मुद्दे की बात : दिल्ली में आप सरकार ने वाक़ई शिक्षा की तस्वीर बदली ?

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

दिल्ली विस चुनाव में विपक्ष शिक्षा के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी पर हमलावर

दिल्ली हो या देश का कोई और कोना, आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल दिल्ली की शिक्षा नीति की तारीफ़ करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते। साल 2022 में गुजरात चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के एक सरकारी स्कूल में पहुंचे थे। वह क्लासरूम में बच्चों के बीच बैठे हुए नज़र आए थे। तब आप ने इसे दिल्ली की ‘शिक्षा क्रांति’ का असर बता क्रेडिट केजरीवाल को दिया था। दिल्ली के तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया था कि ये हमें जेल भेजेंगे. हम इन्हें स्कूल भेजेंगे।

खैर, इस मुद्दे पर अब दिल्ली में विधानसभा चुनाव के चलते मीडिया फिर इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है। बीबीसी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि, विपक्षी दल कांग्रेस और बीजेपी इसे शिक्षा के नाम पर केजरीवाल का ‘फ़्लॉप शो’ बताती हैं। गत दिनों पीएम मोदी ने दिल्ली की एक रैली में कहा था कि दिल्ली में जो लोग राज्य सरकार में पिछले दस साल से हैं, उन्होंने यहां की स्कूली शिक्षा व्यवस्था को बहुत नुक़सान पहुंचाया है। उसे बच्चों के भविष्य की परवाह नहीं है। जो पैसा समग्र शिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार ने दिया, उसका आधा भी पढ़ाई के लिए ख़र्च नहीं कर पाए। अब कांग्रेसी नेता अजय माकन ने दिल्ली में शिक्षा के मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल उठाया कि अगर केजरीवाल शिक्षा का मॉडल इतना अच्छा है तो बच्चे सरकारी स्कूल छोड़कर प्राइवेट स्कूल में क्यों जा रहे हैं ? यहां काबिलेजिक्र है कि केजरीवाल 3 बार 2013, 2015 और 2020 में दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से सत्ता में आए और धीरे-धीरे उन्होंने अपना एजेंडा पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर शिफ़्ट किया।

साल 2015 में आप ने वादा किया था कि अगर वो सत्ता में आए तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति कर देंगे। इसके बाद से दिल्ली सरकार बजट का लगभग 20-25 फ़ीसद ख़र्च शिक्षा पर कर रही है, यह देश के सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा है। हालांकि सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानि ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट के अनुपात में शिक्षा पर ख़र्च के मामले में दिल्ली बाकी राज्यों की तुलना में पीछे है। शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2021-22 में दिल्ली ने अपनी जीएसडीपी का 1.63 प्रतिशत ख़र्च किया। जीएसडीपी की तुलना में शिक्षा पर ख़र्च करने के मामले में दिल्ली सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों की सूची में सबसे नीचे है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पर कुल ख़र्च की बात करें तो भारत ने 2021-22 में अपनी जीडीपी का 4.12 प्रतिशत ख़र्च किया था। वर्तमान में आतिशी दिल्ली की सीएम खुद शिक्षा विभाग भी वह ख़ुद संभालती हैं।

दिल्ली सरकार का दावा है कि स्मार्ट क़्लास, स्विमिंग पुल, लाइब्रेरी और आधुनिक लैब जैसी सुविधाओं ने सरकारी स्कूलों को प्राइवेट के समकक्ष खड़ा कर दिया है। हालांकि बच्चों की अनुपस्थिति अब भी एक बड़ी चुनौती है। साल 2022-23 में दिल्ली के एक हज़ार से ज़्यादा सरकारी स्कूलों में लगभग 17.85 लाख छात्र पढ़ रहे थे। इन छात्रों में से 6.67 लाख छात्र लगभग 33% अप्रैल 2023 से फ़रवरी 2024 के बीच लगातार सात दिन या एक 30 दिनों में से 20 दिनों तक अनुपस्थित रहे।

ड्रॉप आउट को देखते हुए दिल्ली सरकार ने जून, 2024 में एक फ़ैसला किया, जिसकी कई लोगों ने आलोचना की।

दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने सरकारी स्कूलों से कहा कि नौवीं क्लास में दो बार फेल होने वाले छात्रों को शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए एनआईओएस में दाखिला कराया जाए, एनआईओएस यानि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान।

सरकार का इस फ़ैसले के पीछे तर्क था कि फेल होकर स्कूल छोड़ने वाले छात्रों के लिए अनौपचारिक शिक्षा के रास्ते खुलेंगे। हालांकि आलोचना करने वालों का कहना था कि दिल्ली सरकार दसवीं का रिजल्ट बेहतर करने के लिए कमज़ोर छात्रों को नौवीं में रोक रही है। प्रोफ़ेसर जेएस राजपूत नेशनल काउंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग  के पूर्व चेयरमैन हैं। उनके दिल्ली में ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ है, जिससे उसे शिक्षा के मामले में दूसरे राज्यों से बेहतर कहा जा सके। हालांकि, दिल्ली सरकार की तरफ़ से टीचरों को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजने को वह अच्छी पहल मानते हैं। आप की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ कहती हैं कि दिल्ली सरकार ने भले नए स्कूल कम बनाए हैं, लेकिन पुराने स्कूलों को नया बना दिया गया है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षा संकाय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर लतिका गुप्ता भी दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर सवाल खड़े करती हैं। हालांकि वह शिक्षा को राजनीति में प्रमुख मुद्दा बनाना आम आदमी पार्टी का एक अच्छा क़दम बताती हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी के दस साल के कार्यकाल में सिर्फ़ 75 नए स्कूल बने। 2016 से लेकर 2023 तक बारहवीं कक्षा में दिल्ली के नतीजे सीबीएसई के ऑल इंडिया रिजल्ट से आगे रहे हैं।  2021 से लेकर 2023 तक दिल्ली में दसवीं के नतीजों ने सीबीएसई के ऑल इंडिया रिजल्ट को चुनौती दी है। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में कक्षा छह से लेकर आठ तक सबसे ख़राब शिक्षक छात्र अनुपात है। दिल्ली में कक्षा एक से लेकर पांच तक 30 छात्रों पर एक टीचर है। केजरीवाल चुनावी भाषणों से लेकर इंटरव्यू में यह दावा करते हैं कि दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं।

आंकड़े देखने पर पता चलता है कि केजरीवाल के समय प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ था। फिर कोरोना के दौरान ऐसे छात्रों की संख्या में कमी आई थी। 2021 में जब प्राइवेट स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या कम हुई थी, तब केजरीवाल ने इस पर ट्वीट किया था। दिसंबर में दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली सरकार की ‘शिक्षा क्रांति’ के ख़िलाफ़ पोल खोल अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के तहत बीजेपी नेताओं ने अलग-अलग स्कूलों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेसी नेता संदीप दीक्षित, केजरीवाल के ख़िलाफ़ नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने केजरीवाल को जंतर-मंतर पर पब्लिक डिबेट के लिए आमंत्रित किया था। दीक्षित ने दावा किया कि केजरीवाल ने पिछले दस सालों में एक भी अस्थायी टीचर को पक्की नौकरी नहीं दी है। वहीं आप की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस के आरोपों पर मत जाइए। आप ख़ुद दिल्ली के स्कूलों में जाइए। आप दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर जाइए, आपको सारी जानकारी मिल जाएगी। जो लोग ख़ुद चौथी पास हैं वो ऐसे आरोप लगा रहे हैं। 500 नए सरकारी स्कूल आप द्वारा बनाने के दावे पर कक्कड़ का कहना है कि हमने पुराने स्कूलों में से ज़्यादातर स्कूलों को तोड़कर नया बनाया है, ये सब स्कूल भी पुराने नहीं हैं।

———–

 

 

 

 

Leave a Comment