“डेड इकोनॉमी”कहने वालों को करारा जवाब

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भारत-ब्रिटेन नई आर्थिक साझेदारी की दास्तान -प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ऐतिहासिक सफ़ल भारत यात्रा 2025- व्यापार निवेश,तकनीक और विश्वास की नई परिभाषा

 

“डेड इकोनॉमी”कहने वालों को करारा जवाब

 

उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल में 125 से अधिक शीर्ष सीईओ, अग्रणी उद्यमी, विश्वविद्यालयों के कुलपति और सांस्कृतिक संस्थानों के प्रमुख शामिल हैं,जो यात्रा के महत्व को रेखांकित करता है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर की 9-10 अक्टूबर 2025 की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। यह यात्रा केवल दो दिनों की औपचारिक मुलाक़ात नहीं, बल्कि 21वीं सदी के वैश्विक व्यापारिक समीकरणों में भारत की निर्णायक भूमिका को स्वीकार करने की ठोस अभिव्यक्ति है।भारतीय पीएम के निमंत्रण पर भारत पहुंचे स्टार्मर का मुंबई एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत हुआ, जहां से इस यात्रा की शुरुआत ने एक ऐसा संदेश दिया “भारत अब वैश्विक शक्ति संतुलन का निर्णायक केंद्र है”।पीएम ने ब्रिटेन पीएम के साथ मुलाकात की एक तस्वीर साझा करते हुए कहा कि भारत और ब्रिटेन के रिश्ते तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और”नई ऊर्जा से भरे हुए हैं”एक तस्वीर में पीएम मोदी ब्रिटिश पीएम के साथ एक ही कार में नजर आए मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यहमानता हूं कि अमेरिका द्वारा भारत को डेड इकोनामी कहे जाने व 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने के बाद भारत-यूके रिश्तों का नया दौर शुरू हो गया है,व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित कूटनीति ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत डेट इकोनामी नहीं है,आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी क़े सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत-ब्रिटेन नई आर्थिक साझेदारी की दास्तान,प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ऐतिहासिक सफ़ल भारत यात्रा 2025- व्यापार,निवेश, तकनीक और विश्वास की नई परिभाषा।

साथियों बात अगर हम ब्रिटेन पीएम की दो दिवसीय यात्रा की करें तो,यह ऐसे समय में हो रही है जब भारत और ब्रिटेन दोनों ही अपने-अपने आर्थिक और रणनीतिक भविष्य के पुनर्संरचना के दौर से गुजर रहे हैं। यात्रा का प्रमुख उद्देश्य व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी सहयोग को सुदृढ़ करना है। ब्रिटिश पीएम के साथ आए उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल में 125 से अधिक शीर्ष सीईओ,अग्रणी उद्यमी, विश्वविद्यालयों के कुलपति और सांस्कृतिक संस्थानों के प्रमुख शामिल हैं, यह अपने आप में इस यात्रा के महत्व को रेखांकित करता है।यह केवल एक राजनयिक यात्रा नहीं, बल्कि ब्रिटिश व्यापारिक समुदाय का भारत के प्रति बदलता नजरिया दर्शाने वाली ऐतिहासिक घटना है। ब्रिटेन के कई औद्योगिक घराने अब भारत को मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी हब के रूप में देख रहे हैं, न कि केवल एक उपभोक्ता बाज़ार के रूप में।“डेड इकोनॉमी” कहने वालों को करारा जवाब हैँ।

साथियों बात अगर हम अमेरिकी राष्ट्रपति द्वाराकुछ समय पहले भारत की अर्थव्यवस्था को “डेड इकोनामी” कहकर प्रश्न उठाए गए थे। वहीं भारत पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद, वैश्विक व्यापार जगत में भारत की नीतियों को लेकर बहस तेज़ हो गई थी।लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री की यह यात्रा उस सोच को सीधा जवाब देती है। ब्रिटिश पीएम ने मुंबई में उतरते ही कहा कि “भारत 2028 तक दुनियाँ की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, और ब्रिटेन उस यात्रा का मजबूत भागीदार बनेगा।”यह बयान न केवल आर्थिक विश्वास का प्रतीक है, बल्कि यह उन तमाम संशयवादियों के लिए एक संदेश है जो भारत की विकास गाथा पर सवाल उठाते रहे हैं।

साथियों बातें कर हम ब्रिटेन के जेम्बो डेलिगेशन की करें तो यह विश्वास की कूटनीतिक मिसाल हैँ, इतिहास में शायद ही ऐसा हुआ हो जब ब्रिटेन का इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल किसी देश की यात्रा पर आया हो। यह “जेम्बो डेलिगेशन”भारत-ब्रिटेन संबंधों की गहराई और गंभीरता दोनों को दर्शाता है। 125 से अधिक शीर्ष सीईओ और शिक्षाविदों के साथ प्रधानमंत्री स्टार्मर का आना इस बात की पुष्टि करता है कि ब्रिटेन भारत को एक ऐसे रणनीतिक सहयोगी के रूप में देख रहा है, जो उसके पोस्ट-ब्रेक्सिट युग में वैश्विक प्रभाव को बनाए रख सकता है।इस प्रतिनिधिमंडल में ऑक्सफोर्ड कैम्ब्रिज और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल हैं, जो शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के साथ साझेदारी की नई संभावनाओं पर विचार करेंगे। वहीं, तकनीकी कंपनियों के प्रमुख भारत में एआई, ग्रीन एनर्जी,साइबर सिक्योरिटी और डिजिटल इनोवेशन जैसे क्षेत्रों में निवेश की नई संभावनाओं को तलाश रहे हैं।

साथियों बात अगर हम मोदी- स्टार्मर शिखर वार्ता साझेदारी की नई परिभाषा की करें तो नई दिल्ली में मोदी और कीर स्टार्मर के बीच हुई शिखर बैठक में व्यापार, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और संस्कृति को केंद्र में रखकर गहन चर्चा हुई। दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि भारत-यूके फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को शीघ्र अंतिम रूप दिया जाएगा।बैठक में भारत ने ब्रिटेन को रक्षा उत्पादन, अंतरिक्ष तकनीक और ग्रीन एनर्जी मिशनों में साझेदारी के लिए आमंत्रित किया। वहीं ब्रिटेन ने भारत में अपने निवेश को तीन गुना बढ़ाने का आश्वासन दिया।“इनोवेशन पार्टनरशिप”के तहत दोनों देशों के बीच स्टार्टअप्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्रों में संयुक्त रिसर्च पर सहमति बनी।

साथियों बात अगर हम भारत की ओर झुकता ब्रिटेन, वैश्विक शक्ति समीकरण में बदलाव कोसमझने की करें तो, ब्रिटेन पीएम की यात्रा ब्रिटिश विदेश नीति में एक मौलिक परिवर्तन का प्रतीक है। यह वही ब्रिटेन है जिसने दशकों तक भारत को “डेवलपिंग नेशन” की दृष्टि से देखा था। लेकिन अब यह मान्यता बदल चुकी है। भारत को ब्रिटेन अब एक इक्वल पार्टनर, एक टेक्नोलॉजिकल पॉवरहाउस और एक वैश्विक निवेश गंतव्य के रूप में स्वीकार कर रहा है।ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के बाहर नए आर्थिक साझेदारों की तलाश थी। ऐसे में भारत उसकी पहली प्राथमिकता बनकर उभरा है। ब्रिटिश मीडिया इसे“यूकेस पीवोट टू इंडिया ”कह रहा है।

साथियों बात अगर हम भारत के लिए अवसर और जिम्मेदारी दोनों को समझने की करें तो,यह यात्रा भारत के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आई है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है। भारत को अब यह साबित करना होगा कि वह केवल निवेश आकर्षित करने वाला देश नहीं, बल्कि विनिर्माण, नवाचार और नीति स्थिरता के लिहाज से विश्वसनीय साझेदार भी है।भारत के लिए यह समय है कि वह अपने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, और स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों को ब्रिटिश सहयोग के साथ वैश्विक स्तर पर पहुंचाए। विशेष रूप से एआई, सेमीकंडक्टर, और क्लाइमेट टेक्नोलॉजी में भारत की भूमिका निर्णायक बन सकती है।

साथियों बात अगर हम संस्कृति और शिक्षा,साझेदारी के मानवीय आयाम को समझने की करें तो,भारत-ब्रिटेन संबंध केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं हैं। दोनों देशों के बीच संस्कृति, शिक्षा और सामाजिक मूल्य का भी गहरा जुड़ाव है। इस यात्रा में “कल्चरल एक्सचेंज मिशन” पर भी सहमति बनी, जिसके तहत ब्रिटेन और भारत के बीच कलाकारों, फिल्म निर्माताओं और विद्यार्थियों के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों की संख्या पहले ही रिकॉर्ड स्तर पर है। अब ब्रिटेन ने भारत को “प्राथमिक शिक्षा भागीदार” के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया है। इसके तहत उच्च शिक्षा में द्विपक्षीय डिग्री कार्यक्रम, स्कॉलरशिप्स और कोर्स एक्सचेंज की शुरुआत होगी।

साथियों बात अगर हम यात्रा का ऐतिहासिक महत्व भविष्य के वैश्विक समीकरणों की झलक, यह यात्रा केवल भारत और ब्रिटेन के संबंधों की मजबूती का प्रतीक नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति समीकरणों में एशिया की केंद्रीय भूमिका को भी स्थापित करती है।जब दुनियाँ अमेरिका- चीन प्रतिस्पर्धा में उलझी हुई है, तब ब्रिटेन का भारत की ओर झुकाव इस बात का संकेत है कि 21वीं सदी का आर्थिक केंद्र अबएशिया की धरती पर स्थित है।भारत इस साझेदारी से न केवल व्यापारिक लाभ प्राप्त करेगा, बल्कि वह पश्चिमी देशों के साथ अपने कूटनीतिक संतुलन को भी और मजबूत करेगा।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्वास, साझेदारी और भविष्य की एक नई कहानी,ब्रिटिश पीएम की भारत यात्रा 2025 इतिहास में “इकोनॉमिक डिप्लोमेसी के पुनर्जागरण” के रूप में दर्ज होगी। इस यात्रा ने दिखा दिया कि भारत अब किसी के समर्थन का आकांक्षी नहीं, बल्कि साझेदारी का निर्णायक केंद्र बन चुका है।ब्रिटेन के लिए यह यात्रा भारत के प्रति विश्वास की पुनर्स्थापना है, वहीं भारत के लिए यह अपनी वैश्विक स्थिति को और ऊंचा उठाने का अवसर। व्यापार, शिक्षा, तकनीक और संस्कृति,इन चारों स्तंभों पर खड़ी यह नई साझेदारी आने वाले दशक में विश्व की आर्थिक दिशा तय कर सकती है।भारत और ब्रिटेन अब केवल साझेदार नहीं, बल्कि वैश्विक पुनरुत्थान के सह-निर्माता हैं, एक ऐसा अध्याय जो आने वाली पीढ़ियाँ “न्यू ऐज ऑफ़ इंडो – ब्रिटिश पार्टनरशिप ” के नाम से याद करेंगी।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *

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