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एकदम सही पकड़े हैं जी
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नेताओं को जनहित के नाम पर रखना था उपवास
यह घोषणा करते ही फूलने लगी उनकी तो सांस
लजीज खानों के साथ जिंदगी भर सब कुछ खाते रहे
अब सोचने लगे, भला गरीबों की तरह कैसे भूखे रहे
—-बड़का वाले कविराय