मुद्दे की बात : पहलगाम हमले की टाइमिंग ! पीएम मोदी सऊदी तो अमेरिकी उप राष्ट्रपति भारत दौरे पर

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अमेरिकी नेताओं के भारत दौरे के वक्त ही आतंकी हमलों का मकसद कश्मीर-विवाद पर दुनिया का ध्यान खींचना !

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार दोपहर बाद सऊदी अरब के दो दिवसीय दौरे पर जेद्दा पहुंचे थे। शाम होते ही जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में चरमपंथी हमला हो गया। सरकार ने शुरू में मरने वालों की कोई संख्या नहीं बताई, लेकिन रात तक 26 लोगों की मौत की रिपोर्ट आने लगीं।

पीएम मोदी ने सऊदी अरब पहुंचने के बाद सोशल मीडिया के ज़रिए हमले की निंदा की। साथ ही ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा देने की बात दोहराई थी। रात तक यह ख़बर आई कि  मोदी अरब दौरा बीच में ही छोड़ स्वदेश लौट रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम पर तब से देश-दुनिया के मीडिया की नजरें टिकी हैं। दरअसल पीएम मोदी ने अरब के आधिकारिक डिनर में शामिल होने के बजाए वापस आने का फ़ैसला किया और दिल्ली आ गए। अगर पहलगाम हमला नहीं होता तो मोदी बुधवार को भी सऊदी अरब में ही रहते। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मोदी ने एयरपोर्ट पर ही भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हमले की जानकारी ली। उधर, अरब में भारत के राजदूत सुहैल एजाज़ ख़ान ने कहा कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने पहलगाम हमले की निंदा की है और भारत को हर तरह की मदद की पेशकश की है। मोदी का विमान जब जेद्दा पहुंचा था तो रॉयल सऊदी एयरफोर्स के एफ-15 फाइटर जेट्स उनके सम्मान में उड़ान भर रहे थे, फिर उनको 21 तोपों की सलामी दी थी। सऊदी अरब ऐसा अपने ख़ास मित्र देशों और पार्टनरों के लिए ही करता है। पिछले 40 सालों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का लाल सागर के तटीय शहर जेद्दा में यह पहला दौरा था।

पीएम मोदी का दौरा छोटा होने के बावजूद चार अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। जो स्पेस और हेल्थ के क्षेत्र में हुए। साथ में ही दोनों देशों के बीच इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर पर भी सहमति बनी। इस कॉरिडोर की चर्चा इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मुलाक़ात में भी हुई थी।

मोदी के इस छोटे से दौरे में सऊदी अरब और भारत की क़रीबी की स्पष्ट झलक मिली। संयुक्त बयान में दोनों देशों ने पहलगाम में आतंकी हमले की कड़ी निंदा की। दोनों ने आतंकवाद को किसी ख़ास नस्ल, धर्म या संस्कृति से जोड़ने को ख़ारिज किया। बीबीसी के मुताबिक दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर रहे आफ़ताब कमाल पाशा ने कहा कि पीएम मोदी को सऊदी में रहते हुए ही पाकिस्तान को एक्सपोज करना चाहिए था। सऊदी अरब से पूछना चाहिए था कि वह लगातार पाकिस्तान को आर्थिक मदद क्यों करता है। मोदी को गल्फ़-देशों से पूछना चाहिए था कि एक तरफ़ वे आतंकवाद की निंदा करते हैं और दूसरी तरफ़ पाकिस्तान को आर्थिक मदद करते हैं। यहां अमित शाह थे ही और वह श्रीनगर जा ही चुके थे। हालांकि, मनोहर लाल पर्रिकर इंस्टिट्यूट फोर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनलिसिस में असोसिएट फेलो रहे प्रोफ़ेसर मोहम्मद मुदस्सिर क़मर मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिल्कुल सही फ़ैसला किया। दुनिया के किसी भी देश में ऐसा आतंकवादी हमला होता और वहां का राष्ट्राध्यक्ष यही फ़ैसला करता। मोदी को सऊदी दौरा भले छोटा करना पड़ा, लेकिन दौरे में जो कुछ होना था, वो पूरा हुआ। सऊदी अरब ने भी इस हमले की निंदा की। हमले का जो समय चुना गया, वह सोचने पर मजबूर करता है, वो महज इत्तेफाक नहीं है। लगता है कि अमेरिका के उप-राष्ट्रपति के भारत में होने से ज़्यादा अहम यह था कि प्रधानमंत्री मोदी सऊदी अरब में थे, इसका संबंध मोदी के दौरे से ज़्यादा है।

ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारतीय सेना के पूर्व अधिकारियों के मुताबिक इस हमले की साज़िश रचने वाले चाहते थे कि कश्मीर को लेकर अंत्रराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया जाए। इसीलिए हमला तब किया गया, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के दौरे पर तो पीएम मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे।

हमले को इस रूप में डिजाइन किया गया था कि कश्मीर को टूरिस्ट इंडस्ट्री के रूप में कमज़ोर किया जाए। इससे पहले हिंदू तीर्थयात्रियों पर हमला किया गया था। जून, 2024 में एक बस पर हमला हुआ था, जिसमें हिंदू तीर्थयात्री सवार थे। अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ के अंतर्राष्ट्रीय संपादक स्टैनली जॉनी भी पहलगाम में चरमपंथी हमले की टाइमिंग को ख़ासा अहम मानते हैं। यह हमला तब हुआ है, जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने हिन्दुओं के ख़िलाफ़ नफरत भरा भाषण दिया था और कश्मीर तो पाकिस्तान के गले की नस कहा था। हमलावरों का मकसद पूरी दुनिया का ध्यान खींच कश्मीर मुद्दे को गर्म रखना है। इसके अलावा पर्यटकों पर हमला कर लोकल अर्थव्यवस्था को भी चोट करने की कोशिश थी। यहां बता दें कि मार्च, 2000 को चरमपंथियों ने अनंतनाग के छत्तीसिंहपोरा में हमला कर 36 सिख ग्रामीणों को मार डाला था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे के एक दिन पहले ये हमला हुआ था। हमलावर कथित तौर पाकिस्तान के थे। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हमले की कड़ी निंदा करते इसके लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को दोषी ठहराया था। दो साल बाद मई, 2002 को अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री क्रिस्टिना रोका के भारत दौरे के समय चरमपंथियों ने फिर हमला किया।

इस बार उन्होंने पहले कश्मीर के कालूचक में यात्रियों से भरी बस पर हमला किया और फिर आर्मी फैमिली क्वार्टरों को निशाना बनाया। इस हमले में 23 लोग मारे गए थे और 34 लोग घायल हो गए थे। मृतकों में दस बच्चे भी शामिल थे। ऐसा लगता है कि अमेरिकी नेताओं के भारत की यात्रा के दौरान कश्मीर में चरमपंथी हमलों का मकसद कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना ही है।

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