अमेरिका भारत के बीच बढ़ता तनाव, वैश्विक कूटनीति व भू- राजनीतिक समीकरणों में नए मोड़ की आहट देता है 

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अमेरिका भारत टकराए-चीन भारत करीब आए-रूस ने ध्रुवीकरण के समीकरण बनाए- पश्चिमी विश्व के लिए भू- राजनीतिक भूचाल लाए

सुनिए बाबूजी! यह भारत है जो, अमेरिका-भारत डायरेक्ट टकराहट से अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन की दिशा को प्रभावित कर सकने की ताकत रखता हैं- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया महाराष्ट्र – वैश्विक स्तरपर वैसे तो अमेरिका की अनेक देशों के साथ टकराहट, फिर उनके ऊपर आर्थिक सामायिक प्रतिबंधों को लगाना, वैश्विक वित्तीय संस्थाओं का मुंह मोड़ना, जैसे अनेक किस हम सुनते रहते हैं, जिसके कारण वे देश आर्थिक खस्ताहाली क़े शिकार हो जाते हैं पर परंतु वर्तमान भारत अमेरिका के हालातो को देखते हुए,मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र,आज 45 वर्षों के लेखन कार्य के इतिहास में व शायद भारत- अमेरिका दोस्ती के इतिहास में पहली बार इतनी टकराहट देख रहा हूं, कि भारत पर 50 पेर्सेंट टैरिफ लगाना व इसके बढ़ाने की धमकी देना तथा फिर प्रतिबंधों की बारी भी आ सकती है,जिससे हमारे प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल व फार्मेसी इत्यादि क्षेत्रों में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। जिसपर मेरा मानना है कि इस संभावित होने वाले प्रभाव पर रणनीतिक रूप से काम करना शुरू हो गया होगा? इसके साथ ही भारत क़ा अपनी रणनीति कूटनीति पर भी काम शुरू हो गया होगा। अभी पीएम की रूसी राष्ट्रपति से बात हुई,संभवत वे नवंबर दिसंबर में भारत दौरे पर आ सकते हैं। वही हमारे पीएम 28 से 30 अगस्त 2025 को जापान, फिर 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 को एससीओ सम्मिट में चीन जाएंगे,जिसमे चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार भारतीय पीएम के आने की उत्सुकता है,व संभावना है कि इस टैरिफ रूपी आपदा को अवसर के रूप में बदलने की रणनीति हो सकती है, जिसनें अमेरिका को भी सख़्तें में डाल दिया है?क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा है कि जिस सोच क़े साथ ट्रंप ने भारत पर इतनी भारी मात्रा में टैरिफ लगाया है, वह सोच शायद उल्टी पड़ रही है? और हो सकता है कि बातचीत को हथियार बनाकर टैरिफ को हटा भी दिया जाए तो आश्चर्य वाली बात नहीं होगी!परंतु भारत तो अपनी तैयारी में लग गया है, अगर इस बार रूस चीन भारत ब्राजील ईरान इत्यादि देशों का ग्रुप बन गया तो, वैश्विक कूटनीति व भू-राजनीतिक समीकरण में एक नया मोड़ आ जाएगा जो पश्चिमी विश्व के लिए भू-राजनीतिक भूचाल ला सकताहै।इसलिए आज हम मीडिया में उपयोग जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यमसे चर्चा करेंगे,सुनिए बाबूजी! यह भारत है-अमेरिका भारत डायरेक्ट टकराहट अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन की दिशा को प्रभावित कर सकता है।

साथियों बात अगर हम अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ का प्रभाव भू-राजनीतिक प्रभाव पर पढ़ने की करें तो,अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक हथियारों का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह हथियार दुनियाँ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, यानी अमेरिका, चलाता है तो उसके प्रभाव वैश्विक होते हैं। हाल ही में अमेरिका ने भारत पर टैक्स लगाने का फैसला किया और साथ ही प्रतिबंध लगाने की संभावना के संकेत भी दिए। यह कदम न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव का कारण बन रहा है,बल्कि इसके पीछे एक और बड़ा खतरा छिपा है-भारत, चीन और रूस का संभावित ध्रुवीकरण। यह गठजोड़, यदि मजबूत हुआ, तो अमेरिका के लिए एक ऐसी भू-राजनीतिक चुनौती बन सकता है जो उसके दशकों से कायम आर्थिक और रणनीतिक प्रभुत्व को हिला देगी। अमेरिका और भारत के बीच हाल के समय में बढ़ता तनाव वैश्विक कूटनीति और भू- राजनीतिक समीकरणों में एक नए मोड़ की आहट देता है। “अमेरिका -भारत डायरेक्ट” मामले पर जो मतभेद उभर कर आए हैं, वे केवल द्विपक्षीय विवाद तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि यह पूरी अंतरराष्ट्रीय शक्ति-संतुलन की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। इस मुद्दे ने जहां भारत और अमेरिका के बीच अविश्वास की रेखा को गहरा किया है, वहीं दूसरी ओर यह चीन के लिए अवसर का द्वार खोलता दिख रहा है। अगर भारत और चीन अपने पुराने मतभेदों को किनारे रखकर किसी साझा रणनीति पर आगे बढ़ते हैं, तो पश्चिमी वर्ल्ड की राजनीतिक-आर्थिक बुनियाद पर गहरा असर पड़ सकता है।

साथियों बात अगर हम अमेरिका टकराव को अमेरिका का सबसे बड़ा राजनीतिक दुष्परिणाम होने की करें तो,भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैक्स का असर केवल व्यापारिक संतुलन तक सीमित नहीं रहेगा। यह एक ऐसा संदेश है जो अमेरिकी नीति-निर्माताओं की सोच को दर्शाता है-वे किसी भी देश के साथ अपने हितों के विरुद्ध जाने पर कठोर आर्थिक कदम उठा सकते हैं।लेकिनभारत जो पिछले कुछ वर्षों में न केवल वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करने की स्थिति में आया है, बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी एक रणनीतिक साझेदार बनकर उभरा है, इस तरह के दबाव को आसानी से स्वीकार करने वाला नहीं है। भारत की आर्थिक नीतियों और रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर देने की प्रवृत्ति अमेरिका की उम्मीदों से मेल नहीं खाती, और यही टकराव की जड़ है।अमेरिका के इस कदम का सबसे बड़ा रणनीतिक दुष्परिणाम यह हो सकता है कि भारत और चीन-दोनों एशियाई दिग्गज, जिनके बीच पिछले वर्षों में सीमा विवाद और भू- राजनीतिक तनाव रहे हैं -आर्थिक और रणनीतिक मुद्दों पर एक साझा मंच पर आ सकते हैं। चीन पहले से ही अमेरिका के टैरिफ और प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, और वह हर उस साझेदार की तलाश में है जो उसकी अमेरिका-विरोधी रणनीति को मजबूती दे सके। यदि भारत, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए, अमेरिका के दबाव से निकलकर चीन के साथ कुछ क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाता है, तो यह अमेरिकी रणनीति के लिए बड़ा झटका होगा जिससे उबरने में उसे वक्त लगेगा।

साथियों बात अगर हम भारत रूस पहलू को नजरअंदाज नहीं करने की करें तो, रूस और भारत के ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध हैं,चाहे वह रक्षा सौदे हों, ऊर्जा व्यापार हो या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पारस्परिक समर्थन। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पहले से ही अमेरिका और यूरोपीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, और उसने चीन के साथ अपना आर्थिक और रणनीतिक तालमेल बढ़ा लिया है। यदि भारत भी इस त्रिकोण में सक्रिय रूप से शामिल हो जाता है, तो भारत-चीन-रूस का यह ध्रुवीकरण न केवल एक मजबूत आर्थिक शक्ति बन सकता है, बल्कि एक वैकल्पिक वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में उभर सकता है, जो अमेरिकी नेतृत्व वाली पश्चिमी व्यवस्था को चुनौती देगा।इस संभावित गठजोड़ के आर्थिक प्रभाव गहरे होंगे। भारत, चीन और रूस मिलकर वैश्विक ऊर्जा संसाधनों, विनिर्माण क्षमता और तकनीकी विकास के बड़े हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं। यदि ये तीनों देश आपसी व्यापार में अमेरिकी डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं या वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों का उपयोग बढ़ाते हैं, तो यह अमेरिकी डॉलर की वैश्विक वर्चस्व को कमजोर कर सकता है। अमेरिका की आर्थिक ताकत का एक बड़ा आधार उसकी मुद्रा की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता है, और इस पर चोट लगना उसके लिए सबसे बड़ी भू-आर्थिक चुनौती होगी।राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से भी यह ध्रुवीकरण खतरनाक हो सकता है। अमेरिका ने दशकों से यह सुनिश्चित किया है कि भारत और चीन के बीच विश्वास की कमी बनी रहे, ताकि एशिया में कोई संयुक्त शक्ति उसके हितों को चुनौती न दे सके। लेकिन अगर आर्थिक दबाव और व्यापारिक युद्ध भारत को अमेरिका से दूर ले जाते हैं, तो वह मजबूरी में ही सही, चीन और रूस के साथ कुछ क्षेत्रों में सहयोग का रास्ता चुन सकता है। यह सहयोग ऊर्जा सुरक्षा, सैन्य तकनीक, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समन्वित मतदान तक दृढ़ता से फैल सकता है।

साथियों बात अगर हम अमेरिक़ा की मौजूदा विदेश नीति अक्सर अल्पकालिक रणनीतिक लक्ष्यों पर केंद्रित दिखाई देने की करें तो, दीर्घकालिक भू-राजनीतिक परिणामों का पर्याप्त आकलन नहीं किया जाता। भारत पर टैक्स और संभावित प्रतिबंध लगाने का निर्णय भी इसी श्रेणी में आता है। अमेरिका सोचता है कि आर्थिक दबाव डालकर वह भारत को अपने शर्तों पर व्यापार समझौते करने के लिए मजबूर कर सकता है, लेकिन वह यह भूल रहा है कि भारत अब एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो अपनी वैश्विक भूमिका और प्रतिष्ठा के प्रति बेहद सजग है, और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्वायत्त पहचान बनाए रखना चाहता है।भारत की विदेश नीति “मल्टी-अलाइनमेंट” यानी बहु-संबंधों की नीति पर आधारित है,जहां वह विभिन्न शक्तियों के साथ अलग-अलग मुद्दों पर साझेदारी करता है। यदि अमेरिका के साथ तनाव बढ़ता है, तो भारत के पास चीन और रूस के साथ सहयोग बढ़ाने का विकल्प हमेशा रहेगा। ऐसे में, भारत-चीन-रूस का एक सामरिक और आर्थिक ध्रुव बनना, भले ही यह पूर्ण गठबंधन न हो, लेकिन इतना पर्याप्त होगा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन जाए।अंततः, अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत पर टैक्स लगाना और प्रतिबंधों की धमकी देना केवल एक द्विपक्षीय विवाद नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी कड़ी हो सकती है जो वैश्विक शक्ति- संतुलन को बदल दे। भारत, चीन और रूस का संभावित ध्रुवीकरण एक नए शीत युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकता है, जहां अमेरिका को न केवल सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे पर, बल्कि आर्थिक और वित्तीय मोर्चे पर भी एक साथ कई विरोधियों का सामना करना पड़ेगा। यह वह स्थिति है जिससे बचने के लिए अमेरिका को अपने कदमों को बहुत सावधानी से तौलना होगा, क्योंकि आज की जुड़ी हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक गलती का असर सीमाओं से बहुत दूर तक फैल सकता है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अमेरिका भारत टकराए-चीन भारत करीब आए-रूस ने ध्रुवीकरण के समीकरण बनाए- पश्चिमी विश्व के लिए भू- राजनीतिक भूचाल लाए, अमेरिका भारत के बीच बढ़ता तनाव,वैश्विक कूटनीति व भू-राजनीतिक समीकरणों में नए मोड की आहट देता है।सुनिए बाबूजी! यह भारत है,अमेरिका- भारत डायरेक्ट टकराहट,अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन की दिशा को प्रभावित कर सकने की ताकत रखता हैं।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *

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