ट्रंप के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की तैयारियां- अमेरिकी कंपनियां और अप्रवासी अधिकार संगठन इसे भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक मानते हैं।
अब तक भारत से “ब्रेन ड्रेन”होता रहा है, टैलेंटेड युवा विदेश जाकर अपनी क्षमताएं वहीं इस्तेमाल करते थे।अब नया परिदृश्य ब्रेन गेन बन सकता है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिक नीतियों की दुनियाँ में अमेरिका हमेशा से अपनी इमिग्रेशन पॉलिसीज़ के ज़रिए विश्वभर के टैलेंट को आकर्षित करता रहा है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिकी वीज़ा और माइग्रेशन नीतियों में एक के बाद एक सख्ती देखने को मिली है। कभी टैरिफ के नाम पर व्यापारिक प्रतिबंध, तो कभी टेक सेक्टर के लिए वीज़ा नियमों में कट्टर बदलाव,ये सब कदम स्पष्ट करते हैं कि “अमेरिकी फर्स्ट” पॉलिसी सिर्फ नारा नहीं, बल्कि ट्रंप प्रशासन का आधारभूत एजेंडा है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं कि इसी कड़ी में ट्रंप सरकार ने टैरिफ के बाद, भारतीयों पर एक और स्ट्राइक की है,उन्होंने एच-1बी वीजा पर एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस थोप दी है,ये चोट कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 70 फीसदी एच-1बी वीजा भारतीयों को मिलते हैं,अब सवाल ये है कि क्या इतनी मोटी रकम खर्च करके कंपनियां भारतीयों को अमेरिका में नौकरी पर रखेंगी?इसकी तगड़ी मार भारतीयों के अलावा अमेरिकी टेक सेक्टर पर भी पड़ने की आशंका जताई जा रही है खासकर भारतीय प्रोफेशनल्स और टेक कंपनियों की नींद उड़ा दी है।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,ट्रंप का नया एच-1बी वीजा वार-भारतीय प्रोफेशनल्स पर गहरी चोट या भारत के लिए ब्रेन गेन का अवसर?
साथियों बात अगर हम एच-1बी वीजा पर ट्रंप की नई स्ट्राइक और उसका नोटिफिकेशन को समझने की करें तो एच-1बी वीज़ा वह रास्ता है जिसके माध्यम से भारतीय और अन्य देशों के उच्च कौशल वाले प्रोफेशनल्स अमेरिका की कंपनियों में काम कर सकते हैं। सिलिकॉन वैली से लेकर न्यूयॉर्क के फाइनेंशियल सेक्टर तक, भारतीय इंजीनियर,आईटी प्रोफेशनल्स और मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स की बड़ी मौजूदगी इन्हीं वीज़ा के जरिए संभव हुई है।ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में एक नोटिफिकेशन जारी किया है जिसके अनुसार एच-1बी वीज़ा पर हर साल $100,000 की फीस देनी होगी। यह फीस केवल पहली बार वीज़ा आवेदन करने वालों पर ही नहीं, बल्कि उन लोगों पर भी लागू होगी जो पहले से अमेरिका में हैं और वीज़ा रिन्यू करना चाहते हैं। इस निर्णय को न केवल अप्रवासी समुदाय बल्कि अमेरिकी कॉर्पोरेट जगत भी “अत्यधिक बोझ” मान रहा है।हर साल की फीस: पुराने और नए आवेदकों पर समान बोझ- अब तक वीज़ा शुल्क केवल आवेदन और प्रोसेसिंग के समय एकमुश्त लिया जाता था। लेकिन अब इस नए नियम के तहत फीस हर साल देनी होगी।जो भारतीय प्रोफेशनल्स पहले से अमेरिका में काम कर रहे हैं, उन्हें भी वीज़ा रिन्यूअल के दौरान यह राशि चुकानी होगी।इसका मतलब यह है कि यदि किसी का वीज़ा 3 साल का है और वह दो बार रिन्यू करवाता है, तो कुल मिलाकर करीब $300,000 (2.64 करोड़ रुपये से अधिक) का बोझ कंपनियों या कर्मचारियों पर पड़ेगा।इससे कंपनियों पर वित्तीय दबाव और बढ़ेगा और वे सोच-समझकर ही भारतीय या अन्य विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखने का निर्णय लेंगी।ग्रीन कार्ड का सपना और दूर होता भविष्य-भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका का सपना केवल एच-1बी वीज़ा तक सीमित नहीं है। इसका अंतिम लक्ष्य है-ग्रीन कार्ड और नागरिकता।लेकिन इस भारी- भरकम फीस ने उस सपने को और कठिन बना दिया है।कंपनियां अब इतनी बड़ी राशि खर्च करने से पहले कई बार सोचेंगी कि क्या किसी कर्मचारी के लिए ग्रीन कार्ड स्पॉन्सर करना उनके लिए लाभकारी है।पहले ही ग्रीन कार्ड की प्रतीक्षा सूची भारतीयों के लिए दशकों लंबी हो चुकी है, ऐसे में अतिरिक्त वित्तीय बोझ कंपनियों को पीछे हटने पर मजबूर कर सकता है।भारतीयों का अमेरिका में स्थायी बसने का सपना अब पहले से भी ज्यादाकठोर कठिन और अनिश्चित हो गया है।
साथियों बात अगर हम 70 पेर्सेंट भारतीयों पर सीधा असर व पूरी तरह कर्मचारी की ब्रेन “वैल्यू” पर निर्भर होने को समझने की करें तो, एच-1बी वीज़ा की हकीकत यह है कि इसमें सबसे बड़ाहिस्सा भारतीयों का है।हर साल जारी होने वाले एच-1बी वीज़ा में लगभग 70 पेर्सेंट भारतीयों को ही मिलता है।इसका मतलब है कि इस नीति का सीधा और सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा।लाखों भारतीय युवा जो अमेरिका जाकर करियर बनाने का सपना देखते हैं, उनकी राह में अब बड़ी बाधा आ खड़ी हुई है।साथ ही, भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस,विप्रो आदि भी इससे प्रभावित होंगी, क्योंकि उनके हजारों कर्मचारी हर साल अमेरिका में सेवाएं देते हैं।यह बदलाव भारत-अमेरिका संबंधों में भी तनाव पैदा कर सकता है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से भारतीय प्रोफेशनल्स को निशाना बनाता दिख रहा है।कर्मचारी की ब्रेन “वैल्यू” और कंपनी की गणना- ट्रंप की नई नीति का एक और पहलू यह है कि यह अब पूरी तरह कर्मचारी की ब्रेन”वैल्यू”पर निर्भर करेगा।यदि किसी कंपनी को लगता है कि कोई भारतीय प्रोफेशनल इतना कुशल है कि उसका काम कोई अमेरिकी कर्मचारी नहीं कर सकता, तभी कंपनी यह भारी-भरकम फीस देने को तैयार होगी।इसका नतीजा यह होगा कि केवल “टॉप टैलेंट” को ही अब अमेरिका में अवसर मिलेगा।मिड-लेवल या सामान्य कौशल वाले भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका का दरवाजा लगभग बंद हो जाएगा।इससे अमेरिका में कार्य संस्कृति और भर्ती प्रक्रिया में गहरा बदलाव आएगा।
साथियों बात अगर हम भारत के लिए ब्रेन गेन का सुनहरा अवसर होनें की करें तो,अब तक भारत से “ब्रेन ड्रेन” होता रहा है,टैलेंटेड युवा विदेश जाकर अपनी क्षमताएं वहीं इस्तेमाल करते थे।अब नया परिदृश्य ब्रेन गेन बन सकता है,आईआईटीप्रोफेशनल्स और भारत की टेक्नोलॉजी हब बनने की राह मिल सकती है,इस फैसले का सबसे ज्यादा असर आईआईटी, आईआईएम और अन्य शीर्ष संस्थानों से निकलने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स पर होगा।अब तक इन संस्थानों के कई टॉप टैलेंट अमेरिका में काम करने चले जाते थे।लेकिन जब फीस इतनी भारी होगी, तो कंपनियां ऐसे टैलेंट को रखने से पहले कई बार सोचेंगी।इसका नतीजा यह होगा कि धीरे-धीरे भारतीय टैलेंट की “वापसी” तेज होगी और भारत में ही हाई-टेक रिसर्च, डेवलपमेंट और इनोवेशन को बल मिलेगा। भारत पहले से ही बैंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहरों में आईटी और स्टार्टअप हब के रूप में उभर चुका है। ट्रंप का यह कदम इस प्रक्रिया को और तेज कर सकता है।अमेरिका से लौटने वाले उच्च कुशल भारतीय अब भारत की कंपनियों, विश्वविद्यालयों और स्टार्टअप्स में नई ऊर्जा और विशेषज्ञता लेकर आएंगे।इससे भारतीय टेक इंडस्ट्री और स्टार्टअपइकोसिस्टम को एक नई उड़ान मिलेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग,साइबर सिक्योरिटी और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में भारत अगले दशक में विश्व नेता बन सकता है।
साथियों बात अगर हम अदालत में चुनौती और कंपनियों की नई रणनीति को समझने की करें तो, ट्रंप के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। अमेरिकी कंपनियां और अप्रवासी अधिकार संगठन इसे भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक मानते हैं।यदि अदालत इस फैसले को रोक देती है तो भारतीयों को राहत मिलेगी।लेकिन अगर कोर्ट भी इस नियम को बरकरार रखता है, तो कंपनियों को नई रणनीति अपनानी होगी।वे अब भारत में ही ऑफशोर डेवलपमेंट सेंटर स्थापित कर सकती हैं और वर्क-फ्रॉम-इंडिया मॉडल पर काम कर सकती हैं।इससे भारतीय आईटी उद्योग में निवेश और रोजगार बढ़ सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ट्रंप का यह कदम भारतीयों पर सीधा वार है। यह न केवल व्यक्तिगत सपनों को तोड़ता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कारोबारी समीकरणों को भी प्रभावित करता है।जहां एक तरफ लाखों भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए यह दुखद और निराशाजनक है, वहीं दूसरी ओर भारत के लिए यह “ब्रेन गेन” का मौका भी है। अब सवाल यह है कि भारत इस मौके को कितनी दूरदर्शिता से भुना पाता है। यदि भारत अपनी नीतियों को मज़बूत करे, स्टार्टअप इकोसिस्टम को और सहारा दे तथा रिसर्च और इनोवेशन में निवेश बढ़ाए, तो यह ट्रंप का झटका भारतीयों के लिए नई उड़ान का अवसर भी साबित हो सकता है।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *