संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व समुदाय ने सुरक्षा परिषद सुधार की दिशा में एक नए विमर्श को आगे बढ़ाया।

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार- भारत की स्थायी सदस्यता व वीटो शक्ति-विभाजन,समर्थन और बाधाएँ-सटीक विश्लेषण

 

संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व समुदाय ने सुरक्षा परिषद सुधार की दिशा में एक नए विमर्श को आगे बढ़ाया।

 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति को शामिल करने से आतंकवाद,जलवायु परिवर्तन, महामारी, क्षेत्रीय संघर्ष के समाधान में भारत महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकता है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया – वैश्विक स्तर पर दुनियाँ में अनेकों डेवलपमेंट्स के बीच 29 सितंबर 2025 को समाप्त हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक महत्वपूर्ण वाद-विवाद सत्र में विश्व समुदाय ने सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) सुधार की दिशा में एक नए विमर्श को आगे बढ़ाया। इस सत्र में भारत की स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति (निरस्त्रीकरण शक्ति) देने का प्रस्ताव खासतौर पर चर्चा का केंद्र बना। कई देशों ने इस प्रस्ताव का जोरदार स्वागत किया, जबकि कुछ प्रमुख शक्तियों ने इसके विरोध में अपनी आपत्तियाँ प्रकट कीं। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना दृष्टिकोण दृढ़ता से प्रस्तुत किया और यह स्पष्ट किया कि यदि यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाए, तो यह न केवल भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा,बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन और विकासशील देशों की आवाज़ को सशक्त करेगा। पिछले कई दशकों से यूएनएससी सुधार की माँग उठ रही है, विशेष रूप से नये स्थायी सदस्यों को शामिल करना, वीटो शक्ति का दायरा बदलना या सीमित करना,और निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता व जवाबदेही लाना।भारत इस सुधार आंदोलन का एक प्रमुख प्रस्तावक रहा है।भारत का तर्क रहा है कि एक बढ़ी हुई, अधिक प्रतिनिधि और न्यायसंगत परिषद ही आज की जटिल चुनौतियों (जैसे आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, महामारी, क्षेत्रीय संघर्ष) को अधिक प्रभावी रूप से संभाल सकती है हालाँकि, सुधार प्रक्रिया बेहद जटिल है क्योंकि चार्टर संशोधन की प्रक्रिया में न केवल महासभा बल्कि सभी पांच स्थायी सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक होती है। इसके अतिरिक्त, कई देश नए स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति देने पर संकोच करते हैं, उन्हें डर रहता है कि इससे उनकी मौलिक प्रभावशीलता अथवा वैश्विक शक्ति संतुलन प्रभावित होगा। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं कि इस पृष्ठभूमि में, 2025 की यूएनएससी जनरल असेंबली सत्र में भारत की स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति को शामिल करने की चर्चा एक ऐतिहासिक एवं निर्णायक प्रस्ताव बनकर सामने आई।बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की संरचना और उसके अभ्यस्त कार्यप्रणाली की जड़ें 1945 की यूएन चार्टर में हैं। आज यूएनएससी में पाँच (पी5) स्थायी सदस्य,चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका वीटो शक्ति रखते हैं, जबकि दस अन्य सदस्य गैर-स्थायी होते हैं, जिनका कार्यकाल दो वर्ष का होता है और वे वीटो शक्ति नहीं रखते। इस व्यवस्था ने दशकों तक वैश्विक शांति और सुरक्षा में भूमिका निभाई, लेकिन समय के साथ इसके प्रति आलोचनाएँ भी बढ़ीं- विशेष रूप से यह तर्क कि यह संरचना 1945 के विश्व व्यवस्था को निरंतर बनाए रखती है और आधुनिक शक्ति संतुलन, लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व एवं वैश्विक बहुसंख्यकता को प्रतिबिंबित नहीं करती।

साथियों बात अगर हम भारत को वीटो पावर मिलने के पक्ष और विपक्ष में उठी आवाजों की करें तो समर्थन की आवाजें-(1) उभरते विश्व अर्थशक्तियों का प्रतिनिधित्व:-आज की दुनियाँ विभिन्न महाशक्तियों,आर्थिक शक्ति केन्द्रों और क्षेत्रीय समूहों (जैसे ब्रिक्स,जी20) द्वारा संचालित है। इन समूहों में भारत एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। कई देशों ने स्वीकार किया है कि यूएएससी का ढांचा 1945 की स्थिति पर आधारित बनावट को प्रतिबिंबित करता है और उसमें परिवर्तन आवश्यक है। उदाहरणतः,भूटान के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से भारत और जापान को स्थायी सदस्यता का “योग्य राष्ट्र” घोषित करते हुए उनकी वकालत की। (2) ब्रिक्स एवं साझी घोषणाएँ:-ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) ने संयुक्त रूप से प्रस्ताव रखा है कि यूएनएससी को व्यापक, अधिक प्रतिनिधि और समावेशी बनाना आवश्यक है। वे भारत एवं ब्राज़ील को स्थायी सदस्यता दिलाने की अपील करते हैं। रूस,जो स्वयं एक पी5 सदस्य है,ने भी सार्वजनिक रूप से 2025 सत्र में भारत को स्थायी सदस्यता के हकदार बताया। (3)कार्यक्षमता एवं जवाबदेही में सुधार:-नए सदस्यों के शामिल होने से परिषद की निर्णय क्षमता और वैधता बढ़ सकती है। साथ ही, कई प्रस्तावों में यह भी कहा गया कि नए सदस्यों को प्रारंभ में वीटो शक्ति “स्थगित” (फ्रीज) कर दी जाए-जैसे जापान की जी 4 प्रस्तावना कि नए सदस्यों के वीटो अधिकारों को 15 वर्षों के लिए स्थगित रखा जाए।(4) वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को सशक्त करना:-विकसित देशों और पश्चिमी शक्तियों के दबदबे को तोड़ने की दिशा में यह कदम एक प्रतीक हो सकता है कि विकासशील देशों की सुरक्षा, न्याय और भागीदारी की मांग गंभीरता से ली जा रही है। विरोध एवं संदेह-(1)स्थायी सदस्यों की अनिच्छा और शक्ति संतुलन का डर:-वर्तमान पी5 सदस्यों में से कुछ,विशेष रूप से चीन-वे बदलाव स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं जो उनकी शक्ति को प्रभावित कर सकें।चीन ने भारत की यूएनएससी स्थायी सदस्यता कासमर्थन नहीं किया है।यह विरोध रणनीतिक और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण भी है।(2)वीटो शक्तिदेने संबंधी संवेदनशीलता :- यदि नए स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति दी जाए, तो प्रश्न उठते हैं: क्या उन्हें ऐसी शक्ति देना उचित है यदि वे पहले निर्दलीय या विकासशील देश रहे हों? और यह शक्ति दुरुपयोग का खतरा भी रखती है। इस कारण कई देशों ने यह प्रस्ताव कि नए सदस्यों को तत्काल वीटो शक्ति न मिले, या सीमित अधिकार हो, को स्वीकार किया। लेकिन भारत ने यह स्पष्ट किया कि यदि सदस्यता दी जाए तो वीटो शक्ति अनिवार्य हो। (3)संशोधन प्रक्रिया की जटिलता:- यूएनएससी सुधार करने के लिए यूएन चार्टर के अनुसार संशोधन करना होगा। यह प्रक्रिया दो चरणों में होती है: (1) महासभा में दो तिहाई अनुपालन(अप्प्रोक्स 128 सदस्य) से प्रस्ताव पारित करना,और (2) प्रत्येक सदस्य देश (उन देशों की राष्ट्रीय स्वीकृति प्रक्रिया) द्वारा अनुमोदन जिसमें सभी पाँच स्थायी सदस्यों का स्वीकृति देना अनिवार्य है। यदि कोई स्थायी सदस्य इस प्रस्ताव को स्वीकृत न करे, तो entire सुधार प्रक्रिया विफल हो सकती है। (4)पार्टियल समाधान का विरोध:-कुछ प्रस्ताव केवल नए सदस्यों को स्थायी सदस्यता देना चाहते हैं, पर वीटो शक्ति न देना या अस्थायी वीटो देना। भारत इस तरह के “पार्टियल” या “मध्यवर्ती” समाधान को स्वीकार नहीं करता। भारत की स्पष्ट नीति रही है कि स्थायी सदस्यता के साथ वीटो शक्ति होना चाहिए।(5) भेदभाव एवं नए चयन मानदंडों पर बहस:-सुधार प्रस्तावों में कभी-कभी धर्म, जाति, जीडीपी, सैन्य शक्ति आदि जैसे पैरामीटर प्रस्तावित होते हैं।भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि यूएनएससी प्रतिनिधित्व में धर्म या धार्मिक आधार आधारित मानदंडों को स्वीकार नहीं किया जाएगा; प्रतिनिधित्व क्षेत्रीय आधार पर होना चाहिए।

साथियों बात अगर हम भारत का दृढ़ दृष्टिकोण और रणनीति की करें तो,भारत ने इस प्रस्ताव को केवल एक महत्वाकांक्षी राजनीतिक प्रस्ताव नहीं, बल्कि एक न्यायोचित, तर्कसंगत और वैध माँग के रूप में पेश किया। निम्नलिखित बिंदु उसके दृष्टिकोण और रणनीति को स्पष्ट करते हैं: (1)योग्यता एवं स्वाभाविक दावेदारी:-भारत का तर्क है कि उसने आर्थिक, वैज्ञानिक सैन्य, राजनयिक और जनसंख्या स्तर पर वह शक्ति और प्रभाव अर्जित किया है जो उसे स्थायी सदस्यता का हकदार बनाती है। इसके अलावा, भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाइयों में सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। (2)वीटो पहल प्रस्ताव: भारत ने 2022 में “वीटो पहल” (वीटो इनिशिटिव) का प्रस्ताव रखा, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि यदि कोई स्थायी सदस्य वीटो शक्ति का उपयोग करता है, तो उसे महासभा में आकर स्पष्ट रूप से कारण बताना आवश्यक हो। यह पहल सुरक्षा परिषद को अधिक जवाबदेह बनाना चाहती है। (3) संविधान संशोधन की बाधाओं को समझने की रणनीति:-भारत यह अच्छी तरह जानता है कि सुधार प्रक्रिया में स्थायी सदस्यों की सहमति अनिवार्य हैइसलिए वह सहमत प्रयास, गठबंधन और कूटनीतिक दबाव की रणनीति पर निर्भर है। उसे यह समझ है कि चीन या अन्य बड़े सदस्य विरोध कर सकते हैं।(4)बहुबाहु साझेदारी एवं समर्थन जुटाने का कदम:-भारत ने अनेक देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवाद बढ़ाए हैं। उदाहरणतः भूटान ने समर्थन दिया। रूस ने सार्वजनिक भाषण में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अधिक से अधिक देश इस प्रस्ताव का समर्थन करें और इसे व्यापक वैश्विक बहुमत मिले।

साथियों बात अगर हम चुनौतियाँ एवं निहिताएँ को समझने की करें तो (1) स्थायी सदस्यों काविरोध: यदि कोई पी5 सदस्य (जैसेचीन) इस प्रस्ताव का विरोध करे और वह सुधार प्रस्ताव को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत न करे, तो सुधार प्रक्रिया ठप हो सकती है।(2)भविष्य की शक्ति संरचना बदलने का भय:-कुछ देशों को डर है कि यदि कई देशों को वीटो शक्ति दी जाए, तो निर्णय प्रक्रिया अधिक जटकशील हो सकती है,अर्थात् निर्णय लेने में समय बढ़ सकता है।(3)नवस्थापित सदस्यों की जवाबदेही व विश्वास:-यदि नए सदस्यों को वीटो शक्ति दी जाए, तब उनसे उम्मीद की जाएगी कि वे इसे विवेकपूर्ण एवं अंतरराष्ट्रीय हितों की दिशा में उपयोग करें। यदि यह शक्ति दुरुपयोग में चली जाए, तो परिषद की साख पर प्रश्न खड़ा होगा।(4)समयनिष्ठता बनाए रखना:-प्रस्तावना के अनुसार सुधार जल्द करना आवश्यक है, किंतु समय की कसौटी यह है कि महासभा और राष्ट्रीय अनुमोदन प्रक्रिया समय ले सकती है। इस बीच विश्व में संघर्ष, युद्ध या अन्य आपात स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं (5) भागीदारी की असमानता और मानदंड विवाद:-यदि नए सदस्यों को चुने जाने का मानदंड स्पष्ट न हो, तो विवाद उत्पन्न हो सकते हैं -किन देशों को स्थायी सदस्यता मिले, किन देशों को न मिले,और यह वैश्विक ध्रुवीकरण को जन्म दे सकता है।

अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, संयुक्त राष्ट्र महासभा की 29 सितंबर 2025 तक की सभा ने वास्तव में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव को,भारत को संयुक्त राष्ट्र रक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाना और वीटो शक्ति देना वैश्विक स्तर पर चर्चा योग बनाए रखा। इस प्रस्ताव ने उजागर किया कि विश्व व्यवस्था बदल रही है और वैश्विक समुदाय अब पुराने ढाँचे से आगे बढ़ने की मांग कर रहा है।भारत ने इस प्रस्ताव को न केवल एक व्यक्तिगत आकांक्षा के रूप में उठाया है, बल्कि एक व्यापक दृष्टि के साथ, वह यह दिखाना चाहता है कि वैश्वीकरण, विकेंद्रीकरण और बहुध्रुवीय शक्ति संरचनाएं अब समय की माँग हैं।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318*