शर्मनाक : स्वच्छता अभियान में पिछड़ा नगर निगम लुधियाना, सारा खर्च अफसरशाही पर ?
राजदीप सिंह सैनी
लुधियाना 18 जुलाई। लुधियाना शहर और उसके नगर निगम के लिए शर्मनाक बात है कि स्वच्छ भारत मिशन में शहर को पीछे से दूसरा यानि कि 39वां रैंक मिला है। इस सर्वे ने शहर को साफ सुथरा कहने वाले अफसरों और राजनेताओं के दावों की पोल खोलकर रख दी है। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि नगर निगम लुधियाना के पास फंड की कोई कमी नहीं है, जिसके बावजूद शहर को गंदगी से भरा जा रहा है। जिसका नतीजा केंद्र सरकार द्वारा किए स्वच्छता सर्वे में देखने को मिला है। जबकि लुधियाना नगर निगम का स्वच्छता के लिए सालाना बजट 1000 करोड़ रुपए हैं। जिसके बावजूद यह हालात देखने को मिल रहे हैं। जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश के 40 सबसे ज्यादा साफ सुथरे शहरों का सर्वे कर लिस्ट तैयार की गई। जिसमें लुधियाना को 39वां रैंक मिला है। जबकि नोएडा जैसा शहर, जो कि सबसे प्रदूषित माने जाते दिल्ली के एकदम साथ है। उसे पहले स्थान मिला है। इस रैंकिग से साथ अंदाजा लगाया जा सकता है कि निगम लुधियाना के अधिकारी शहर की सफाई को लेकर कितनें सीरियस हैं।
एक हजार करोड़ बजट, 700 करोड़ दी जाती है सैलरी
जानकारी के अनुसार नगर निगम का सालाना बजट एक हजार करोड़ रुपए है। जबकि हर साल अधिकारियों और मुलाजिमों को 700 करोड़ रुपए की सिर्फ सैलरी ही दी जाती है। जिसके बावजूद शहर के यह हालात बन रहे हैं।
70 प्रतिशत मुलाजिम अफसरों-नेताओं के घर पर करते हैं काम
चर्चा है कि नगर निगम के पक्के मुलाजिम तो अलग हैं। लेकिन उसके अलावा 5000 सफाई कर्मी है। जिनमें कई कच्चे और कई पक्के हैं। लेकिन चर्चा है कि इनमें 70 प्रतिशत मुलाजिम अफसरों और नेताओं के घरों पर काम करते हैं। यानि कि ज्यादातर खर्च अफसरशाही व नेतागिरी में ही हो रहा है।
एक कमिश्नर, आठ जोनल-ज्वाइंट कमिश्नर, फिर भी शहर गंदा
हैरानी की बात तो यह है कि लुधियाना में एक नगर निगम कमिश्नर है। जबकि चार जोनल और चार ज्वाइंट कमिश्नर है। जिसके बावजूद शहर में जगह जगह गंदगी फैली हुई है। जबकि जोनल कमिश्नरों की जिम्मेदारी अपने जोन को साफ रखने की होती है। फिर भी वे अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे। वहीं बात करें ज्वाइंट कमिश्नरों की तो चर्चा है कि ज्वाइंट कमिश्नर कभी अपने ऑफिसों से बाहर ही नहीं निकलते। उनकी तरफ से सिर्फ ऑफिसों में बैठकर कागजों में ही स्वच्छता दिखाई जा रही है।
अफसरों के खुद के टिप्पर, चहेतों को दे रखे ठेके
चर्चा है कि नगर निगम के कई अफसरों ने खुद के व अपने रिश्तेदारों के टिप्पर विभाग में लगा रखे हैं और जमकर उसका पैसा ले रहे हैं। वहीं कई अफसरों ने अपने चहेतों को कूड़ा लिफ्टिंग के ठेके दे रखे हैं। जिसके चलते ठेकेदार अपनी मनमर्जी से कूड़ा उठाते है और शहर में कही भी फेंक देते हैं। इसी कारण पहले ग्यासपुरा में कूड़े के पहाड़ बने। जिसके बाद अब कभी फिरोजगांधी मार्केट, जवाहर नगर कैंप, सराभा नगर तो कभी ढोलेवाल में कूड़े के ढ़ेर लगे मिलते हैं। जबकि उन्हें रोकने व कार्रवाई करने को कोई अफसर तैयार नहीं है।
20 करोड़ की कूड़ा लिफ्टिंग मशीनें गायब
निगम द्वारा जनता का पैसा बर्बाद करने में किसी भी पक्ष से कोई कसर नहीं छोड़ी गई। चर्चा है कि निगम द्वारा करीब 20 करोड़ की गीला व सूखा कूड़ा लिफ्टिंग की मशीनें ली गई थी। लेकिन अब वे गायब हैं। जबकि घरों के कूड़ा उठाने का ठेका प्राइवेट ठेकेदारों को दे रखा है। जिसके चलते वे गीला-सूखा कूड़ा मिक्स करके डंप कर देते हैं। जिससे गंदगी और बढ़ रही है।
शेना अग्रवाल के बाद नहीं चली अवेयरनेस कैपेंन
जानकारी के अनुसार निगम की पूर्व कमिश्नर शेना अग्रवाल की और से पहले शहर में स्वच्छता को लेकर कई कैपेंन चलाई गई। स्कूलों, कॉलजों व मोहल्लों में जाकर लोगों को स्वच्छता संबंधी जागरुक किया गया था। लेकिन शेना अग्रवाल के बाद निगम कमिश्नर बने किसी भी अधिकारी द्वारा इस पर ध्यान ही नहीं दिया गया। यां यूं कह लें कि शहर में गंदगी फैले या न, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है।
अलग से मिलता है स्वच्छ भारत मिशन-सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट फंड
जानकारी के अनुसार नगर निगम का 1000 करोड़ का बजट तो अलग से हैं, लेकिन इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन के तहत भी फंड जारी किया जाता है। जबकि इसके अलावा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट फंड भी मिलता है। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि इतने हजार करोड़ रुपए मिलने के बाद भी अगर शहर साफ नहीं हो रहा, तो आखिर सारा पैसा कहा जा रहा है। चर्चा है कि यह सारा पैसा सिर्फ अफसरशाही और नेतागिरी में ही खर्च हो रहा है। इसी लिए शहर के यह हालात हो रहे हैं।
30 करोड़ के कंपैक्टर लगाए, लेकिन सात पड़े खराब
नगर निगम की और के कूड़े के लिए अलग अलग जगह पर कंपैक्टर लगाए। जिसमें करीब 30 करोड़ रुपए खर्च किए गए। चर्चा है कि सात जगह पर तो मशीनें ही खराब पड़ी है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि शहर के पास घरों से कूड़ा उठाने से लेकर नष्ट करने तक हर चींज व फंड पर्याप्त है। लेकिन इसके बावजूद शहर पिछड़ रहा है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस पैसे से सिर्फ अधिकारी अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं।