मुद्दे की बात : ट्रंप-टैरिफ़ से भारत-अमेरिका के रिश्ते और बिगड़ेंगे ?

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टैरिफ को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकी से बिगड़ता माहौल

कभी सितंबर, 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने अगले साल होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए नारा दिया था, अबकी बार ट्रंप सरकार। उसके अगले ही साल मोदी ने ट्रंप को अहमदाबाद बुलाया। उस कार्यक्रम के अलावा भी कई मौकों पर दोनों नेता एक-दूसरे की जमकर तारीफ करते रहे। ट्रंप ने तो मोदी को महान देश का महान नेता तक कहा था।

अब भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा करते हुए ट्रंप ने भारत को दोस्त देश कहा, लेकिन शिकायत भी जताई कि, किसी भी देश की तुलना में भारत के साथ व्यापार करने में सबसे सख़्त कारोबारी बाधाएं हैं। इससे पहले भी ट्रंप कई बार भारत को ‘टैक्स किंग’ कह चुके हैं। इस साल की शुरुआत में जब ट्रंप ने अपना दूसरा कार्यकाल संभाला, तब प्रधानमंत्री मोदी उनसे मिलने वाले शुरुआती चौथे नेता थे। इस मुलाकात में भी ट्रंप ने उन्हें महान दोस्त कहा, लेकिन पिछले छह महीनों में ट्रंप और मोदी के बीच पहले जैसी गर्मजोशी नहीं दिखी, जो ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान दिखती थी। अब भारत में संसद के मानसून सत्र में विपक्ष ने ट्रंप और मोदी की पुरानी दोस्ती का हवाला देकर सरकार को घेरने की कोशिश की। विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि टैरिफ से भारत को अन्य देशों की तुलना में कम झटका लगेगा, लेकिन व्यापार वार्ता के बीच ट्रंप के ऐलान से दोनों देशों के रिश्तों में और ठंडापन आने की आशंका है। ट्रंप ने सिर्फ़ भारत पर टैरिफ़ की बात नहीं कही, बल्कि रूस से तेल ख़रीद पर पेनल्टी लगाने की भी बात कही, जिससे मामला पेचीदा हो गया।

विदेशी-रणनीतिक मामलों पर रिसर्च करने वाली संस्था अनंता सेंटर की सीईओ इंद्राणी बागची के मुताबिक, टैरिफ़ का असर पड़ेगा। दरअसल रूस के व्यापार की वजह से पेनल्टी भी लगेगी। इसके अलावा ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त टैरिफ़ की भी बात कही है तो कुल मिलाकर ये 25 प्रतिशत से ज़्यादा होने वाला है। वरिष्ठ अर्थशास्त्री मिताली निकोरे ने भी कुछ ऐसी ही बात कही। पिछले साल भारत और अमेरिका के बीच 129.2 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जिसमें भारत का निर्यात 87.4 अरब डॉलर था। हालांकि टैरिफ़ से भारत के निर्यात पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा, इस बात पर जानकारों में मतभेद हैं। बागची के मुताबिक  भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह इतना बड़ा झटका नहीं है और इसकी भरपाई भारत दूसरे बाज़ारों में पहुंच से पूरी कर लेगा। हालांकि मिताली के अनुसार, ये हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भारी झटका होगा। दो हफ्ते पहले नेटो प्रमुख ने रूस के व्यापार को लेकर भारत, चीन और ब्राज़ील को चेतावनी दी थी। उस समय भारत ने अपने मौजूदा ऊर्जा हितों का हवाला दिया था।

वहीं नीति विशेषज्ञ मिताली इसे भारतीय विदेश नीति के लिए झटका मान कहती हैं, बीते कई महीनों से दोनों देशों के बीच दूतावास स्तर और अन्य शीर्ष स्तर पर बातचीत चल रही है, लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि डील की मियाद खत्म होने के सिर्फ दो दिन पहले ही ट्रंप घोषणा कर देते हैं। संसद के मौजूदा मानसून सत्र में भी कई दिनों तक यही गतिरोध बना रहा कि ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा कराई जाए। जब बहस हुई तो ट्रंप का नाम बार-बार आया। उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने साफ तौर पर कहा, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किसी भी दूसरे देश के कहने पर सीज़फायर नहीं हुआ।

क्या ट्रंप की मौदूगा नीति से चीन, रूस और भारत आपस में और करीब आ जाएंगे ? इस पर बागची कहती हैं, भारत और चीन के बीच भले व्यापार बढ़ रहा हो, लेकिन रणनीतिक रूप से चीन कभी भारत के करीब नहीं जाएगा। हालांकि इस बीच रूस-भारत-चीन के त्रिपक्षीय सहयोग को फिर से सक्रिय करने की बात शुरू हुई है। भारत इसमें अपनी भूमिका बढ़ा सकता है। पिक्चर अभी बाकी है, ट्रेड डील पर अभी सहमति बननी है। जैसा कि ट्रंप ने खुद के बारे में कहा था कि वो अनप्रिडिक्टिबल हैं और इसे वो अपने व्यक्तित्व का हिस्सा भी मानते हैं। वह बार्गेनिंग का हथियार भी है। ऐसे में व्यापार समझौते के बाद इस टैरिफ़ घोषणा में भी क्या बदलाव आता है, देखना होगा।

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