पटियाला जेल में बंद पंजाब पुलिस के पूर्व इंस्पेक्टर सीता राम का सोमवार को निधन हो गया। वह जालंधर के निवासी थे। इससे पहले उनके साथी सूबा सिंह की भी कुछ दिन पहले जेल में हत्या कर दी गई थी। दोनों ही 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी पाए गए थे। मार्च 2025 में मोहाली की विशेष सीबीआई अदालत ने सीता राम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
1993 में दो युवकों की हत्या का दोषी पाया गया था
घटना के समय सीता राम तरनतारन के पट्टी थाने में एसएचओ थे। अदालत ने उन्हें 1993 में गुरदेव सिंह और सुखवंत सिंह नामक दो युवकों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या का दोषी माना। सीबीआई अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 201 (साक्ष्य नष्ट करना) और 218 (ग़लत रिकॉर्ड तैयार करना) के तहत दोषी करार देते हुए उम्रकैद दी।
अदालत ने उन पर 2.7 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसमें से 1.5 लाख रुपये प्रत्येक मृतक के परिवार को देने का आदेश हुआ। इसी मामले में कांस्टेबल राजपाल को भी 5 साल की सज़ा सुनाई गई थी।
पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर का आरोप
30 जनवरी 1993 को गुरदेव सिंह को एएसआई नौरंग सिंह की टीम ने घर से उठाया था, जबकि 5 फरवरी को सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह की टीम ने उसके घर से हिरासत में लिया।
6 फरवरी 1993 को पुलिस ने दावा किया कि दोनों युवक थाना पट्टी के भागूपुर क्षेत्र में नाके के दौरान मुठभेड़ में मारे गए। पुलिस के मुताबिक, दोनों ने ट्रैक्टर पर आते समय पुलिस पर फायरिंग की, जिसके बाद जवाबी कार्रवाई में उनकी मौत हो गई।
लेकिन अदालत में पुलिस की यह कहानी टिक नहीं पाई। दोनों शवों का अंतिम संस्कार भी पुलिस ने लावारिस बताकर कर दिया था, जिससे परिवारों को शव नहीं मिले। अदालत ने इस पूरी कहानी को मनगढ़ंत माना और आरोपियों को दोषी ठहराया।





