मुद्दे की बात : चीन की ‘प्राइस-वॉर’ से भारत का दवा सामग्री उद्योग प्रभावित

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सक्रिय दवा सामग्री यानि एपीआई की कीमतों में 7,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कटौती से बड़ा झटका

सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) की कीमतों में 7,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कटौती करने के चीन के फैसले ने बड़ा झटका दिया है। जिससे भारतीय एपीआई उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को भारी नुकसान पहुंचा है। एपीआई किसी भी दवा का एक मुख्य घटक होता है, जिसका एक निश्चित चिकित्सीय प्रभाव होता है।
चीन ने विशेष रूप से 41 एपीआई और प्रमुख प्रारंभिक सामग्रियों की कीमतों में 40 से 50 प्रतिशत तक की कटौती कर दी। जानकारों के मुताबिक इस कदम का उद्देश्य भारत में नवंबर 2024 में उत्पादन शुरू करने वाले एपीआई संयंत्रों को पंगु बनाना है। चीन ने आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति अपना प्रमुख कच्चे माल कीमतों में कटौती की। जिससे उनकी कीमत उत्पादन लागत से भी कम हो गई। लिहाजा इनकी कीमतें लगभग 7,000 रुपये प्रति किलोग्राम गिर गईं है। केंद्र सरकार ने चीनी आयात पर निर्भरता कम करने को पीएलआई योजना शुरू की। जो 68 प्रतिशत तक पहुंच गई है और एपीआई के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया है। यह कदम कोविड-19 संकट के बाद उठाया गया था, जब एपीआई की कमी ने दवा क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया था। परिणामस्वरूप, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और उत्तराखंड में सैकड़ों करोड़ रुपये के निवेश से नए एपीआई संयंत्र स्थापित हुए थे।
इन इकाइयों में उत्पादन बढ़ने के साथ दवा उद्योग में आत्मनिर्भरता बढ़ रही थी। अब चीन की आक्रामक डंपिंग नीति और प्रमुख एपीआई की कीमतों में अचानक कटौती ने इन उभरती इकाइयों को गहरा झटका दिया है। कई इकाइयां पहले से ही घाटे में हैं, जो संकट में फंस गई हैं। चीन ने क्लैवुलनेट पोटेशियम की कीमत में 40 प्रतिशत और पेनिसिलिन-जी की कीमत में 50 प्रतिशत की कटौती की है। हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में दो प्रमुख एपीआई इकाइयां पहले ही गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही हैं। माहिरों के मुताबिक चीन जानबूझकर वैश्विक एपीआई बाजार पर पकड़ मजबूत करने को ‘मूल्य-युद्ध’ छेड़ रहा है, जहां भारत एक प्रमुख खिलाड़ी है। एक प्रमुख एपीआई निर्माता के अनुसार चूंकि भारत में उत्पादन लागत अधिक है, इसलिए घरेलू निर्माताओं के लिए कम की कीमतों का मुकाबला करना असंभव है। हालाँकि, यह देखना होगा कि क्या चीन लंबे समय कम दरों पर काम कर पाएगा।
एपीआई निर्माता यह भी याद करते हैं कि लगभग ढाई दशक पहले चीन द्वारा सस्ते एपीआई पेश करने से घरेलू दवा उद्योग पंगु बनने से कई इकाइयां बंद हुई थीं।
भारतीय दवा संघों ने केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया है। बड़ी चुनौती, चीन ने 41 एपीआई और प्रमुख प्रारंभिक सामग्रियों की कीमतों में कटौती कर उन्हें निशाना बनाया।

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