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गुरु इन्द्र के आदर्शों को यूगो – युगों तक जग करेगा अभिनंदन

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लुधियाना 24 अक्टूबर। इस जगत में तीन तत्व है। देव, गुरु और धर्म। इन तीनों तत्वों में गुरु का स्थान मध्य में है। प्रवचनदक्षा साध्वी पुनीतयशा श्रीजी म. ने कहा कि एक तरफ भगवान, एक तरफ धर्म। बीच में बैठा सद्‌गुरु, दोनों का बतावे मर्म। सद्‌गुरू भगवान का स्वरूप बताते है और धर्म मार्ग का ज्ञान समझते है। संत कबीरदास जी ने कहा है- “बनिहारी गुरुदेव की, जिन्हें गोविंद दियो बताय। भारतीय संस्कृति का भी यही स्वर है- ।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
गुरु शिष्य को नया जीवन देते है इसलिये ब्रह्मा है। गुरु शिष्य के जीवन की पालना करते है इसलिये विष्णु है। गुरु शिष्य के जीवन में रही हुई बुराइयों का संहार करते है इसलिये महेश है।

गुरु के बिना संसार में कुछ भी नहीं है।

” सद्‌गुरु की महिमा अनंत है। गुरु के उपकार भी अनंत है। अनंत की अनुभूति बिना गुरु की कृपा कभी भी संभव नहीं है। गुरु के बिना यह जीवन शुरू नहीं होता है। गुरु विषय-वासना की अंधेरी गलियों में भटकते हुओं को अटकाकर प्रकाशमान करते हैं।

साध्वी पुनीतयशा श्रीजी म. ने बताया कि ऐसे जिनशासन रूपी गगन के दैदिप्यमान नक्षत्र, चारित्र चुड़ामणि, शासन शिरोमणी, समाजोद्धारक, जैन दिवाकर, परमार क्षत्तियोद्धारक परम पूज्य आचार्य श्री इन्ड्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज सा का जन्म गुजरात के बड़ौदा जिले के सालपूरा गांव में विक्रम संवत 1980, कार्तिक वदि नवमी को हुआ। गुरुदेव श्री जी एक महान् दिव्य विभूति थे। गुरुदेव श्री जी का जीवन सद्गुणों का महकता हुआ गुलदस्ता था । तप-जप, साधना – स्वाध्याय, सरलता, विनयशीलता आदि सद्‌गुणों से गुरुदेव का जीवन सुवासित था । जिस प्रकार फूल की हर कली सुगंधित होती है उसी प्रकार गुरुदेव श्री के जीवन का हर कोना सद्‌गुणों से सुवासित था। उनके गुणों के बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा प्रतीत होता हैं।

श्री इन्द्र गुरुदेव जी का जीवन अपने आप में अद्भूत व अनुठा था। गुरुदेव की त्याग तप की साधना विशिष्ट कोटि की थी।श्री वर्धमान के आराधक, वर्षीतप आदि कई तपस्याएं उनके जीवन में देखने को मिलती थी। गुरुदेव श्री की वाणी में अमृत सा माधुर्य था। उनके मुख मंडल पर चंद्रमा जैसी शीतलता सदैव विद्यमान रहती थी।

गुरुदेव श्री जी सबसे बड़ी देन और गौरवमय कार्य एक लाख परमार क्षत्रियों को जैनधर्म का अनुयायी बनाना था। जो कि जैनधर्म के 500 वर्षों के इतिहास में ऐसा कार्य किसी आचार्य द्वारा नहीं हुआ था। यह उनका अद्वितीय कार्य था। जिसका युगों तक स्मरण किया जायेगा।

केवल अपने प्रवचनों से उन्होंने संदेश ही नहीं दिया, अपितु जहां-जहां भी गये साधर्मिक उत्कर्ष के लिए साधर्मिक फंड की स्थापना करवायी । गुरुदेव श्री की सद्‌प्रेरणा से ही दानवीर श्री अभयकुमार ओसवाल ने मध्यम वर्ग के उत्कर्ष के लिए 750 परिवारों की आवास व्यवस्था युक्त लुधियाना में ही”श्री विजय इन्द्र नगर” का भव्य निर्माण करवाकर लोकार्पण किया।

गुरुदेव श्री के पावन उपदेश से कई स्थलों पर धर्मशालाएं, पाठशालाएं, शिक्षण संस्थाचे, चिकित्सालय आदि निर्मित हुए। ऐसे महामनीषी, मानवता के मसीहा, जैन दियाकर गुरुदेव श्री के पावन जन्म दिवस पर हम सभी एक संकल्प करेंगे कि उनके सिद्धान्तों को साकार बनाकर जीवन को धार्मिक भावनाओं से सुवासित करते हुए मोक्षमार्ग की ओर गतिशील करते हुए गुणग्राही बनेंगे।

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