सिटी ब्यूटीफुल में बिना एनवायरमेंट क्लीयरेंस के प्रोजेक्ट तैयार किया, सीबीआई कर रही थी मामले की मामले जांच
चंडीगढ़ 25 फरवरी। यहां इंडस्ट्रियल एरिया फेज-वन में बिना पर्यावरण और वन्यजीव मंजूरी के बड़ा प्रोजेक्ट बनाने के मामले में सीबीआई ने बड़ा एक्शन लिया। सीबीआई की जांच के बाद बर्कले रियल टेक लिमिटेड, गोदरेज एस्टेट डेवलपर्स और एस्टेट ऑफिस के अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।
जानकारी के मुताबिक आरोपियों पर आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। सीबीआई की एफआईआर में आरोप है कि एस्टेट ऑफिस के अधिकारियों की मिलीभगत से इन कंपनियों ने सरकारी नियमों को ताक पर रखकर निर्माण कार्य किया और बाद में अवैध रूप से आक्युपेशन सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया। इस मामले की शिकायत पंजाब राजभवन से की गई थी, जिसके बाद सीबीआई ने जांच शुरू कर दी। सीबीआई जांच के अनुसार, बर्कले रियल टेक लिमिटेड ने अपने ‘बर्कले स्क्वायर’ प्रोजेक्ट के लिए 12 अगस्त 2014 को वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस के लिए आवेदन किया। जबकि प्रोजेक्ट पहले ही पूरा हो चुका था।
बताते हैं कि उस समय सुखना वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और सिटी बर्ड सैंक्चुरी (सेक्टर-21) के लिए 10 किमी का इको-सेंसिटिव जोन तय था। जब 18 सितंबर 2015 को वन विभाग की टीम ने निरीक्षण किया, तो पाया कि यह प्रोजेक्ट सुखना वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी से 5.20 किमी और बर्ड सैंक्चुरी से 3.20 किमी दूर है। इसी तरह, गोदरेज एस्टेट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपने ‘गोदरेज इटर्निया’ प्रोजेक्ट के लिए 7 नवंबर 2014 को मंजूरी के लिए आवेदन किया। 22 दिसंबर 2014 को हुए निरीक्षण में सामने आया कि यह प्रोजेक्ट सुखना वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी से 6.60 किमी और बर्ड सैंक्चुरी से 4.0 किमी दूर था। क्लियरेंस के बिना ही इन प्रोजेक्ट्स का निर्माण पूरा कर लिया गया।
सीबीआई जांच में सामने आया कि एस्टेट ऑफिस के अधिकारियों ने इन अनियमितताओं को नजरअंदाज कर बर्कले स्क्वायर को 29 अप्रैल 2016 और गोदरेज इटर्निया को 9 जून 2015 को आक्युपेशन सर्टिफिकेट (ओसी) जारी कर दिया। जब यह मामला पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तक पहुंचा, तो 4 अप्रैल 2024 को पर्यावरण मंत्रालय के पत्र के बाद प्रशासन ने दोनों कंपनियों के आक्युपेशन सर्टिफिकेट को रद कर दिया। वहीं, सीबीआई ने अब इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार, एस्टेट ऑफिस के कई बड़े अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है और उन पर भी कानूनी शिकंजा कस सकता है। बिना एनवायरमेंट क्लीयरेंस 20 हजार वर्ग मीटर से अधिक के प्रोजेक्ट को मंजूरी देना नियमों का उल्लंघन है। हालांकि इन कंपनियों ने सरकारी नियमों की अनदेखी कर निर्माण कार्य पूरा किया और अफसरों की मदद से मंजूरी भी ले ली। आने वाले दिनों में कई और बड़े खुलासे हो सकते हैं।
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