दरअसल चीन, इजराइल और अमेरिका के विरोध के चलते ईरान से तेल आयात की बात नहीं कबूलता
इजराइल से संघर्ष शुरू होने के बाद से ईरान के साथ चीन के अपारदर्शी रिश्तों ने सबका ध्यान खींचा। इसके पीछे एक बड़ी
वजह चीन का ईरान के तेल का प्रमुख खरीदार होना रहा। इस पर अमेरिका का तर्क है कि चीनी ग्राहक ईरानी शासन को आर्थिक जीवन रेखा देते हैं।
हालांकि पश्चिमी देशों का मीडिया कहता है कि ईरान के कच्चे तेल के निर्यात का 90 फ़ीसदी चीन जाता है। वहीं चीन का मीडिया इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। वह ईरान से कितना तेल आयात करता है, इस पर कोई एक विश्वसनीय स्रोत नहीं है और अनुमानित आंकड़े अलग-अलग हैं। जबकि मीडिया रिपोर्टों में ये 10 से 15 फ़ीसदी के बीच बताया जाता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया था कि चीन अपने कुल तेल आयात का 13.6 फ़ीसदी ईरान से लेता है। कुछ अन्य मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन का 50 फ़ीसदी तेल होर्मुज़ स्ट्रेट से होकर गुज़रता है। हालांकि इसमें इराक़ और कुवैत जैसे देशों से होने वाला आयात भी शामिल है। ईरान के तेल पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखे हैं। हालांकि, चीन इन प्रतिबंधों को ‘ग़ैरक़ानूनी और एकतरफ़ा’ बताता है।
चीनी कस्टम डेटा ने जुलाई, 2022 के बाद से ईरान से किसी भी तरह के तेल आयात को औपचारिक तौर पर दर्ज नहीं किया। ब्लूमबर्ग ने 2024 में एक रिपोर्ट में ये दावा किया था कि ईरानी तेल के एक बड़े हिस्से को इस तरह पेश किया जा रहा है, जैसे वह मलेशिया से आता है। ये उसी जटिल नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें ईरानी कच्चे तेल को पुराने टैंकरों के बेड़े के ज़रिए उत्तरी चीन में निजी स्वामित्व वाली रिफ़ाइनरियों में गुप्त रूप से पहुंचाया जा रहा था। इस रिपोर्ट में एक एक्सपर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि इस तरह से गुप्त व्यापार ने चीन को ये मौक़ा दिया कि ईरान के साथ कारोबार के दावों को वह ख़ारिज कर सके। चीन के विदेश मंत्रालय ने ईरानी तेल के बारे में पूछे गए मीडिया के सीधे सवालों के जवाब नहीं दिए। पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अस्पष्ट-सा बयान दिया था कि इजराइल-ईरान युद्धविराम के बाद, चीन ईरान से तेल खरीदना जारी रख सकता है। वहीं चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने सिर्फ यह कहा कि चीन राष्ट्रीय हितों के आधार पर ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े कदम उठाएगा।
यहां काबिलेजिक्र है कि इजराइल के साथ संघर्ष के बीच ईरान ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य (स्ट्रेट) को बंद करने की धमकी दी थी। कुछ दिन पहले फ़ारस की खाड़ी और उससे आगे महासागर के बीच तेल आयात के प्रमुख मार्ग, होर्मुज़ के महत्व पर गुओ जियाकुन ने अपना जवाब चीनी संदर्भ की बजाए अंतरराष्ट्रीय संदर्भ को ध्यान में रखते हुए दिया।
जहां चीन व्यापार की बात करता है, वहां वह ईरान की बजाए ‘खाड़ी देशों’ या ‘खाड़ी’ से आयात का उल्लेख करता है। सीसीटीवी के वित्त और आर्थिक मामलों के टिप्पणीकार लियु गे ने कहा कि ईरान से होने वाला अधिकांश निर्यात उसके ‘शैडो बेड़े’ के ज़रिए होता है, हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा कि अगर होर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद कर दिया जाता है तो इससे जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और भारत जैसे एशियाई देश प्रभावित होंगे
पिछले दो हफ़्तों में, शायद ये उम्मीद की जा रही थी कि जब ईरान दुनियाभर की मीडिया की सुर्ख़ियों में था, तब चीनी मीडिया इस ऐतिहासिक समझौते का ज़िक्र करेगा। मगर इस सौदे का ज़िक्र चीन के शीर्ष स्तरीय सरकारी मीडिया से ग़ायब रहा।
———–