ज़ेब से पैसे व मोबाइल कैसे निकल जाते हैं, पीड़ितों को पता ही नहीं चलता-हुनरमंद चोरों को पब्लिक डोमेन में घुमाएं ताकि जनता पहचान कर सतर्क रहे
ज़ेब से मोबाइल व पैसे उड़ाने वालों पर नक़ेल क़सनें भारतीय न्याय संहिता 2023 में संशोधन की ज़रूरत- उम्र कैद की कठोर कारावास के डोमेन में लाया जाए- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर वर्तमान आधुनिक और डिजिटल युग में अपराधों का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। जेबकटी, मोबाइल चोरी और डिजिटल वॉलेट से धन उड़ाने जैसी घटनाएं अब केवल स्थानीय समस्या नहीं रहीं, बल्कि एक वैश्विक चुनौती बन चुकी हैं। आज के हुनरमंद चोर इतनी सफाई से काम करते हैं कि पीड़ितों को पता ही नहीं चलता कि उनकी जेब से पैसा या मोबाइल कब और कैसे गायब हो गया। यह अपराध केवल आर्थिक नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि सामाजिक असुरक्षा, मनोवैज्ञानिक दबाव और कानून व्यवस्था पर भी गहरा असर डालता है।पीड़ित अक्सर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते- 25 पर्सेंट तक ही रिपोर्ट दर्ज होने का मैंने अंदाज लगाया हूं । रिपोर्टिंग न होने के कारण अपराधियों का डिटेक्शन और ट्रैकिंग मुश्किल होती है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं कि आधुनिक शहरी भीड़, डिजिटल पेमेंट का प्रसार और त्योहारों पर बढ़ी भीड़-मास्ट्रेस का मिलन एक ऐसा परिदृश्य पैदा करता है जहाँ पारंपरिक जेबकटी अब केवल शौक़ीन अपराध नहीं बल्कि संगठित अपराधियों के लिए एक व्यवस्थित मुनाफ़े का साधन बन गया है। मोबाइल चुराने की कला सिर्फ़ “समर्थता” नहीं, बल्कि डिजिटलीकृत आर्थिक चोरी,जैसे मोबाइल वॉलेट रिक्त कर देना, ओटीपी चुराकर ट्रांज़ैक्शन करनें में तब्दील हो चुकी है। दुनियाँ के कई बड़े शहरों में ऐसा देखा गया है कि भीड़-भाड़ वालेसार्वजनिक क्षेत्र और त्यौहारों के आयोजन अपराधियों के लक्षित क्षेत्र बन जाते हैं। भारत में भीइस ओर अपराध तेज़ी से बढ़े है और अब यह अकेले व्यक्तिगत अपराध न रहकर रैकेट-आधारित संगठनों का हिस्सा बनते जा रहे है।हुनरमंद चोरों की विशेषता है उनकी चतुराई, टीमवर्क और भीड़-भाड़ का मूलभूत उपयोग। वे शोषण के ऐसे तरीक़े अपनाते हैं जिनमें पीड़ितों को घटना का एहसास तब होता है जब बहुत देर हो चुकी होती है। मोबाइल की चोरी के साथ ही डिजिटल धन का दुरुपयोग सिम स्वैप, ओटीपी का व्यवधान, फोन चोरी कर फिर उससे बैंक एप्स के लॉगिन,जैसी तकनीकें जोड़ दी गई हैं। नतीजा:पीड़ित न केवल एक वस्तु खोते हैं बल्कि उनकी आर्थिक सुरक्षा, निजी डाटा और भावनात्मक स्थिरता भी प्रभावित होती है। समाज पर इससे बड़ा प्रभाव पड़ता है सार्वजनिक जगहों पर असुरक्षा का भाव, त्योहारों पर घबराहट और छोटे व्यवसायियों के लिए ग्राहकों का कम आना।
साथियों बात अगर हम हुनरमंद चोरों की कार्यशैली और उनकी पहचान की करें तो,आधुनिक समय के जेबकतरे और मोबाइल चोर पारंपरिक चोरों से बिल्कुल अलग हैं। ये अपराधी न केवल शारीरिक रूप से चालाक होते हैं बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद सजग रहते हैं। भीड़-भाड़ वाली जगहों जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, बाजार, धार्मिक मेले, त्योहारों के आयोजन, और मॉल्स में यह अपराधी अपनी “कला” का प्रदर्शन करते हैं।वे भीड़ का फायदा उठाकर मोबाइल और पर्स निकाल लेते हैं।कई बार दो-तीन लोगों का गैंग बनाकर काम करते हैंएक ध्यान भटकाता है, दूसरा चोरी करता है और तीसरा माल लेकर तुरंत भाग जाता है।चोरी के तुरंत बाद मोबाइल का सिम निकालकर या उसे स्विच ऑफ करके ब्लैक मार्केट में बेच देते हैं।इस स्थिति में पुलिस व जनता दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चेहरे पहचानना और अपराधियों को सार्वजनिक रूप से बेनकाब करना। अगर इन्हें पब्लिक डोमेन में उजागर किया जाए तो जनता सतर्क रहेगी और अपराधियों पर दबाव बनेगा।नवरात्र, दशहरा, दिवाली जैसे उत्सवों में लोगों का मन त्यौहार, खरीदारी और उत्साह में रम जाता है।अपराधी इन्हीं मौकों पर सक्रिय होते हैं क्योंकि सुरक्षा व्यवस्था अक्सर सामान्य से ढीली रहती है और भीड़ का भौतिक वातावरण अपराधियों को कामयाबी देता है। धार्मिक स्थलों, मॉल, मेट्रो स्टेशन, लोकल ट्रेन और मेले — ये सब उच्च जोखिम वाले स्थल बन जाते हैं। इसलिए त्योहारों के दौरान न केवल अतिरिक्त पुलिस बल की जरूरत है बल्कि विशिष्ट तकनीकी और सामुदायिक उपायों की भी आवश्यकता है।त्योहारों में भीड़ का फायदा उठाकर जेबकटी और मोबाइल चोरी बढ़ जाती है।लोग उत्सव के माहौल में लापरवाह हो जाते हैं और सतर्कता कम हो जाती है।कई बार चोर धार्मिक स्थलों, पंडालों और रथयात्राओं को भी निशाना बनाते हैं।इसलिए पुलिस को विशेष रूप से त्योहारों के समय अपराध नियंत्रण शाखा और मोबाइल स्क्वाड जैसी विशेष इकाइयां गठित करनी चाहिए।ड्रोन सर्विलांस, सीसीटीवी और इंटेलिजेंस नेटवर्क को मजबूत करके ही इस चुनौती से सख़्ती निपटा जा सकता है।
साथियों बात अगर हम मोबाइल चोरों और जेबकतरों के लिए कड़ी सज़ा: हत्या और रेप जैसे अपराधों की श्रेणी में लाने की मांग को समझने की करें तो,भारतीय न्याय संहिता 2023 में चोरी के मामलों के लिए जो धाराएं लागू होती हैं, उनमें अधिकतम सजा 3 से 7 साल तक की है। लेकिन मोबाइल और डिजिटल धन की चोरी आज के युग में सिर्फ मामूली चोरी नहीं रही। यह अपराध (1)सैकड़ों लोगों को कंगाल बना देता है (2)पीड़ितों का मानसिक संतुलन बिगाड़ देता है (3)डिजिटल फाइनेंस की विश्वसनीयता पर चोट करता है।इसलिए कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे अपराधों को केवल “संपत्ति से जुड़ा अपराध” न मानकर, इसे गंभीर सामाजिक अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए। यदि हत्या और रेप के मामलों की तरह कड़ी धाराएं और कठोर कारावास या उम्रकैद की सजा दी जाए, तो अपराधियों में भय व्याप्त होगा और घटनाओं में बहुत कमी आएगी।
साथियों बात अगर हम ऐसे अपराधों की जमानत और कानून की खामियां व संशोधन की आवश्यकता को समझने की करें तो,वर्तमान भारतीय न्याय संहिता 2023 में चोरी और मोबाइल लूट से जुड़े अपराधों के आरोपियों को अक्सर जमानत मिल जाती है।यही सबसे बड़ीसमस्या है (1) आरोपी जेल से बाहर आते ही दोबारा अपराध करने लगते हैं।(2) वे नई-नई जगहों पर जाकर सैकड़ों लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं। (3) पीड़ितों को न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं।इस स्थिति में जरूरी है कि कानून में संशोधन करके ऐसे अपराधों को गैर-जमानती श्रेणी में डाला जाए। साथ ही अपराधियों के लिए “दोहराव अपराध” की सख्त धाराएं लागू हों। यदि किसी व्यक्ति पर 2-3 बार ऐसे अपराध का आरोप सिद्ध हो तो उसे सीधे उम्रकैद या 20 साल से अधिक कारावास की सख़्त सजा दी जाए।
साथियों बात अगर हम वर्तमान समय में कानूनी खामियाँ और सुधार की आवश्यकता को समझने की करें तोवर्तमान आपराधिक कानून में कई ऐसी बातें हैं जो आधुनिक डिजिटल- युग की चुनौतियों के अनुरूप नहीं रहीं। मैं ऐसा मानता हूं कि मुख्य समस्याएँ और मेरे सुझाए गए सुधार इस प्रकार हैं (1) जमानत नीति और सख्ती की कमी,कई बार ऐसे आरोपियों को जमानत मिल जाती है और वे फिर से सक्रिय हो जाते हैं। समाधान: रेपीट-ऑफेन्डर धाराओं को कठोर कर,डिजिटल- आधारित और त्योहार-लक्षित अपराधों के लिए गैर-जमानती धाराएँ प्रस्तावित की जानी चाहिए। (2) धारा -संशोधन और संवैधानिक परखा-चोरी को जब सामाजिक विनाश के पैमाने पर मापा जाए, तो ऐसा अपराध ‘सामाजिक अपराध’ मानकर उसमें सख्त दंड और सुधारात्मक उपाय लागू किये जाने चाहिए। लेकिन यह ध्यान रखा जाए कि किसी भी संशोधन में संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, विधायी प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायोचित होनी चाहिए। (3) रैकेट और संगठित अपराध पर केंद्रित धाराएँ- छोटे अपराध को संगठनात्मक स्तर पर दोषी ठहराने के लिए गिरोह-रैकेट धाराएँ (आर्गेनाइजेड क्राइम, क्रिमिनल कांस्पिरेसी, एंटीगैंग लॉस) प्रभावी बनानी होगी; साथ ही धनगमन और संपत्ति जब्ती के कानून तेज़ करने होंगे ताकि मुखिया का आर्थिक आधार काटा जा सके। (4) फास्ट-ट्रैक कोर्ट और खास जाँच टास्क फोर्स-डिजिटल धन से जुड़े मामलों में सबूत जल्दी मिट जाते हैं। इसलिए ऐसे मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक न्यायालय और विशेष जाँच टीम बनानी चाहिए।(5)(a) पुलिसिंग मॉडल-विशेष शाखा, डेटाबेस और सामुदायिक साझेदारी – पुलिसिंग में सुधार बहु-आयामी होना चाहिए,यह केवल फोर्स बढ़ाने का मामला नहीं है। कुछ व्यावहारिक कदम:मोबाइल/जेबकटी स्पेशल स्क्वाड: शहरों और बड़े कस्बों में ऐसी स्पेशल यूनिट जो भीड़ वाले इलाकों और त्योहारों में तैनात रहे, स्पॉट इंटेलिजेंस और रैकेट-ट्रैकिंग करे (b) रोज़ाना हाज़िरी और नज़र-रहित निगरानी : मेरा सुझाव कि ऐसे अपराधियों की रोज़ थाने में हाज़िरी करानी चाहिए,यह तभी संवैधानिक और प्रभावी होगा जब उसे पुलिस रिकॉर्ड और निगरानी के साथ जोड़ा जाए; रोज़ हाज़िरी की नीतियाँ तब उपयोगी होंगी यदि वे न्यायालयिक आदेशों और पुनर्वसन कार्यक्रमों के साथ जुड़ी हों।
साथियों बात कर हम कॉल टू एक्शन,नागरिकों के लिये 10 तुरंत करने योग्य सुझावों को समझने की करें तो (1)भीड़ में अपने मोबाइल और पर्स को अंदर वाली नकदी-थैली में रखें।(2) त्योहारों पर अनावश्यक ध्यान भटकाने वाले लोगों से दूरी बनायें।(3) मोबाइल में मोबाइल- लॉक, बैकअप और रिमोट- शटडाउन फ़ीचर सक्रिय रखें।(4)संदिग्ध गतिविधि देखकर तुरन्त नज़दीकी पुलिस या हेल्पलाइन को सूचित करें।(5) किसी भी चोरी की घटना को रिपोर्ट करें,रिपोर्टिंग घटना को रोकने का पहला कदम है।(6) अपने बैंक/उपयोग किए गए ऐप्स में अलर्ट और 2 एफए चालू रखें। (7) अज्ञात लोगों को अपने फोन की स्क्रीन न दिखाएँ; सिम/बैंक डिटेल साझा न करें।(8) अगर हम किसी को देखते हैं जो बार-बार भीड़ में संदिग्ध व्यवहार कर रहा हो तो उसकी फोटो लेना (कानूनी दायरे में) और पुलिस को सौंपना उपयोगी हो सकता है।(9) बच्चों को सार्वजनिक सुरक्षा का प्रशिक्षण दें ताकि वे भीड़ में कभी अलग न हों।(10) पड़ोस और कम्युनिटी लेवल पर “वॉच ग्रुप” बनायें और पुलिस के साथ संपर्क रखें।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि राष्ट्रीय स्तरपर मोबाइल चोरों,ज़ेब से पैसे उड़ाने वाले हुनरमंद चोरों को हत्या व रेप की धाराओं में लानें की सख़्त ज़रूरत,ज़ेब से मोबाइल व पैसे उड़ाने वालों पर नक़ेल क़सनें भारतीय न्याय संहिता 2023 में संशोधन की ज़रूरत-उम्र कैद की कठोर कारावास के डोमेन में लाया जाए।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *