झूठ की रफ्तार और सच की धीमी चाल-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक गहन विश्लेषण

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“जब सच अपने जूते के फीते बाँध रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनियाँ का चक्कर लगा चुका होता है।”

 

आज की चुनौती यही है कि लोकतंत्र, मीडिया और तकनीक मिलकर सच की यात्रा को तेज़ और झूठ की गति को धीमा करें- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर मानव सभ्यता के इतिहास में झूठ और सच की जंग सबसे पुरानी है। झूठ हमेशा आकर्षक होता है, तेज़ी से फैलता है और आसानी से लोगों को अपनी ओर खींच लेता है,जबकि सच को अपनी जगह बनाने में समय लगता है। यही कारण है कि यह कहावत जन्मी कि “जब सच अपने जूते के फीते बाँध रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है।”यह कथन केवल साहित्यिक व्यंग्य नहीं बल्कि सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी वास्तविकताओं का आईना है। राजनीति, समाज और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की वास्तविकताओं को गहराई से दर्शाती है।झूठ की त्वरित गति और सच की धीमी स्वीकृति का प्रभाव आज वैश्विक राजनीति से लेकर सोशल मीडिया,पत्रकारिता शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक फैला हुआ है। कहा जाता है कि “सत्य की जीत होती है,” लेकिन राजनीति की जमीनी सच्चाई यह है कि झूठ की गति हमेशा सच से कई गुना तेज़ होती है। इसको अगर हम भारत की राष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष में देखें तो दोनों ही इस कहावत का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। सोशल मीडिया, चुनावी प्रचार, युद्धकालीन प्रोपेगेंडा और वैश्विक कूटनीति, हर जगह झूठ पहले जनता के मन को जकड़ लेता है, जबकि सच को अपनी जगह बनाने में समय लगता है। 21वीं सदी में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने झूठ की रफ्तार को और भी तेज़ कर दिया है। अब एक झूठी खबर कुछ ही मिनटों में पूरी दुनियाँ का चक्कर लगा सकती है।फ़ेक न्यूज़:-चुनावों के दौरान झूठी खबरें जनमत को प्रभावित करती हैं।निवेश जगत में अफवाहें शेयर बाज़ार को हिला सकती हैं। झूठी खबरें शेयर की कीमतें बढ़ा या गिरा देती हैं, जबकि सच सामने आने में समय लगता है।राजनीति झूठ और सच की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। नेता अक्सर वादे और दावे करते हैं जिनमें सच कम और झूठ ज़्यादा होता है। झूठ की गति इतनी तेज़ होती है कि चुनाव तक उसका असर बना रहता है, लेकिन सच सामने आने पर जनता का मोहभंग होता है। यही कारण है कि कई लोकतांत्रिक देशों में पॉपुलिस्ट नेता झूठ का सहारा लेकर सत्ता तक पहुँच जाते हैं।मीडिया की भूमिका:-पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच को सामने लाना है, लेकिन मीडिया भी झूठ का सबसे बड़ा साधन बन सकता है। उत्तर-सत्य युग शब्द इसी कारण अस्तित्व में आया। आज कई मीडिया हाउस टीआरपी के लिए झूठ को हवा देते हैं। हालाँकि, जाँच-पड़ताल पत्रकारिता अभी भी सच की रक्षा करती है। इस विषय की चर्चा मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र इस आर्टिकल के माध्यम से तीन भागों में करूँगा पहला भाग: झूठ की गति बनाम सच की मजबूती।दूसरा भाग :- भारत की राष्ट्रीय राजनीति में झूठ और सच का समीकरण।तीसरा भाग:- अंतरराष्ट्रीय राजनीति में झूठ और सच का समीकरण।मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इसकी सटीकता का कोई प्रमाण नहीं है मीडिया में उपलब्ध जानकारी का रिसर्च कर इस आर्टिकल को तैयार किया गया है।चूँकि बड़े बुजुर्गों द्वारा कही गई है कहावत है“जब सच अपने जूते के फीते बाँध रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है।”इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,झूठ की रफ्तार और सच की धीमी चाल: राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक गहन व सटीक विश्लेषण करेंगे।

साथियों बात अगर हम सबसे पहले भाग 1: झूठ की गति बनाम सच की मजबूती को समझने की करें तो (1) क्यों फैलता है झूठ तेज़ी से?-झूठ हमेशा सनसनीखेज और भावनात्मक होता है। यह जनता की भावनाओं, डर और पूर्वाग्रहों को भड़काता है। सच तर्क और सबूत पर आधारित होता है, इसलिए उसकी गति धीमी होती है।(2) सच की स्थायी ताकत-इतिहास गवाह है कि भले ही झूठ तेजी से फैल जाए, लेकिन स्थायी जीत हमेशा सच की होती है। गांधीजी का सत्याग्रह, मंडेला का रंगभेद- विरोधी संघर्ष, और क्लाइमेट चेंज की वैज्ञानिक चेतावनियाँ,ये सब दर्शाते हैं कि सच देर से सही, लेकिन जीतता जरूर है।(3)समाधान और भविष्य की राह-फैक्ट-चेकिंग संस्थाएँ: अल्ट न्यूज़ (भारत),स्नोपेस (अमेरिका) और बीबीसी फैक्ट चेक जैसी संस्थाएँ झूठ को चुनौती दे रही हैं।(4)अनेक तकनीकी पहलू-(1) टेक्नोलॉजी:- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से डीपफेक और फेक न्यूज़ पकड़ी जा सकती हैं। (2)शिक्षा और जागरूकता:-जनता को मीडिया साक्षरता सिखाना ज़रूरी है ताकि वे झूठ और सच में अंतर कर सकें।

साथियों बात अगर हम भाग-2:भारत की राष्ट्रीय राजनीति में झूठ और सच का समीकरण को समझने की करें तो (1) चुनावी राजनीति और फेक नैरेटिव-भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ हर पाँच साल में चुनाव होते हैं। यहाँ चुनावी नैरेटिव बनाने में झूठ की भूमिका अहम है।उदाहरण के लिए, 2024 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए जिनमें दावा किया गया कि कुछ दल “धर्म विशेष के पक्ष में आरक्षण देंगे” या “कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस लाएँगे।” इनमें से अधिकांश दावे झूठे निकले, लेकिन चुनावी माहौल में इन खबरों ने जनमत को प्रभावित किया। सच तब सामने आया जब चुनाव आयोग और फैक्ट-चेक संगठनों ने इन खबरों की जाँच की, लेकिन तब तक असर हो चुका था।(2)किसान आंदोलन और झूठी सूचनाएँ- 2020–21 के किसान आंदोलन भारत की राजनीति में इस कहावत का सबसे ताज़ा उदाहरण है। आंदोलनकारियों को कई बार “खालिस्तानी समर्थक” या “विदेशी फंडिंग से प्रेरित” बताया गया। ये बातें सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर इतनी तेजी से फैलीं कि आम जनता में भ्रम पैदा हो गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट और स्वतंत्र रिपोर्ट्स ने साफ किया कि आंदोलन मुख्य रूप से किसानों की वास्तविक चिंताओं पर आधारित था। लेकिन सच सामने आने में महीनों लग गए। (3) कोविड -19 और सरकारी दावे-भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान भी झूठ और सच की जंग साफ नज़र आई। दूसरी लहर (2021) के समय सरकार की तरफ से कहा गया कि “ऑक्सीजन और दवाइयों की कोई कमी नहीं है।” परंतु जमीनी हकीकत यह थी कि अस्पतालों में लोग ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे थे। झूठी तस्वीरें और आँकड़े मीडिया में फैलाए गए ताकि सरकार की छवि बची रहे। सच बाद में तब सामने आया जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया और न्यायालयों ने स्थिति का खुलासा किया।(4)राष्ट्रीय सुरक्षा और अफवाहें-भारत की राजनीति में “पाकिस्तान” और “आतंकवाद” से जुड़े नैरेटिव अक्सर झूठ के सहारे बनाए जाते हैं। 2019 के पुलवामा हमले और बालाकोट एयरस्ट्राइक तथा अभी 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम, कश्मीर में एक आतंकवादी हमले में 28 नागरिक मारे गए थे,के बाद कई झूठी सूचनाएँ फैलाई गईं, बाद में अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स और सैटेलाइट इमेजरी ने दिखाया कि सच क्या है तब कहीं जाकर लोगों को समझ में आया (5) ताज़ा घटनाएँ और सोशल मीडिया ट्रोलिंग-2025 में भी भारत की राजनीति में सोशल मीडिया “फेक न्यूज़” का सबसे बड़ा हथियार है। हाल ही में मणिपुर हिंसा से जुड़ी कई झूठी तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए जो किसी अन्य देश के थे,लेकिन उन्हें भारत की घटनाओं से जोड़ दिया गया। सच सामने आने तक समाज में भारी तादाद मेँ तनाव फैल चुका था।

साथियों बात अगर हम भाग-3 अंतरराष्ट्रीय राजनीति में झूठ और सच का समीकरण की करें तो (1) इराक युद्ध 2003-सबसे बड़ा उदाहरण-अंतरराष्ट्रीय राजनीति में झूठ की सबसे बड़ी मिसाल 2003 का इराक युद्ध है। अमेरिका और ब्रिटेन ने दावा किया कि सद्दाम हुसैन के पास वेपन्स ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन (डब्ल्यूएमडीएस) हैं। यह दावा पूरी दुनियाँ में तेज़ी से फैला और युद्ध छिड़ गया। लाखों लोग मारे गए, लेकिन सच यह था कि इराक के पास ऐसे हथियार थे ही नहीं। यह सच तब सामने आया जब युद्ध समाप्त हो चुका था और तब तक पूरी मध्य-पूर्व की राजनीति बदल गई (2) रूस- यूक्रेन युद्ध (2022–2025) -आज की तारीख में सबसे बड़ा उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध है। रूस ने दावा किया कि वह “यूक्रेन को नाज़ी ताकतों से मुक्त करने” आया है। दूसरी ओर, पश्चिमी देशों ने कहा कि रूस विस्तारवादी नीति चला रहा है। सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों से झूठी सूचनाएँ फैलाई गईं,कहीं झूठे वीडियो, कहीं पुराने फोटो को नया बताकर प्रचार किया गया। सच धीरे-धीरे स्वतंत्र पत्रकारों और उपग्रह चित्रों से सामने आ रहा है, लेकिन तब तक लाखों लोग प्रभावित हो चुके हैं।(3)अमेरिका की चुनावी राजनीति और फेक न्यूज़-2016 और 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में “फेक न्यूज़” निर्णायक कारक बना। रूसी ट्रोल फैक्ट्री और अमेरिकी कट्टरपंथी संगठनों ने झूठी खबरें फैलाईं-जैसे कि “पोप डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं” या “जो बाइडेन भ्रष्टाचार में शामिल हैं।” ये खबरें सोशल मीडिया पर लाखों लोगों तक पहुँचीं। बाद में फैक्ट-चेक संगठनों ने इन्हें गलत साबित किया, लेकिन तब तक मतदाता प्रभावित हो चुके थे (4) कोविड- 19 और चीन-कोविड-19 की शुरुआत में चीन ने दुनियाँ से वायरस की गंभीरता छिपाई। वुहान से जुड़े शुरुआती केस दबा दिए गए और कहा गया कि स्थिति नियंत्रण में है। यह झूठ पूरी दुनियाँ को गुमराह कर गया। जब सच सामने आया कि वायरस तेजी से फैल रहा है, तब तक महामारी वैश्विक संकट बन चुकी थी (5) इज़रायल- फिलिस्तीन संघर्ष-इस क्षेत्र में झूठ और सच की जंग रोज़ देखी जाती है। इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों पक्ष सोशल मीडिया पर अपने पक्ष में वीडियो और तस्वीरें पेश करते हैं। कई बार पुराने वीडियो को नया बताकर या गलत कैप्शन देकर वायरल किया जाता है। सच सामने आने तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुस्सा और विरोध बढ़ चुका होता है। (6) भारत कीसटीक विदेश नीति और फेक नैरेटिव-भारत की विदेश नीति भी झूठ और सच की इस जंग से अछूती नहीं है। हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन (2023, नई दिल्ली) के दौरान पाकिस्तान और चीन ने दावा किया कि भारत ने “कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय एजेंडा से हटाने के लिए दबाव डाला।” यह झूठी खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में फैलीं। बाद में सच यह सामने आया कि सम्मेलन का फोकस आर्थिक सहयोग और विकास पर था, लेकिन तब तक नैरेटिव बदल चुका था।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कियह कहावत केवल साहित्यिक व्यंग्य नहीं बल्कि राजनीति की कठोर सच्चाई है। भारत की राष्ट्रीय राजनीति में चुनावी वादों, किसान आंदोलनों और कोविड जैसे संकटों ने इसे साबित किया है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इराक युद्ध, रूस-यूक्रेन संघर्ष, अमेरिकी चुनाव और कोविड-19 महामारी इसके वैश्विक उदाहरण हैं।झूठ भले ही पूरी दुनिया का चक्कर लगा ले, लेकिन सच देर से ही सही, हमेशा अपनी जगह बनाता है। आज की चुनौती यही है कि लोकतंत्र, मीडिया और तकनीक मिलकर सच की यात्रा को तेज़ और झूठ की गति को धीमा करें।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *

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