चीन के मुकाबले वैस्टर्न-एशिया में अमेरिकी दखल ज्यादा पुरानी
इजराइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष का दायरा बढ़ता जा रहा है। इसी बीच चीन ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस ‘जंग में घी डालने’ का काम कर रहे हैं। कनाडा में जी-7 देशों की बैठक थी और ट्रंप इस मीटिंग के बीच ही वॉशिंगटन रवाना हो गए। जाते हुए उन्होंने कहा कि ‘सीज़फ़ायर से बड़ी कोई चीज़ होने वाली है, युद्ध विराम नहीं, हमेशा के लिए युद्ध का अंत होगा।
अब ट्रंप के इस बयान से लोग अनुमान लगा रहे हैं कि ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका शायद अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाएगा। इससे ठीक पहले ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में ईरानी लोगों को तेहरान खाली करने को कहा था। इजराइली सेना ने भी उत्तरी तेहरान खाली करने की चेतावनी दी थी। दो दिन पहले अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वांस ने भी ऐसा ही इशारा दिया था। उधर, बढ़ते तनाव के बीच चीन और रूस ने अपने नागरिकों को तुरंत इजराइल छोड़ने की एडवाइज़री जारी की। चीन दूतावास के हवाले से बताया गया कि जॉर्डन और मिस्र के साथ इजराइल की सीमा खुली रहेगी। शुक्रवार को जब इजराइल ने ईरान पर हवाई हमला किया
तो चीन ने कहा था कि इसराइल ने ‘रेड लाइन क्रॉस की है। इसके एक दिन बाद 14 जून को शंघाई सहयोग संगठन ने ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की ती। एससीओ में चीन सबसे अहम भूमिका में है, हालांकि इस बयान से भारत ने खुद को अलग कर लिया। एससीओ की स्थापना 2001 में चीन, रूस और सोवियत संघ का हिस्सा रहे चार मध्य एशियाई देशों कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने मिलकर की थी। वर्तमान में भारत समेत कुल दस देश इसके सदस्य हैं। चार दिन पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराग़ची से बात की। चीनी विदेश मंत्रालय ने इस हमले को ईरान की संप्रभुता, सुरक्षा और क्षेत्र की एकता का उल्लंघन कहा था।
चीन और पश्चिम एशियाई मामलों के जानकारों के मुताबिक ईरान के साथ चीन के आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं और वह हर हाल में ईरान को ढहते हुए नहीं देखना चाहेगा। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के चायनीज़ स्टडी सेंटर में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अरविंद येलेरी के मुताबिक, बहुत पहले से ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल के पार्ट्स या ईंधन की सप्लाई चीन से होती रही है। जबकि हथियार प्रसार रोधी प्रतिबंधों में सिर्फ परमाणु ही नहीं, बल्कि बैलिस्टिक मिसाइलें भी आती हैं। दरअसल साल 2021 में चीन और ईरान के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत 400 अरब डॉलर का समझौता हुआ था, चीन ईरान रेल कॉरिडोर उसी का हिस्सा है। इस फ़्रेट कॉरिडोर के मार्फ़त प्रतिबंधों से परेशान ईरान को पश्चिमी नज़रों से बचते हुए चीन को तेल बेचने और वहां से सामान आयात करने में बड़ी सहूलियत होने वाली है। ईरान से तेल ख़रीदने पर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है। जबकि चीन इस मौके का फायदा उठाते हुए सस्ते दरों पर ईरान के तेल का बड़े पैमाने पर आयात करता है। यही कारण है कि प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान का तेल निर्यात 2024 की पहली तिमाही के दौरान 35.8 अरब डॉलर के सबसे उच्चतम स्तर पर रहा
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि जंग के और भड़कने की स्थिति में चीन की क्या प्रतिक्रिया रहने वाली है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर में सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी का मानना है कि चीन सिर्फ़ कड़े बयान देने के अलावा पश्चिम एशिया के संघर्ष में बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं है। पश्चिम एशिया में चीन की मौजूदगी लगभग डेढ़ दशक की है, जबकि अमेरिका वहां प्रत्यक्ष रूप से 1945 से ही है। पश्चिम एशिया की भू राजनीति में अभी भी इजराइल और अमेरिका ही ड्राइविंग सीट पर हैं।
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