मनीकंट्रोल को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर जारी बहस अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार पहली बार स्टेबलकॉइन पर सीमित स्तर पर ‘एक्सपेरिमेंट’ करने की तैयारी कर रही है। संभव है कि इकोनॉमिक सर्वे 2025-26 में इसकी उपयोगिता पर औपचारिक रूप से केस पेश किया जाए। फिलहाल देश में कोई भी क्रिप्टोकरेंसी लीगल टेंडर नहीं है, लेकिन सरकार यह परखना चाहती है कि क्या स्टेबलकॉइन को सीमित लेन-देन में इस्तेमाल किया जा सकता है और क्या बैंकिंग सिस्टम इसके लिए तैयार है।
नई मनी आर्किटेक्चर की ओर कदम
सरकारी सूत्र बताते हैं कि केंद्र पहली बार किसी क्रिप्टो एसेट के यूज़–केस पर आगे बढ़ने पर विचार कर रहा है। स्टेबलकॉइन की खासियत यह है कि इसकी कीमत डॉलर या किसी कमोडिटी से जुड़ी होने के कारण यह अन्य क्रिप्टोकरेंसी की तरह ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं दिखाता। यही कारण है कि इसे ग्लोबल पेमेंट और रेमिटेंस में उपयोगी माना जाता है।
रेगुलेशन और जोखिम पर गहन चर्चा
भारत में अभी तक क्रिप्टो के लिए कोई रेग्युलेटरी ढांचा नहीं है। सरकार के डिस्कशन पेपर में स्टेबलकॉइन की तकनीकी उपयोगिता का जिक्र है और अमेरिका के GENIUS Act से भी संकेत लिए गए हैं। विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है—कुछ इसे तेज और किफायती भुगतान प्रणाली बताते हैं, जबकि कुछ मनी लॉन्ड्रिंग के जोखिम का हवाला देते हैं।
आगे की राह
आरबीआई फिलहाल स्टेबलकॉइन की बजाय डिजिटल रुपया (CBDC) को बढ़ावा देने का पक्षधर है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि पहले स्टेबलकॉइन का परीक्षण करने के लिए एक ‘सैंडबॉक्स’ बनाया जाए। कुल मिलाकर भारत डिजिटल मुद्रा की दिशा में एक नए दौर की ओर बढ़ रहा है।





