बैठक में भारत-चीन सीमा विवाद पर कोई चर्चा नहीं हुई, यह मुद्दा टला
भारत और चीन के बीच हालिया बातचीत ने दोनों देशों के रिश्तों में एक नई उम्मीद जगाई है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की गत दिवस मुलाकात में कुछ महत्वपूर्ण व्यापारिक मुद्दों पर सहमति बनी है। खासतौर पर, चीन की ओर से भारत को फिर से खाद (डीएपी, एनपीके), रेयर अर्थ मिनरल्स और टनल बोरिंग मशीनों की आपूर्ति फिर शुरू करने का भरोसा दिया गया है।
यह फैसला ऐसे समय आया, जब भारत को इन वस्तुओं की आपूर्ति की बेहद जरूरत थी। चीन से भारत को मिलने वाले खाद की सप्लाई लगभग एक साल से रुकी हुई थी। जिससे भारत के कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल असर पड़ा था। इसके अलावा, रेयर अर्थ मिनरल्स ऑटोमोबाइल और इलैक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए जरूरी हैं। जबकि टनल बोरिंग मशीनें भारत के बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, जैसे कि मेट्रो और हाईवे निर्माण में अहम भूमिका निभाती हैं।
जयशंकर ने चीन के साथ बातचीत में साफ किया कि भारत की ताइवान-नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भारत, दुनिया के बाकी देशों की तरह ही, ताइवान के साथ केवल आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए हुए है। लिहाजा कूटनीतिक मान्यता का कोई सवाल नहीं उठता है। यह बयान चीन की चिंताओं को शांत करने की एक कोशिश भी मानी जा सकती है।
हालांकि इस बैठक में भारत-चीन सीमा विवाद पर कोई चर्चा नहीं हुई, यह मुद्दा टाला नहीं गया है। इसे अब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के शीर्ष प्रतिनिधि के बीच होने वाली ‘स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव संवाद’ में उठाया जाएगा। सीमा पर अब भी दोनों देशों की सेनाएं तैनात हैं, खासकर लद्दाख क्षेत्र में। हाल ही में कुछ गश्त क्षेत्रों में सहमति बनने के बावजूद, तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। फौजों की वापसी और डी-एस्केलेशन अब भी लंबित है। इस बैठक में भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम प्रत्यक्ष रूप से नहीं लिया गया। हालांकि दोनों पक्षों में इस बात पर सहमति दिखी कि वॉशिंगटन की मौजूदा नीतियां भारत और चीन दोनों के लिए चुनौती बन रही हैं। दोनों देशों को यह समझ आता दिख रहा है कि आपसी सहयोग बढ़ाकर ही वे वैश्विक अनिश्चितताओं का सामना कर सकते हैं। यह एक रणनीतिक मजबूरी भी हो सकती है, लेकिन संवाद की यह दिशा महत्वपूर्ण है।
इस नई बातचीत से साफ है कि भारत और चीन के रिश्ते पूरी तरह टूटे नहीं हैं, लेकिन उन्हें सामान्य बनाने के लिए कई और कदम उठाने होंगे। आर्थिक सहयोग की बहाली एक अच्छा संकेत है, लेकिन जब तक सीमा पर स्थायी समाधान नहीं निकलता और सेनाओं की वापसी नहीं होती, तब तक भरोसे की बहाली अधूरी ही मानी जाएगी। भारत को चाहिए कि वह इस नए खुले संवाद के रास्ते को बनाए रखे, लेकिन साथ ही अपनी रणनीतिक सतर्कता और सैन्य तैयारी में कोई ढील ना दे। चीन के वादों के पीछे की मंशा और उनका अमल कितनी ईमानदारी से होता है, यह वक्त ही बताएगा। फिलहाल विदेश मामलों के जानकार तमाम किंतु-परंतु के साथ इसका आंकलन करने में जुटे हैं।