डेंगू सीजन में अस्पताल लूट करने को तैयार,अस्पतालो की नजर मरीजों की जेब पर 

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लुधियाना 25 सितंबर: अशोक कुमार एक बार फिर डेंगू सीजन में अस्पताल मरीज से लूट करने को तैयार बैठे हैं उम्मीद है कि इस बार भी सरकारी निर्देशों के बावजूद कि डेंगू की जांच और उपचार के दाम निर्धारित हो प्लेटलेट कम होने पर मरीज को लगने वाले आरडीपी और एसडीपी के दाम निर्धारित होने के बावजूद सरकार के दावों की फिर से धज्जियां उड़ती दिखाई देंगी

मरीजों की जेब में कर देते हैं छेद

वैसे भी जिले और राज्य में कॉरपोरेट अस्पतालों की बढ़ती संख्या नई तकनीको व मशीनों की स्थापना और आधुनिकतम उपचार के बदले में मरीज से भारी दाम वसूले जा रहे हैं यहीं पर बस नहीं फेक उपचार के नाम पर मरीज को कई दिन अस्पताल में भर्ती रखा जाता है अस्पतालों की नजर मरीजों की जेब पर रहती है कईयो के तो घर बार उपचार कराने के बदले में बिक जाते हैं परंतु जन स्वास्थ्य की जिम्मेवारी सरकार पर होने के बावजूद ना तो उपचार सस्ता हुआ है और ना ही सरकारी अस्पतालों में लोगों को आधुनिक उपचार उपलब्ध करा पाए, दूसरी और सरकार अभी तक निजी अस्पतालों की लूट पर किसी प्रकार का अंकुश लगाने में सफल नहीं हुई है

लोगों की मांग उपचार, दवाइयों और टैस्टों पर प्रॉफिट निर्धारित हो

लोगों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि उपचार, दवाइयो और लेब टैस्टों पर दाम निर्धारित किए जाने चाहिए जैसे ही कोई दवा फैक्टरी से निकलती है तो उसे पर लाभ प्रतिशत फिक्स कर दिया जाना चाहिए। इसी तरह लैब और डायग्नोस्टिक टैस्टों के दाम भी निर्धारित होने चाहिए जिस पर अस्पतालों का प्रॉफिट फिक्स हो। हर अस्पताल के लैब टेस्टों और डायग्नोस्टिक के दाम अलग-अलग है यहां तक की डेंगू महामारी के दौरान डेंगू की जांच से लेकर उपचार और प्लेटलेट चढ़ाने तक के दाम फिक्स है परंतु निजी और कॉर्पोरेट अस्पताल लोगों से मनमाने दाम वसूलते हैं शिकायतों के अंबार होने के बावजूद सरकार ने आज तक किसी भी अस्पताल के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की है

ईमानदारी से काम करने वाले डॉक्टर हुए कम

ऐसा नहीं कि चिकित्सा पैसे से जुड़े सभी डॉक्टर पैसे कमाने के लिए मरीजों का खून चूसते हैं वल्कि बहुत से ऐसे डॉक्टर है जो आज भी ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं और पैसे की बजाय मरीज को ठीक करने में अधिक ध्यान देते हैं। परंतु ऐसे डॉक्टर कॉरपोरेट् अस्पतालों में अधिक कामयाब नहीं होते

छोटे अस्पताल व क्लीनिक भी अब पीछे नहीं

विशेषज्ञ बताते हैं कि कॉरपोरेट अस्पतालों ने ही उपचार महंगा नहीं किया चत्कि कई छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम भी मरीजों की लूटने में पीछे नहीं थे। ऐसे में जो पहले चैरिटेबल होने का दावा करते थे अब कॉरपोरेट अस्पताल बन गए हैं अधिकतर अस्पताल अपनी दवाइयां बनवा रहे हैं जिस पर दाम भी अस्पताल की मर्जी पर निर्धारित होते हैं ऐसे में दवा कंपनियां भी लूटपाट की कमाई में बराबर की हिस्सेदार है एक और सरकार जन औषधि स्कीम के तहत सस्ती दवाइयां उपलब्ध करा रही है दूसरी ओर कई अस्पताल कथित तौर पर निम्न स्तरीय दवा बनवाकर मरीजों को महंगे दाम पर दे रहे हैं

अस्पताल में वसूलते हैं दवाइयां के अधिक दाम

अधिकतर अस्पतालों के अपने ड्रग स्टोर है और उससे भी आगे बात करें तो कई अस्पतालों ने दवाइयां भी अपने मुताबिक बनवा ली है। दिखावे के तौर पर कभी-कभार डॉक्टर दवाइयों से 5-10 प्रतिशत डिस्काउंट दे देते हैं ताकि मरीज भी खुश रहे और उनका काम भी बलता रहे जबकि बाजार में वही दवाइयों काफी कम दामों पर उपलब्ध रहती है परंतु अस्पताल के बाहर से मरीज को दवाई नहीं लेने दी जाती हाल ही में एक निजी अस्पताल में कैंसर के उपचार के लिए दवा के दाम मरीजो से लगभग चार गुना अधिक वसूले गये

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