लुधियाना: दयानंद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पिछली गत दिवस भारी घपलो की चर्चा रही जिन में अकाउंट से विवाह के अधिकारी भी शामिल बताए जाते हैं बताया जाता है कि इस सिलसिले में इंटरनल और एक्सटर्नल दोनों तरह का ऑडिट हुआ और उसकी रिपोर्ट दयानंद अस्पताल की मैनेजिंग समिति के प्रधान को भेज दी गई यह भी बताया जाता है कि यह ऑडिट मैनेजिंग कमेटी के प्रधान के कहने पर ही हुआ था और इसमें कई तरह के भारी अनियमिताएं सामने आई जिसमें जमीनों की खरीद के मामलों को लेकर पहले जमीन एक अकाउंटेंट के नाम पर खरीदी गई बाद में उसे अस्पताल को ट्रांसफर कर दिया गया कहा जाता है कि इसमें काफी हेरा फेरी हुई है इसके अलावा दवा कंपनियों से रिश्वत के मामलों की चर्चा भी अस्पताल में छाई रही। कई ताङू और आशिक मिजाज अधिकारियों की चर्चाएं भी अस्पताल के वातावरण में छाई रही इसमें डॉक्टर भी पीछे नहीं रहे।
नई कमेटी ने दावो के विपरीत नहीं उठाया भ्रष्टाचार से पर्दा
अस्पताल में नई कमेटी बनने पर अस्पताल के कोई डॉक्टरो और अधिकारियों पर मातम छाया रहा कि कहानी नई कमेटी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच शुरू न करवा दे परंतु जब कई महीने बीतने के बाद भी अस्पताल की मैनेजिंग समिति के प्रधान अथवा सचिव ने इस मामले में किसी प्रकार की जांच के ना तो निर्देश दिए और ना ही ऑडिट की रिपोर्ट को सामने रखकर जांच शुरू करवाई तो सब ने राहत की सांस ली और मान लिया कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा।
भ्रष्टाचार की रिकवरी मरीजों की जेब से
आशा के विपरीत अस्पताल की मैनेजिंग समिति ने भ्रष्ट अधिकारियों और डॉक्टरो से रिकवरी करने की बजाय अस्पताल मे उपचार के दाम बढ़ाने की ओर ध्यान दिया जिसका आर्थिक बार मरीजों की जेब पर पड़ा जो आज भी पड रहा है अस्पताल में भर्ती होने पर उपचार से पहले ही रूम चार्जेस, इमरजेंसी और आईसीयू के दाम फिक्स कर दिए गए और मरीजों को एडवांस जमा करने के लिए कहा जाने लगा इसके बाद उपचार और दवाइयां के दाम जमा करने को कहा जाने लगा मरीज को यह नहीं बताया की दवाइयां और उपचार के दाम पहले से कितने बढ़ा दिए गए हैं और ना ही इसका कारण बताया गया । भुक्त भोगी मरीज इस बात से हैरान हो जाते हैं कि वह दयानंद अस्पताल को चैरिटेबल अस्पताल समझ कर आए थे परंतु यह तो किसी कारपोरेट से कम नहीं ।
अस्पताल की कमेटी में ‘अपनों’ को किया शामिल, निस्वार्थ काम करने वाले बने गैरचमचागिरी और मातम पुर्सी के आलम में अस्पताल की मेनेजिंग सोसाइटी में ‘अपनों’ को शामिल किया जो मैनेजिंग समिति का दुख दर्द समझते हैं और अस्पताल को चैरिटेबल से कॉर्पोरेट बनाकर मैनेजिंग समिति के दिशा निर्देशों का पालन करते हैं परंतु इस आलम में बहुत से ऐसे लोगों को दरकिनार कर दिया गया जो निस्वार्थ भाव से सेवा में लगे हुए थे और दयानंद अस्पताल के कामों में हर प्रकार का सहयोग कर रहे थे कहते हैं कि यह सिलसिला दशकों से जारी है क्योंकि अस्पताल की मेनेजिंग सोसाइटी में दशकों से वर्चस्व स्थापित किए हुए लोग अपना वर्चस्व छोड़ना नहीं चाहते और उनकी जी हजूरी करने वाले लोग ही आज कमेटी में शामिल किए गए हैं।