कुदरती कहर जारी : कुल्लू में मंगलवार को बादल फटा, पहाड़ी सूबों में दिल दहलाने वाले नतीजे

कुदरती कहर जारी कुल्लू में मंगलवार को बादल फटा

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हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में ‘विकास मॉडल’ की कीमत चुकाई, अब तक मानसून में 300 मौतें

 

शिमला, देहरादून, श्रीनगर, 19 अगस्त

देश के तीन पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में मानसून की तबाही जारी है। इस कुदरती कहर को रोकने के लिए देरी से सोचने की कीमत इस साल 300 मौतें हैं। साथ ही, हज़ारों करोड़ रुपये की तबाही भी हुई है।
पिछले हफ़्ते जेएंडके के किश्तवाड़ में, दो दिन पहले कठुआ में और आज मंगलवार तड़के हिमाचल के कुल्लू के सुदूर लगघाटी क्षेत्र में बादल फटने की घटना हुई। तेज़ पानी घरों, सड़कों और वाहनों को बहा ले गया। भुबू और आसपास के गांवों के पास रात लगभग 1.30 बजे हुई इस घटना में एक पहाड़ी सड़क मलबे में दब गई और नदी अपने किनारों से ऊपर बह गई।
इस बार बेरहम मानसून ने हिमालयी क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों की जान ले ली है। जून की शुरुआत से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में कुल मिलाकर मरने वालों की संख्या 300 से ज़्यादा हो गई है। जो पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक क्षेत्रों में आपदा तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जहां लोग इसे कुदरती-कहर बता रहे हैं, वहीं विशेषज्ञ इस मानव निर्मित आपदा मान रहे हैं।
सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य हिमाचल प्रदेश में जून से मानसून संबंधी घटनाओं में 229 लोगों की मौत हुई। घरों, सड़कों और नागरिक बुनियादी ढांचा तबाह हो गया। इसी हफ़्ते तक, राज्य विधानसभा का मानसून सत्र प्रशासनिक खामियों और अपर्याप्त अग्रिम योजना पर तीखी बहस के साथ शुरू हो गया था। कुल आर्थिक नुकसान ₹2,194 करोड़ को पार कर गया है। कुल्लू पर्यटन विकास मंडल के अध्यक्ष अनूप ठाकुर कहते हैं, पिछले चार मानसूनों से हमें पटरी पर आने में छह महीने लगते हैं और अगले छह महीने बाद तबाही होती है। मंडी, कांगड़ा और कुल्लू इसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं। 112 से ज़्यादा सड़कें बंद हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में ज़रूरी आपूर्ति ठप है। सैकड़ों बिजली ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हो गए। कई जलापूर्ति योजनाएं ध्वस्त हो गईं। आईएमडी की चेतावनियों और पिछली आपदाओं के बावजूद ढांचागत कमज़ोरियों का समय पर समाधान नहीं किया गया।
इसी तरह उत्तराखंड में, मानसून से जुड़ी त्रासदियों की शुरुआत 29 जून को उत्तरकाशी में बादल फटने से हुई। अगस्त में धराली में आई बाढ़ सबसे विनाशकारी घटना थी। राज्य में मानसून में मरने वालों की संख्या 70 से ज़्यादा हो गई है।
जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ के चोसोती गांव में 14 अगस्त को आई बाढ़ इस मानसून की सबसे घातक आपदाओं में से एक है। अचानक बादल फटने से आई बाढ़ और मलबे के सैलाब ने मचैल माता यात्रा मार्ग पर एक लंगर स्थल, रिहायशी घरों और एक सुरक्षा चौकी को तहस-नहस कर दिया। 300 से ज़्यादा तीर्थयात्री और स्थानीय लोग बाढ़ में फंस गए, जिनमें से कई बह गए। अधिकारियों ने कम से कम 65 लोगों की मौत, 300 के घायल होने और 200 से ज़्यादा लोगों के अभी भी लापता होने की पुष्टि की है।
माहिरों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह की चरम मौसम की घटनाएं लगातार और तीव्र होती जा रही हैं। वर्तमान बुनियादी ढांचा और आपदा योजनाएं ऐसी आपात स्थितियों के पैमाने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं।

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