जनहितैषी, 24 अप्रैल, लखनउ। पहलगाम आतंकी हमले ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले की प्रतिक्रिया उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से तीव्र रही है। आम जनता से लेकर व्यापारी सरकारी कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता। यूपी के ज्यादातर लोगों की यही राय है कि अब बहुत हो चुका जनता अब केवल बयानबाज़ी और हाईलेवल मीटिंग्स से काम नहीं चलेगा। अब हमे ठोस और निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।
हम बार्डर पर जाने को तैयार हैं
उत्तर प्रदेश में कई शहरों में व्यापारी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए। कई जगहों पर बाजार बंद कर कैंडल मार्च निकाला गया। लखनऊ के चारबाग, बनारस के गोदौलिया और कानपुर के परेड चौराहे पर लोगों ने सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की और पूछा कि आखिर कब तक हमारे जवान यूँ ही मरते रहेंगे? एक व्यापारी नेता ने कहा अगर सरकार सुरक्षा नहीं दे सकती तो हम अपने व्यापार छोड़कर बॉर्डर पर जाने को तैयार हैं।
आखिर कब लिया जाएगा बदला
सरकारी कर्मचारियों में भी आक्रोश देखने को मिला। लखनऊ सचिवालय के बाहर कर्मचारियों ने एकत्र होकर एक स्वर में कहा कि केवल श्रद्धांजलियाँ देना अब पर्याप्त नहीं है। एक शिक्षक ने कहा जब हम छात्रों को देशभक्ति पढ़ाते हैं तो उनके सवालो का क्या जवाब दें कि हमारे जवानों की शहादत का बदला कब लिया जाएगा।
जनता के बीच यह भी चर्चा है कि यह केवल आतंकवादियों की करतूत नहीं है बल्कि इसमें कुछ हद तक जम्मू-कश्मीर की सत्तारूढ़ राजनीतिक व्यवस्थाओं की भी भूमिका है। कुछ लोगों ने एलजी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया, तो कुछ ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर भी सवाल उठाए। एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा जब तक राजनीतिक मिलीभगत खत्म नहीं होगी तब तक आतंकवाद की जड़ नहीं कटेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह रोष केवल एक आतंकी घटना पर प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि यह उस निराशा का परिणाम है जो लगातार हमलों के बावजूद ठोस प्रतिक्रिया न आने से उपजी है। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार से लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं और जब बार-बार शहादत की खबरें आ रही हैं। तो लोगों की उम्मीदें गुस्से में बदल जाती हैं।
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे गंभीर पहलू यह है कि जनता सीधे सरकार को जिम्मेदार मान रही है। लोगों का कहना है कि कड़े कदम उठाने का समय अब है, वरना जनता का भरोसा टूट जाएगा।
साफ है, उत्तर प्रदेश की जनता अब नारे नहीं, निर्णय चाहती है। अगर सरकार जल्द कोई निर्णायक कदम नहीं उठाती, तो यह जनाक्रोश देशभर में राजनीतिक और सामाजिक असंतोष में बदल सकता है।