अमृतकाल में लाखों भारतीयों के पासपोर्ट सिरेंडर करने से मोदी सरकार पर बड़ा सवालिया निशान
लुधियाना, 21 अगस्त। भारत में मोदी सरकार का ‘अमृत-काल’ चल रहा है। फिर भी हर साल लाखों लोग पासपोर्ट सरेंडर कर रहे हैं। मतलब यही है कि बेहतर कल की तलाश में भारतीय विदेशी नागरिकता हासिल कर रहे हैं।
यहां काबिलेजिक्र है कि 10 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले पॉडकास्ट में उद्यमी और निवेशक निखिल कामथ के साथ बातचीत की थी। चर्चा के दौरान मोदी ने उस घटना का जिक्र किया, जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें अमेरिकी वीज़ा देने से मना कर दिया गया था। इसे एक निर्वाचित सरकार और राष्ट्र का ‘अपमान’ बताते हुए मोदी ने एक ऐसे भविष्य की अपनी कल्पना करते कहा था, जहां भारतीय वीज़ा की वैश्विक मांग आसमान छू रही है। दुनिया भर के निवासी अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए कतारों में खड़े हैं। अब मुझे लगता है कि यह भारत का समय है, मोदी ने 2005 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए अपने बयान का ज़िक्र करते हुए यह कहा था।
साल 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तब से उन्होंने बार-बार नए भारत के उदय की घोषणा की। एक ऐसा राष्ट्र जो आत्मविश्वास से पुनर्जन्म ले रहा है और जो 2014 से पहले भारतीयों द्वारा महसूस की गई शर्म को त्याग रहा है। अमृतकाल और विकसित भारत के महत्वाकांक्षी बैनर तले, उनकी सरकार एक पुनरुत्थानशील, आत्मविश्वासी राष्ट्र का वादा करती है। जो विश्व मंच पर साहसपूर्वक कदम रखेगा। फिर भी, आधिकारिक बयानबाजी के पीछे एक गंभीर सच्चाई छिपी है। हर साल हज़ारों भारतीय देश छोड़ने का विकल्प चुनते हैं। इसी 8 अगस्त को लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों से पता चला है कि पिछले तीन वर्षों में हर साल दो लाख से ज़्यादा भारतीयों ने औपचारिक रूप से भारत से अपने कानूनी संबंध तोड़ लिए हैं। लगातार हो रहे पलायन से मोदी की घोषणाओं के पीछे भारतीयों के अनुभवों पर असहज सवाल उठते हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार, 2020 में अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 85,256, 2021 में 1,63,370, 2022 में 2,25,620, 2023 में 2,16,219 और 2024 में 2,06,378 थी।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-2 के शासनकाल में, ऐसे मामलों की संख्या 2011 में 1,22,819, 2012 में 1,20,923, 2013 में 1,31,405 और 2014 में 1,29,328 थी। विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने एक लिखित उत्तर में कहा कि भारतीय नागरिकता त्यागने या विदेशी नागरिकता प्राप्त करने का निर्णय एक व्यक्तिगत पसंद है, जो केवल व्यक्ति को ही पता होता है। सिंह ने आगे कहा, भारत को अपने प्रवासी नेटवर्क का लाभ उठाने और ऐसे समृद्ध प्रवासी समुदाय से मिलने वाली सॉफ्ट-पावर के उत्पादक उपयोग से बहुत लाभ होगा। हालांकि असली सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोग भारत क्यों छोड़ रहे हैं ? क्या यह सिर्फ़ एक व्यक्तिगत निर्णय है, या इसके पीछे व्यवस्था, अवसरों की कमी, सुरक्षा या भविष्य को लेकर अनिश्चितता है ? तमाम लोग नौकरी, पढ़ाई, या एक स्थिर जीवन की तलाश में विदेश जा रहे हैं। वहीं कुछ लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और जीवन देना चाहते हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि हम केवल आंकड़ों को ना देखें, बल्कि यह भी समझें कि लोगों के मन में क्या चल रहा है। भारत को अपने प्रवासियों पर गर्व है, लेकिन क्या हम यह सोचेंगे कि वे आखिर क्यों जा रहे हैं ? सबसे बड़ा सवाल, अगर नया भारत सच में सबको अवसर दे रहा होता तो क्या हर साल इतने लोग पासपोर्ट सरेंडर करते ?
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