मुद्दे की बात : भारत-चीन के रिश्ते पटरी पर लाने की कवायद

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दोनों को अहसास, उनके क्षेत्रीय विवाद निकट भविष्य में आसानी से हल नहीं हो सकता

सीमा पर वर्षों के तनाव के बाद, भारत और चीन अपने संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में दिख रहे हैं। हालांकि भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने चुनौतियां बरकरार हैं।

दरअसल जून महीने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान चीन की अलग-अलग यात्रा की थी। इस यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों के बीच जमी बर्फ़ के पिघलने के रूप में देखा गया था। एससीओ 10 सदस्य देशों का एक संगठन है, जिसमें भारत के साथ चीन, पाकिस्तान, रूस और ईरान शामिल हैं। राजनाथ की यह यात्रा पिछले पांच वर्षों में किसी वरिष्ठ भारतीय मंत्री की पहली चीन यात्रा थी। भारत-चीन तनाव के केंद्र में 3,440 किमी लंबी सरहद है। इस लंबे बॉर्डर पर नदियां, झीलें और बर्फ़ से ढंकी पहाड़ियां होने से सीमा रेखा अक़्सर खिसकती रहती है। जिससे कई जगह सैनिक आमने-सामने हो जाते है। यह तनाव जून 2020 में उस समय और बढ़ा था, जब लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हिंसक टकराव हुआ। यह 1975 के बाद पहली बार था।

हालांकि भू-राजनीतिक हालात और ज़मीनी सच्चाइयों ने दोनों देशों को कुछ मुद्दों पर आपसी समझ बनाने को मजबूर किया। पिछले साल के अंत में लद्दाख में मुख्य तनाव वाले प्वाइंट को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति बनी। दोनों ने तय किया कि 2020 की झड़प के बाद सीधी उड़ानों और वीज़ा पर जो पाबंदियां लगी थीं, उन्हें फिर से सामान्य करेंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक तेज़ी से बदलती वैश्विक राजनीति ने भारत को चीन से बातचीत को मजबूर किया है। इसमें डोनाल्ड ट्रंप का दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनना अहम फ़ैक्टर है। भारत को लगा था कि वह अमेरिका का बहुत क़रीबी रणनीतिक साझेदार बनेगा, लेकिन अमेरिका से उसे वैसा समर्थन नहीं मिला। हाल ही में पाकिस्तान के साथ सीमा पर बढ़ते तनाव के दौरान, भारत ने चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग को भी देखा। इस संघर्ष के बाद, ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने दोनों पक्षों के बीच संघर्षविराम के लिए मध्यस्थता की। यह भारत के लिए झटका था, क्योंकि भारत के मुताबिक उसने पाकिस्तान से सीधे बात की थी। फिर कुछ हफ़्तों बाद, ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया, जिससे भारत और ज़्यादा नाराज़ हुआ। वहीं, ट्रंप पहले ही धमकी दे चुके हैं कि वह भारत समेत कई देशों पर जवाबी (रेसिप्रोकल) टैरिफ़ लगाएंगे।

रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका, भारत को आक्रामक होते जा रहे चीन के ख़िलाफ़ एक मज़बूत दीवार की तरह देखता है। हालांकि ट्रंप के रवैए से अब भारत को संदेह है कि भविष्य में चीन के साथ किसी संघर्ष की स्थिति में अमेरिका उसका साथ नहीं देगा। उधर, यूक्रेन पर रूस के हमले के जवाब में लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते, रूस अब ऊर्जा निर्यात के लिए चीन पर ज़्यादा निर्भर हो गया। यही बात चीन के साथ किसी भी भविष्य की टकराव की स्थिति में भारत को रूस की भूमिका को लेकर भी सतर्क कर रही है।

चीन ने हाल ही में भारत के ख़िलाफ़ व्यापार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया। इन चिंताओं के बाद, भारत ने कहा है कि वह चीन से बातचीत कर रहा है। हालांकि चीन व्यापार बढ़ाने को लेकर उत्सुक है, लेकिन उसने भारत के साथ अपने दूसरे क्षेत्रीय विवादों में कोई नरमी नहीं दिखाई। पिछले कुछ सालों में चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा और मज़बूती से जताना शुरू किया है। वहीं, भारत अरुणाचल को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। शंघाई की फुदान यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर शेन डिंगली ने बीबीसी से कहा, अगर चीन और भारत संप्रभुता के मुद्दे को नहीं छोड़ेंगे तो वे हमेशा लड़ते रहेंगे। अगर वे अरुणाचल प्रदेश  पर कोई समझौता कर लें तो दोनों देशों में हमेशा के लिए शांति हो सकती है। फ़िलहाल, भारत और चीन दोनों को इस बात का अहसास है कि उनका क्षेत्रीय विवाद निकट भविष्य में आसानी से हल नहीं हो सकता है।

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