एक्सपर्ट की राय, ऐसा कहना जल्दबाजी, बीजेपी महज दो फीसदी ज्यादा वोट हासिल कर जीती
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के बाद तमाम लोग पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक-अंत की शुरुआत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। आप के संस्थापक सदस्य रहे प्रशांत भूषण ने चुनावी नतीजे आने के बाद आठ फ़रवरी को कहा कि यह आप के अंत की शुरुआत है। क्या वाकई आप के अंत शुरुआत हो गई है ? इस घोषणा को हम पहले तथ्यों की कसौटी पर कसे तो
इस बार आप को दिल्ली विस चुनाव में कुल 43.57 प्रतिशत मत मिले, उसे 70 में से 22 विधानसभा सीटों पर जीत मिली। दूसरी तरफ़ बीजेपी का वोट शेयर 45.56 प्रतिशत है और 48 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी को आप से महज दो प्रतिशत ज़्यादा वोट मिले हैं, इसी दो फ़ीसदी के दम पर बीजेपी को आप से 26 सीटें ज़्यादा मिलीं। इसका मतलब है कि बीजेपी को आप से जिन सीटों पर जीत मिली है, वहां लड़ाई एकतरफ़ा नहीं थी। आप को वोट शेयर के मामले में बीजेपी से कोई बड़ी हार नहीं मिली है, लेकिन 2020 के दिल्ली विस चुनाव की तुलना में उसके वोट शेयर में बड़ी गिरावट ज़रूर आई। साल 2020 के दिल्ली विस चुनाव में आप का वोट शेयर 53.57 प्रतिशत था, यानि 2020 की तुलना में आप को 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में क़रीब 10 प्रतिशत वोट कम मिले। 2020 में इसी वोट शेयर के दम पर आप को 70 में से 62 सीटों पर जीत मिली थी।
उसी तरह वोट शेयर को पैमाना माने तो बीजेपी को इस बार आप के ख़िलाफ़ मिली जीत बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन 2020 की तुलना में बीजेपी का प्रदर्शन जबर्दस्त रहा है। 2020 के दिल्ली विस चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 38.51 प्रतिशत था, जो इस बार 7.3 प्रतिशत बढ़कर 45.56 फ़ीसदी हो गया और सीटें आठ से बढ़कर 48 हो गईं। 2015 और 2020 के दिल्ली विस चुनाव में बीजेपी आप के सामने फिसड्डी साबित हुई थी। उस दौर में ऐसा लगता था कि बीजेपी के लिए दिल्ली में आप को हराना टेढ़ी खीर है। ऐसे में आप से बीजेपी का वोट शेयर दो फ़ीसदी ज़्यादा होने को आप के अंत की शुरुआत बताना, जल्दबाज़ी ही कहा जा सकता है।
दिल्ली में इस बार कांग्रेस का वोट शेयर 6.34 प्रतिशत रहा, लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। आप को इस बार कांग्रेस से 37 फ़ीसदी ज़्यादा वोट मिले हैं। ऐसे में जानकारों के मुताबिक कांग्रेस अगर आप की हार पर ख़ुश होती है तो उसे अपने प्रदर्शन के बारे में सोचना होगा। नई दिल्ली विधानसभा सीट पर केजरीवाल के ख़िलाफ़ कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को अपना उम्मीदवार बनाया था। संदीप दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं। उनसे पूछा गया कि क्या वह केजरीवाल की हार से ख़ुश हैं ?
इस पर वह बोले कि हम ख़ुश नहीं हैं, लेकिन संतोष है कि जिस आदमी ने हमारे बारे में कितनी घटिया बातें कही थीं, वो हारा है तो क्या हम उसकी हार का दुख मनाएंगे ? भारतीय राजनीति में हर ग़लत हथकंडा अपनाने वाले व्यक्ति की हार पर हमें पछतावा क्यों होगा ? नई दिल्ली में मुझे हार का अंदाज़ा था। दीक्षित कहते हैं कि लेकिन मुझे लगता था कि केजरीवाल तीसरे नंबर पर रहेंगे. कांग्रेस को इतना कम वोट मिलेगा इसका अंदाज़ा नहीं था। लोगों ने कांग्रेस को गंभीर विकल्प नहीं माना
बीजेपी और उसकी दो सहयोगी पार्टियां जेडीयू के साथ लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का वोट शेयर जोड़ दें तो क़रीब 47 प्रतिशत हो जाता है। वहीं कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल का वोट शेयर जोड़ दें तो 50 फ़ीसदी वोट हो जाता है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि बीजेपी को दिल्ली की जनता ने एकतरफ़ा जनादेश दिया है.
ऐसे में क्या आप के अंत की घोषणा करना उचित है ? सेंटर फोर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी में प्रोफ़ेसर संजय कुमार भारत कहते है कि केजरीवाल के लिए मुश्किल तो है, लेकिन मुझे लगता है कि हताश नहीं होना चाहिए. बीजेपी से आप का वोट शेयर महज दो प्रतिशत ही कम है।
केजरीवाल को हार तब मिली है, जब उनके और पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं और सभी ज़मानत पर जेल से बाहर हैं। अगर केजरीवाल को फिर से जेल जाना पड़ता है तो आप के लिए अस्तित्व बचाने का सवाल खड़ा होगा।
वहीं आप के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव गोपाल इटालिया कहते हैं कि बीजेपी के साथ सरकार की सारी मशीनरी थी, मीडिया था, धनबल और बाहुबल थे। इसके बावजूद उसे हमसे महज दो प्रतिशत ही ज़्यादा वोट मिले हैं। जो आम आदमी पार्टी के अंत की घोषणा कर रहे हैं, उन्हें थोड़ा सब्र रखना चाहिए। राजनीति में एक चुनाव जीतने और हारने के बीच बहुत फ़र्क़ नहीं होता है। हम एक राष्ट्रीय पार्टी हैं, पंजाब में हमारी सरकार है, गुजरात में हमारी अच्छी पकड़ है। राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा भी मानते हैं कि लोग आप को लेकर बहुत जल्दबाज़ी में हैं। जब बिहार में हमारी हार होती है तो इसी तरह की घोषणा आरजेडी को लेकर की जाती है। आरजेडी अब भी ज़िंदा है और आगे भी रहेगी।
आप के अलावा स्वतंत्र भारत में एनटी रामाराव की तेलुगू देशम पार्टी और प्रफुल्ल कुमार महंता की असम गण परिषद ऐसे दो उदाहरण हैं, जो पहले प्रयास में ही सत्ता में आने में कामयाब रहे हैं। तेलुगू देशम पार्टी और असम गण परिषद एक राज्य तक सीमित रहीं। जबकि आप दिल्ली से बाहर भी सरकार बनाने में कामयाब रही।
साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में आप को शानदार जीत मिली, सितंबर 2023 में निर्वाचन आयोग ने आप को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया। यह दर्जा दिल्ली, गोवा, पंजाब और गुजरात में आप को मिले वोट शेयर के आधार पर दिया गया था। अगर इंडिया गठबंधन भविष्य में फिर से एकजुट होता है तो आप अग्रणी भूमिका में दिख सकती है। पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार मानते हैं कि केजरीवाल सत्ता से ज़्यादा विपक्ष में रहकर सरकार को चुनौती देने के रूप में जाने जाते हैं। मौक़ा है कि इस ख़ूबी का इस्तेमाल करें और अतीत की ग़लतियों से सबक़ लें।
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