मुद्दे की बात : नए ‘बांग्लादेशी’ भारतीय-नागरिक कब तक झेलेंगे परेशानी ?

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

मोदी सरकार जवाबदेह, घुसपैठिया मानती है भारत के राज्यों की पुलिस नए-नागरिकों को !

साल 2015 में ‘एनक्लेव’ के रहने वाले बांग्लादेशियों को भारत की विशेष नागरिकता दी गई थी। अब दस साल बाद इन ‘नए भारतीयों’ के सामने देश के दूसरे हिस्सों में अपनी नागरिकता प्रमाणित करना चुनौती बनी है। हांलाकि केंद्र की भाजपा सरकार इस मामले में लगातार अपनी पीठ खुद थपथपाती रहती है, जबकि जमीनी हकीकत चिंताजनक है।

इस ज्वलंत मुद्दे पर बीबीसी की ग्राउंड-रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। कई राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के ख़िलाफ़ जारी मुहिम की चपेट में पश्चिम बंगाल के कूच बिहार वाले ‘नए भारतीय नागरिक’ भी आ रहे हैं। दरअसल, वे साल 2015 से पहले की अपनी भारत की नागरिकता प्रमाणित नहीं कर पा रहे और उनको वापस कूच बिहार लौटना पड़ रहा है।

दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस के उपायुक्त एम.हर्षवर्धन ने दलील दी कि पुलिस के सामने पश्चिम बंगाल के 31 ‘संदिग्ध’ मामले आए हैं। इन ‘संदिग्धों’ के पहचान पत्रों की जांच के लिए पुलिस सत्यापन कर रही हैं। साल 2015 से पहले भारत व बांग्लादेश में दोनों तरफ़ ऐसे इलाक़े मौजूद थे, जिन्हें ‘छीटमहल’ यानि ‘एनक्लेव’ कहते थे। ये छोटी-छोटी बस्तियां थीं, ऐसे 111 एनक्लेव बांग्लादेश की तरफ़ थे, लेकिन उनकी ज़मीन का मालिकाना हक भारत के पास था। इसी तरह भारत के पश्चिम बंगाल के कूच बिहार इलाक़े में ऐसे 51 एनक्लेव थे, इनकी ज़मीन और इनमें रहने वाले लोग बांग्लादेश के नागरिक थे। कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो. देबर्षि भट्टाचार्य ने इस मुद्दे पर काफ़ी शोध किया।

उनके मुताबिक भारत में कई ‘प्रिंसली स्टेट’ मौजूद थे, इनका आज़ादी के समय भारत में विलय नहीं हुआ था। कूच बिहार और रंगपुर भी ऐसे ही प्रिंसली स्टेट थे, यह प्रक्रिया बाद में पूरी हुई। सन 1948 में कूच बिहार भारत का हिस्सा बना और 1952 में रंगपुर पूर्वी पाकिस्तान या मौजूदा बांग्लादेश का हिस्सा बना। इसके बाद ही अंतर्राष्ट्रीय सीमा खिंची  तो उधर के इलाक़े कहने को तो बांग्लादेश में थे, लेकिन वह भारत की ज़मीन थी। इसी तरह कूच बिहार में भी हुआ, इसलिए इन्हें ‘एनक्लेव’ बोला जाने लगा। बंटवारे के बाद से ही एनक्लेव में रहने वाले लोग सीमित दायरे में ज़िन्दगी जीते रहे।

इस तरह के कई एनक्लेव बांग्लादेश में तो थे, लेकिन उनमें उनके रहने वाले भारतीय नागरिक थे। उनकी बस्तियों में ना बिजली पहुंची और उन्हें वहां नौकरी का अधिकार भी नहीं मिला। भारत वाले एनक्लेव की भी यही दास्तां थी। यहां रहने वाले सदियों तक बुनियादी सुविधाओं और पहचान के मोहताज रहे, क्योंकि वे भारत के नागरिक नहीं थे। इस मुद्दे का हल निकालने को बांग्लादेश और भारत की सरकारों के बीच कोशिशें जारी रहीं। इसका हल निकाल भारत को संविधान में 119वां संशोधन करना पड़ा। साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के बीच समझौता हुआ। जिसके तहत 111 भारत की ज़मीन के टुकड़े जो बांग्लादेश की तरफ़ थे, वे बांग्लादेश के हो गए। दूसरी ओर, जो 51 टुकड़े भारत में थे, वे भारत के हो गए।

केंद्र सरकार ने इन नए भारतीय नागरिकों के लिए एक हज़ार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा भी की थी। यहां रहने वालों के लिए नए पहचान पत्र बने, मतदाता कार्ड बने। बांग्लादेश से भारत आने वालों को एक-एक कमरे के घर भी मिले। कुछ के नाम ज़मीन के वही हिस्से लिख दिए गए, जिन पर वे रह रहे थे। इसके बावजूद 16 हज़ार 777 नए भारतीयों के सामने अब भी चुनौती बनी हुई है। इनमें 15 हज़ार 856 वे लोग हैं, जो पहले से भारत में मौजूद एनक्लेव में रहते थे। जबिक 921 वे लोग हैं, जो बांग्लादेश के एनक्लेव से भारत आए थे। इलाक़े में रोज़गार के संसाधनों कम हैं, इस वजह से इनको काम की तलाश में भारत के दूसरे शहरों में जाना पड़ता है। ख़ासतौर पर उनको जो बांग्लादेश से भारत आए हैं और जिनके पास ज़मीन का एक टुकड़ा भी नहीं है।

जब ये लोग यहां से बाहर जाते हैं तो साथ में अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए केंद्र सरकार के दिए दस्तावेज़ भी ले जाते हैं। हालांकि, उनका दावा है कि सरकार द्वारा दिए प्रमाण पत्रों का किसी भी राज्य द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया जाता।

गौरतलब है कि इनके नाम ‘नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर’ में भी जोड़े गए हैं। वे आरोप लगाते हैं कि सुरक्षा एजेंसियां उन्हें ‘बांग्लादेशी’ बताकर परेशान करती हैं। नतीजतन, महानगरों में काम करने गए ये लोग अब वापस कूच बिहार और पश्चिम बंगाल के अन्य इलाक़ों में लौटने लगे हैं।

शम्सुल हक़ मियां दिनहाटा के रहने वाले हैं और नए भारतीय नागरिक हैं। वह गुस्से में कहते हैं कि नागरिकता तो दे दी, लेकिन किसी अन्य राज्य की पुलिस और सरकार, बंगाल का प्रूफ़ देखकर ही बोल देते है, ये बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। उनका बड़ा सवाल था कि यह किसकी ज़िम्मेदारी है ? कौन इन अधिकारियों को बताएगा कि हम नए नागरिक हैं, हमें दस साल पहले भारत में शामिल किया गया है।

दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों के ख़िलाफ़ अभियान चलाया हुआ है। पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के कुछ इलाक़ों में लोगों के पहचान पत्र के सत्यापन के लिए भी भेजी है। पुलिस उपायुक्त मंडावा हर्षवर्धन का तर्क है कि अवैध तरीक़े से रहने वालों की कई श्रेणियाँ हैं। कई लोगों के वीज़ा ख़त्म हो गए हैं, मगर वे अपने देश वापस नहीं लौटे हैं। एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बिना किसी दस्तावेज़ के भारत में घुसपैठ कर रहा है। घुसपैठिए बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में घुस रहे हैं, कुछ को हमने पकड़कर रिमांड होम भी भेजा है।

वहीं, नए नागरिकों का सुझाव है कि अगर केंद्र सरकार इन 921 और 15 हज़ार 856 लोगों को एक ‘विशेष नागरिकता कार्ड’ बनाकर दे दे तो समस्या ही ख़त्म हो जाएगी। वहीं, बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ पर पश्चिम बंगाल सरकार और भारतीय जनता पार्टी में हमेशा से ठनी रही है। अब एनक्लेव के लोगों की परेशानी पर ममता सरकार पर अंदरूनी दबाव भी बढ़ने लगा है। उत्तर बंगाल विकास मंत्री उदयन गुहा के मुताबिक राज्य सरकार ने ये मामला केंद्र सरकार के साथ उठाया है, इस पर दोनों के बीच बातचीत भी चल रही है। राज्य सरकार बांग्लादेश से आए सभी नए नागरिकों को ज़मीन का पट्टा देने पर विचार भी कर रही है, जिससे उनके लिए नागरिकता का एक मज़बूत प्रमाण मिल जाएगा।

सबसे बड़ा सवाल कि सरकारों के आश्वासन अपनी जगह हैं, मगर 2015 में नए भारतीय नागरिक बने इन क़रीब 17 हज़ार लोगों को आखिर कब तक अपनी ‘ज़िन्दगी सुधारने’ के लिए और मशक़्क़त करनी पड़ेगी ?

————

 

 

 

 

 

Leave a Comment