियादी ढांचे के पतन में तेज़ी से वृद्धि देखी गई।
खतरे के बावजूद पर्यटकों पर नहीं लगा रहे पाबंदी !
दोनों राज्य व्यापक यात्रा प्रतिबंध लगाने या पर्यटकों के आगमन के खिलाफ सख्त सलाह जारी करने से हिचकिचा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश ने प्राकृतिक आपदाओं की बाढ़ ला दी है। मंडी और कुल्लू सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों में से हैं, जहां 112 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 37 लापता हैं। लोक निर्माण विभाग के मुताबिक दो महीने से भी कम समय में राज्य भर में 58 बार अचानक बाढ़ और 53 भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे 200 से ज़्यादा सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं। उत्तराखंड अपने ही जलवायु संकट का सामना कर रहा है। गंगोत्री मार्ग पर धराली गांव में अचानक आई बाढ़ ने घरों, सड़कों और होटलों को बहा दिया।
दोनों सूबों की सरकारें विवादों में फंसी :
बढ़ती आपदाओं का सामना करते हुए दोनों सूबों की सरकारें अस्थायी सलाह तो जारी कर रही हैं, लेकिन कड़े फैसले लेने में नाकाम रही हैं। जुलाई की शुरुआत में, उत्तराखंड ने 11 जिलों में अचानक बाढ़ के रेड अलर्ट के बाद कुछ तीर्थस्थलों की यात्रा स्थगित कर दी थी। हालांकि, अधिकारियों ने यात्राओं को पूरी तरह नहीं रोका। उत्तरकाशी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हमें एहतियात और आजीविका के बीच संतुलन बनाना होगा।
सबक अभी भी अनसीखा :
विशेषज्ञों का तर्क है कि यह रणनीति अदूरदर्शी है। पर्यटन जीवन और पर्यावरण की कीमत पर नहीं आना चाहिए। देहरादून की समाजसेविका मीना रावत ने कहा, हम हर साल यही खामियां देखते हैं, लेकिन कोई व्यवस्थित सुधार नहीं होता। वहीं, वैज्ञानिकों और पर्यावरण योजनाकारों ने बार-बार चेतावनी दी। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि जैसे-जैसे क्षेत्र गर्म हो रहा है, बादल फटने और ग्लेशियर झीलों के फटने से बाढ़ आम होती जा रही है।
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