2 अक्टूबर 2025-महात्मा गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और विजयादशमी का ऐतिहासिक सांस्कृतिक अद्भुत व अनूठा संयोग-दो पर्व,एक ही संदेश

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2 अक्टूबर 2025-महात्मा गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और विजयादशमी का ऐतिहासिक सांस्कृतिक अद्भुत व अनूठा संयोग-दो पर्व,एक ही संदेश

विजयादशमी हमें साहस देती है, गांधी जयंती हमें मार्गदर्शन देती है कि इस लड़ाई को किस तरह नैतिक और अहिंसक तरीके से लड़ा जाए

आज के युवाओं के सामने चुनौतियां बदल गई हैं,जहां गांधी जी ने साम्राज्यवाद से लड़ा,वहीं आज हमें भ्रष्टाचार,हिंसा,नफरत और पर्यावरणीय संकट जैसी “आधुनिक रावणों”से लड़ना है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत एक ऐसा देश है जिसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा हजारों वर्षों से दुनियाँ को राह दिखाती रही है। यहां के पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि उनमें जीवन-दर्शन, नैतिकता और सामाजिक संदेश भी निहित होते हैं। वर्ष 2025 में ऐसा ही एक ऐतिहासिक अवसर सामने आ रहा है। 2 अक्टूबर 2025 को महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और विजयादशमी (दशहरा) एक साथ मनाई जाएगी। गांधीव शास्त्री जयंती हर साल 2 अक्टूबर को निश्चित रूप से आती है, जबकि विजयादशमी हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती है,किंतु मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि इस बार दोनों का एक साथ पड़ना भारतीय समाज और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक गहरी प्रेरणा देता है।यह केवल तिथियों का मेल नहीं है,बल्कि मूल्यों का संगम है।गांधी जयंती सत्य,अहिंसा और नैतिकता का प्रतीक है,जबकि विजयादशमी अच्छाई की बुराई पर जीत का स्मरण कराती है।

साथियों बात अगर हम महात्मा गांधी लाल बहादुर शास्त्री जयंती क़े महत्व को समझने की करें तो,महात्मा गांधी का नाम भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में शांति,अहिंसा और सत्य के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (गुजरात)में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने अपने जीवन को साधारण वस्त्र,सरल जीवनशैली और उच्च आदर्शों के लिए समर्पित कर दिया।उनका सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन भारत की आज़ादी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की सबसे बड़ी ताकत को बिना हिंसा और हथियार के चुनौती दी और यह सिद्ध कर दिया कि अहिंसा ही सबसे बड़ी शक्ति है।गांधीजी का योगदान केवल भारत की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं रहा। उनका प्रभाव विश्वभर में पड़ा। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए गांधी के अहिंसात्मक तरीकों को अपनाया नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में गांधी की शिक्षाओं को प्रेरणा बनाया।संयुक्त राष्ट्र ने भी 2 अक्टूबर को “इंटरनेशनल डे ऑफ़ नॉन- वाओलेंस” घोषित कर गांधी के विचारों की वैश्विक मान्यता को स्वीकार किया।इस दृष्टि से 2 अक्टूबर न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणादायक दिन है,लाल बहादुर शास्त्री जयंती का महत्व 2 अक्टूबर 1904 को जन्मे लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति के ऐसे आदर्श नेता थे, जिन्होंने अपनी सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति से देशवासियों के दिलों में अमिट स्थान बना लिया। वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने और अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने देश को कठिन परिस्थितियों में संभालने का काम किया। शास्त्रीजी का जीवन बेहद सरल था। वे मानते थे कि नेता का आचरण उसके शब्दों से अधिक प्रभावी होना चाहिए।1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्रीजी का नेतृत्व ऐतिहासिक रहा। उन्होंने पूरे देश को “जय जवान,जय किसान”का नारा दिया,जिसने देश की एकता और आत्मनिर्भरता को मजबूती दी। यह नारा आज भी भारत की रीढ़,सेना और किसान, की अहमियतको दर्शाता है।शास्त्रीजी का योगदान यह साबित करता है कि नेतृत्व केवल बड़े भाषणों से नहीं, बल्कि सादगी और कर्मनिष्ठा से भी किया जा सकता है।

साथियों बात अगर हम विजयादशमी (दशहरा) का सांस्कृतिक महत्व को समझने की करें तो,विजयादशमी भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर वर्ष आश्विन मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने इस दिन रावण का वध किया और सीता माता को मुक्त कराया। इसलिए दशहरा को “विजयादशमी” कहा जाता है। इस दिन देशभर में रामलीलाओं का मंचन होता है और रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले दहन किए जाते हैं।दशहरे का संदेश केवल धार्मिक नहीं, बल्कि दार्शनिक भी है। यह हमें यह सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो,अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है। रावण विद्वान और पराक्रमी ब्राह्मण था,लेकिन उसका अहंकार और क्रोध ही उसके विनाश का कारण बने। इस प्रकार दशहरा हमें यह शिक्षा देता है कि मानव जीवन में विनम्रता, संयम और धर्म का पालन ही स्थायी सुख और सफलता दिला सकता है।आज भी भारत के कोने-कोने में दशहरा रावण-दहन के साथ मनाया जाता है। यह केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि समाज को यह याद दिलाने का प्रतीक है कि बुराइयों का अंत करना ही जीवन का उद्देश्य है।

साथियों बात अगर हम 2025 का संयोग: गांधी और राम का मिलन को समझने की करें तोअब जब हम 2 अक्टूबर 2025 की ओर देखते हैं, तो यह केवल कैलेंडर का संयोग नहीं है, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता है।गांधी ने अंग्रेज साम्राज्य के अहंकार और अत्याचार को अहिंसा और सत्याग्रह से हराया।श्रीराम ने रावण जैसे अत्याचारी राजा को धर्म और शौर्य से

पराजित किया।दोनों ही प्रसंग हमें बताते हैं कि बुराई चाहे हिंसा, लालच, घमंड या अन्याय के रूप में हो, उसका अंत निश्चित है। गांधी और राम दोनों ने हमें यह सिखाया कि अच्छाई की शक्ति हमेशा बुराई से बड़ी होती है,बस हमें धैर्य और साहस से उसका सामना करना चाहिए।महात्मा गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य जैसे “रावण” को सत्य और अहिंसा से हराया।श्रीराम ने रावण जैसे राक्षस को धर्म और शौर्य से पराजित किया।दोनों ही प्रसंग हमें यह बताते हैं कि बुराई चाहे किसी भी रूप में आए, बाहरी आक्रमण हो या आंतरिक लालच और घमंड,उसका अंत निश्चित है।यह संयोग हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि गांधी जी के मूल्यों और रामायण की शिक्षाओं को आज की दुनिया में किस तरह लागू किया जा सकता है।

साथियों बात अगर हम रावण और गांधी: दोनों के विरोधाभास को समझने की करें तो,इतिहास और पुराणों में जब हम रावण और गांधी को देखते हैं, तो दोनों एकदम विपरीत ध्रुव दिखाई देते हैं।रावण अत्यधिक विद्वान और ब्राह्मण होते हुए भी अपने अहंकार और वासनाओं के कारण पतन का कारण बना।गांधी एक साधारण परिवार से होते हुए भी आत्मसंयम, सत्य और अहिंसा के कारण “महात्मा” कहलाए।यह तुलना हमें यह सिखाती है कि व्यक्ति का मूल्य केवल उसके ज्ञान या शक्ति से नहीं,बल्कि उसके चरित्र और आदर्शों से तय होता है।रावण ने ज्ञान का उपयोग सत्ता और दंभ के लिए किया, जबकि गांधी ने आत्मज्ञान का उपयोग स्वतंत्रता और न्याय के लिए किया।बुराई पर अच्छाई की विजय: साझा संदेश-गांधी जयंती और विजयादशमी दोनों का मूल संदेश एक ही है- अंततः सत्य और अच्छाई ही विजयी होती है।दशहरा कहता है कि बुराई का अंत शौर्य और धर्म से होता है।गांधी जयंती कहती है कि हिंसा और अन्याय का अंत सत्य और अहिंसा से किया जा सकता है।आज की दुनियाँ में यह संदेश और भी प्रासंगिक है, जहां आतंकवाद, युद्ध, हिंसा, भेदभाव और पर्यावरणीय संकट जैसे “आधुनिक रावण” सामने खड़े हैं,ऐसे में राम और गांधी दोनों के आदर्श हमें रास्ता दिखाते हैं।

साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को समझने की करें तो,2 अक्टूबर 2025 को यह डबल अवसर भारत को एक अनूठा संदेश देगा:राष्ट्रीय स्तर पर, यह हमें याद दिलाएगा कि हमें न केवल अपने अतीत के नायकों का सम्मान करना है, बल्कि उनके मूल्यों को आज के समाज में जीवित रखना है।अंतरराष्ट्रीय स्तरपर, दुनिया देखेगी कि भारत का सांस्कृतिक संदेश केवल धार्मिक या राजनीतिक सीमाओं तक नहीं है, बल्कि यह सार्वभौमिक मानवता का प्रतीक है।गांधी का संदेश पश्चिम से लेकर अफ्रीका तक आज भी प्रासंगिक है, और रामायण के आदर्श एशिया से कैरिबियन तक लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं।गांधी जी केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका से लेकर अमेरिका तक उनके विचारों ने बड़े आंदोलनों को जन्म दिया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को अपनाकर अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन को सफल बनाया। नेल्सन मंडेला ने भी अपार्थाइड के खिलाफ गांधी से प्रेरणा ली।वहीं, रामायण केवल भारत तक नहीं बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया,इंडोनेशिया, थाईलैंड,कंबोडिया,मलेशिया,तक अपनी छाप छोड़ चुकी है।इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम-बहुल देशमें भी रामायण कासांस्कृतिक महत्व है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि 2 अक्टूबर 2025 केवल एक तारीख नहीं,बल्कि तीन महान संदेशों का संगम है। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया, शास्त्रीजी ने सादगी और कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत किया और विजयादशमी ने यह सिद्ध कर दिया किअच्छाई हमेशा बुराई पर विजय पाती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें न केवल व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर भी इन मूल्यों को आत्मसात करना होगा।इस संयोग को केवल उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि एक नई दिशा तय करने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। यह दिन भारत को दुनिया के सामने शांति,नैतिकता और सहिष्णुता का प्रतीक बनाने का अवसर देता है। वास्तव में, 2 अक्टूबर 2025 मानवता को एक नई रोशनी और नई राह दिखाने वाला ऐतिहासिक दिन बन सकता है।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *

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