मुद्दे की बात : मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति से कांग्रेस क्यों खफा ?

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सुप्रीम कोर्ट में इस की नियुक्ति वाले नए नियम को चुनौती वाली याचिका पर सुनवाई से पहले घोषणा

केंद्र की मोदी सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस एक बार फिर आमने-सामने हैं। दरअसल चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में तीन सदस्यों वाली समिति की बैठक में यह फ़ैसला हुआ। ज्ञानेश कुमार बुधवार यानि 19 फ़रवरी को मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़िम्मेदार संभालेंगे।

दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले नए नियम को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से पहले इसकी घोषणा की गई है। इसी नए नियम से ज्ञानेश कुमार नियुक्त हुए हैं। क़ानून मंत्रालय ने सोमवार रात नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। वहीं, हरियाणा के मुख्य सचिव विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। ज्ञानेश की नियुक्ति पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने आपत्ति जताई। गौरतलब है कि ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। जनवरी, 2024 में वह यूनियन कोऑपरेशन सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय में वह मई, 2022 से सेक्रेटरी थे। इसके दो महीने बाद 14 मार्च, 2024 को उनको चुनाव आयुक्त बनाया गया था। जब 15 मार्च को उन्होंने कार्यभार संभाला तो अगले दिन ही चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की थी। चुनाव आयुक्त का पद संभालने के लगभग एक साल बाद ही वह अब मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे हैं। उन्होंने इससे पहले पांच साल गृह मंत्रालय में काम किया था। जहां वह मई, 2016 से संयुक्त सचिव और उसके बाद सितंबर 2018 से अप्रैल 2021 तक अतिरिक्त सचिव के पद पर थे। अतिरिक्त सचिव के पद पर रहते समय ज्ञानेश कुमार जम्मू-कश्मीर के मामलों को देख रहे थे। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को रद करने की घोषणा की गई थी.

इस मुद्दे पर कांग्रेस के एतराज को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स लगातार सामने आ रही हैं। बीबीसी की खास रिपोर्ट के मुताबिक अनुच्छेद 370 को रद् करने का क़ानून जब लाया जा रहा था, उस समय ज्ञानेश गृह मंत्री अमित शाह के साथ लगातार संसद में आते थे। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मोदी सरकार का ज्ञानेश कुमार में एक नौकरशाह के तौर पर भरोसा इस तथ्य से ही पता चलता है कि ना केवल उन्हें गोपनीय विधेयकों में से एक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, बल्कि वह राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी शामिल थे। इसी रिपोर्ट के मुताबिक़, कोऑपरेशन सेक्रेटरी के उनके कार्यकाल के दौरान मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज़ विधेयक, 2023 पास किया गया था। जिसका लक्ष्य कोऑपरेटिव सेक्टर में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना था।

ज्ञानेश कुमार के चुनाव आयुक्त रहते आम चुनाव 2024 हुए और साथ ही अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। इसके अलावा हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर उनका कार्यकाल 26 जनवरी, 2029 तक होगा। उनके कार्यकाल में 20 विधानसभा चुनाव होंगे। साथ ही 2027 में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव और 2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी भी उन्हीं के कार्यकाल में होगी।

ज्ञानेश ने आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है। उन्होंने इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड फ़ाइनैंशियल एनालिस्ट्स ऑफ़ इंडिया से बिज़नेस फ़ाइनैंस में पढ़ाई भी की है।

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि मोदी सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिए 2023 में जो नया क़ानून ‘द चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर एंड अदर इलेक्शन कमिश्नर एक्ट’ लेकर आई है। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर तीन ऑर्डर पास किए हैं और अगली सुनवाई 19 फ़रवरी को होनी है। इसलिए मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन को लेकर कांग्रेस का रुख़ बड़ा स्पष्ट है। उनके चयसे जुड़ी बैठक स्थगित किया जाए। मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट से कहे इसकी सुनवाई जल्दी पूरी करे। इसमें कांग्रेस पूरा समर्थन देगी। मोदी सरकार को अपना अहंकार छोड़कर यह मांग माननी चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चयन करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री अध्यक्ष होते हैं। जबकि इसके एक सदस्य गृह मंत्री अमित शाह और दूसरे सदस्य नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हैं। हालांकि सरकार ने कांग्रेस की आपत्ति को नज़रअंदाज़ करते हुए बैठक की और ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फ़ैसला कर लिया। कांग्रेसी नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ने आधी रात को जल्दबाज़ी में नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी, यह संविधान की भावना के ख़िलाफ़ है।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कांग्रेस के सूत्रों ने कहा है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री के आवासीय कार्यालय में हो रही बैठक छोड़कर निकल गए थे। उन्होंने पहले लिखित में अपनी आपत्ति सौंपी थी, नामों पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी नहीं मौजूद थे। कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाला नया नियम निष्पक्ष नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र और उसकी निष्पक्षता के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की चयन समिति में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष हों। जबकि जल्दबाज़ी में नया क़ानून लाया गया, इस नए क़ानून में सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के ठीक विपरीत काम किया गया, जिसमें पूरी तरह से कार्यपालिका मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन कर रही है।

यहां काबिलेजिक्र है कि ऐसा पहली बार है, जब मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 के तहत हुआ है। इससे पहले बीते साल ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नए क़ानून के तहत चुनाव आयुक्त चुना गया था। इस नए क़ानून से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति करते थे। कोर्ट ने कहा था कि यह आदेश तब तक रहेगा जब तक कि संसद इस पर क़ानून ना बना दे। जबकि केंद्र सरकार ने क़ानून लाकर इस पैनल में मुख्य न्यायाधीश की जगह केंद्रीय मंत्री को जगह दे दी।

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