अनुवादक,दुभाषिए और भाषा विशेषज्ञ दुनियाँ को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं
जब शब्दों का सही अनुवाद न हो तो गलत संदेश फैल सकता है, अनुवादक इन गलतफहमियों को रोककर राष्ट्रों को आपसी विश्वास और शांति की ओर ले जाते हैं- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर मानव सभ्यता के विकास में भाषा की भूमिका हमेशा ही केंद्रीय रही है। भाषा वह माध्यम है जो विचारों, भावनाओं, ज्ञान और अनुभवों को पीढ़ी दर पीढ़ी तथा राष्ट्र से राष्ट्र तक पहुँचाती है। किंतु विश्व की 7,000 से अधिक भाषाओं के बीच संचार स्थापित करना स्वाभाविक रूप से कठिन है। यहीं पर अनुवादक (ट्रांसलेटर्स), दुभाषिए (इंटरपरेटर्स) और भाषा विशेषज्ञ दुनियाँ को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं। वे भाषाई दीवारों को तोड़कर आपसी समझ, संवाद और सहयोग की नींव रखते हैं। इन्हीं भाषा पेशेवरों के योगदान को सम्मान देने हेतु प्रतिवर्ष 30 सितंबर को “अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस” (इंटरनेशनल ट्रांसलेशन डे) मनाया जाता है। वर्ष 2025 में इसकी थीम है-“अनुवाद, एक ऐसे भविष्य को आकार देना जिस पर आप भरोसा कर सकें” (ट्रांसलेशन: शेपिंग द फ्यूचर यू कैन ट्रस्ट) मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि भाषाओं की जंजीरों को तोड़ने में अनुवादकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। वैश्विक मंचों पर नेताओं की बात को यदि उनकी ही भाषा में समझा पाना संभव न होता,तो अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति कभी सफ़ल नहीं हो पाती। उदाहरणस्वरूप, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी, रूसी राष्ट्रपति पुतिन, इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू या ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर किसी वैश्विक शिखर सम्मेलन में बोलते हैं, तो उनकी बातों को विभिन्न भाषाओं में तुरंत अनुवादितकिया जाता है। यही अनुवादक सुनिश्चित करते हैं कि विश्व के हर प्रतिनिधि तक संदेश सही और सटीक रूप से पहुँचे। इस प्रकार अनुवादक सिर्फ शब्दों का नहीं,बल्कि संस्कृतियों, दृष्टिकोणों और विचारों का आदान-प्रदान संभव बनाते हैं।वर्ष 2025 की थीम “अनुवाद, एक ऐसे भविष्य को आकार देना जिस पर आप भरोसा कर सकें” यह संदेश देती है कि आने वाले समय में विश्व व्यवस्था,शिक्षा,विज्ञान,कूटनीति और सांस्कृतिक संवाद सब अनुवादकों के माध्यम से ही संभव होंगे। इस भविष्य पर भरोसा तभी किया जा सकता है जब भाषा पेशेवर अपनी निष्ठा, सटीकता और मानवीय संवेदनाओं के साथ कार्य करें।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस 2025 भाषाओं के सेतु संस्कृतियों का संगम और वैश्विक संवाद का आधार।
साथियों बात अगर हम अनुवाद: संस्कृतियों को जोड़ने वाला सेतु को समझने की करें तो,अनुवाद केवल शब्दों का परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह संस्कृतियों,परंपराओं और मान्यताओं को जोड़ने की प्रक्रिया है। जब जापान की कोई साहित्यिक कृति हिंदी में पढ़ी जाती है, या भारत का कोई उपन्यास स्पेनिश में पहुँचता है, तो यह सिर्फ भाषाई रूपांतरण नहीं बल्कि सांस्कृतिक आदान- प्रदान भी होता है।यही कारणहै कि अनुवादक सटीक “संस्कृति-दूत” (कल्चरल अम्बास्साडोर्स) भी माने जाते हैं। भारत और अनुवाद की परंपरा,-भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है जहाँ 22 अनुसूचित भाषाएँ और सैकड़ों बोलियाँ प्रचलित हैं।भारतीय सभ्यता में अनुवाद की परंपरा प्राचीन काल से रही है-चाहे वह संस्कृत ग्रंथों का फारसी और अरबी में अनुवाद हो या फिर उपनिषदों का लैटिन में अनुवाद।आधुनिक भारत में संविधान भी 22 भाषाओं में उपलब्ध है, जो अनुवादकों की भूमिका की महत्ता को और सटीकता से स्पष्ट करता है।
साथियों बात अगर हम वैश्विक कूटनीति और अनुवाद का संगम तथा संयुक्त राष्ट्र और 2025 की प्रासंगिकता को समझने की करें तो संयुक्त राष्ट्र ,यूरोपीय संघ, ज़ी20, ब्रिक्स या अन्य किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन की बैठकों में अनुवादकों की भूमिका आधारशिला की तरह होती है। वे न केवल भाषाई संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं, बल्कि शांति, विश्वास और सहयोग की प्रक्रिया को भी जीवित रखते हैं। संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाएँ-अरबी, अंग्रेजी, चीनी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश,साथ ही अनेक क्षेत्रीय भाषाओं का भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में यदि पेशेवर अनुवादक न हों तो संवाद और निर्णय-प्रक्रिया ठहर सी जाएगी।संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को “शांति और विश्वास का वर्ष” घोषित किया है। इस घोषणा का सीधा संबंध अनुवादकों की भूमिका से है, क्योंकि संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही संघर्षों को कम किया जा सकता है।भाषा पेशेवर यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी राष्ट्र या संस्कृति गलतफ़हमी का शिकार न हो, और हर संवाद पारदर्शिता और स्पष्टता से संपन्न हो।आज की दुनिया में बहु भाषावाद शिक्षा,अनुसंधान, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक समावेशन की कुंजी बन चुका है। अनुवादक इस बहुभाषिक दुनिया में सबको जोड़ने का कार्य करते हैं। यूनेस्को और यूएन लगातार इस बात पर बल देते रहे हैं कि बहुभाषावाद न केवल सांस्कृतिक विविधता को बचाता है,बल्कि ज्ञान समाज के निर्माण में भी बहुत हद तक सहायक है।
साथियों बात अगर हम प्रौद्योगिकी और अनुवाद का भविष्य तथा अनुवाद और विश्व शांति को समझने की करें तो,कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन ट्रांसलेशन और स्वचालित अनुवाद उपकरणों ने अनुवाद की दुनियाँ में क्रांति ला दी है। गूगल ट्रांसलेट, डीपल जैसे उपकरणों ने आम लोगों के लिए भाषा अवरोध को कम किया है। फिर भी, मशीन कभी भी मानवीय संवेदना, सांस्कृतिक संदर्भ और भावनात्मक सूक्ष्मताओं को पूरी तरह नहीं समझ सकती। यही कारण है कि 2025 की थीम “अनुवाद, एक ऐसे भविष्य को आकार देना जिस पर आप भरोसा कर सकें” मानवीय अनुवादकों की अपरिहार्यता को रेखांकित करती है।दुनियाँ में अधिकांश युद्ध और संघर्ष गलतफहमियों और संवादहीनता से उत्पन्न होते हैं। जब शब्दों का सही अनुवाद न हो तो गलत संदेश फैल सकता है। अनुवादक इन गलतफहमियों को रोककर राष्ट्रों को आपसी विश्वास और शांति की ओर ले जाते हैं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो अनुवादक केवल भाषा विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि विश्व शांति के निर्माता भी हैं।
साथियों बात अगर हम अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस क़े इतिहास को समझने की करें तो,30 सितंबर को अनुवाद दिवस मनाने की परंपरा सेंट जेरोम के सम्मान में शुरू हुई थी, जिन्हें बाइबिल का लैटिन भाषा में अनुवादक माना जाता है। लेकिन इसे आधिकारिक मान्यता 2017 में मिली, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ए/आरईएस/71/ 288 प्रस्ताव पारित कर 30 सितंबर को आधिकारिक “अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस” घोषित किया। यह प्रस्ताव सभी पेशेवर अनुवादकों, दुभाषियों और शब्दावलीविदों की मेहनत को वैश्विक स्तर पर मान्यता देने की दिशा में ऐतिहासिक मील का पत्थर था।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस केवल अनुवादकों को सम्मानित करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि यदि भाषाओं के बीच सेतु न बने होते, तो मानव सभ्यता कभी भी वैश्विक नहीं बन पाती।अनुवादकों ने न केवल विचारों का आदान-प्रदान संभव बनाया है, बल्कि उन्होंने शांति, सहयोग और विकास की राह भी प्रशस्त की है। 2025 में जब विश्व “शांति और विश्वास” का वर्ष मना रहा है, तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हम उन अनुवादकों को सम्मान दें, जो हर दिन अपनी निष्ठा और परिश्रम से दुनिया को जोड़ने का कार्य करते हैं।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *