मुद्दे की बात : उप राष्ट्रपति धनखड़ का न्यायपालिका पर बयान कितना सही ?

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

विपक्ष ने घेरा केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को, धनखड़ पर कसे करारे तंज

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले को लेकर न्यायपालिका के बारे में सख़्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने को कहा था।

अब इस मुद्दे पर मीडिया में भी हलचल बनी है, बीबीसी समेत तमाम रिपोर्ट्स इसे लेकर पक्ष और विपक्ष में टिप्पणियां कर रही हैं। मसलन उप राष्ट्रपति धनखड़ ने इशारा किया कि संविधान का अनुच्छेद 142 एक ऐसा परमाणु-मिसाइल बन गया है, जो लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद रहता है। देश में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि आप राष्ट्रपति को निर्देश दें। सुप्रीम कोर्ट को यग अधिकार किसने दिया है और वो किस आधार पर ऐसा कर सकता है। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वो पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फ़ैसला दे सकता है, चाहे वो किसी भी मामले में क्यों ना हो। हालांकि उप राष्ट्रपति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सिर्फ संविधान की व्याख्या कर सकता है। वह दो दिन पहले  दिल्ली के वाइस प्रेसिडेंट एनक्लेव में राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता की चुनी सरकार सबसे अहम होती है। हर संस्था सीमा में रहकर काम करे, कोई भी संविधान से ऊपर नहीं है।

उन्होंने बिलों पर फ़ैसला लेने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को कैसे आदेश दे सकती हैं। आर्टिकल 142 का मतलब ये नहींकि आप राष्ट्रपति को भी आदेश दें। भारत के राष्ट्रपति का पद काफी ऊंचा है, वह संविधान की रक्षा और उसे बचाने की शपथ लेते हैं। यह शपथ केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल लेते हैं। हाल ही में एक फ़ैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया, आख़िर हम कहां जा रहे हैं ?

धनखड़ ने कहा कि हमारे पास ऐसे जज हैं, जो अब कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद की तरह भी काम करेंगे और कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे। दरअसल देश का क़ानून उन पर लागू नहीं होता। संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत न्यायपालिका के पास सिर्फ संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। इसके लिए पांच या इससे ज्यादा जजों की ज़रूरत होती है। जिन जजों ने राष्ट्रपति को आदेश दिया, वो ऐसा था, जैसे यही देश का कानून है। वे संविधान की ताक़तों को भूल गए।  उप राष्ट्रपति ने हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के दिल्ली घर से कथित तौर पर जले नोट मिलने के बाद भी एफआईआर दर्ज ना होने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ये घटना किसी आम आदमी के घर में होती तो बिजली की गति से कार्रवाई होती। उन्होंने कहा कि हर चुनाव में सांसद, विधायक और उम्मीदवार को अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है। हालांकि जज ऐसा कुछ नहीं करते।

कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने न्यायपालिका के बारे में उप राष्ट्रपति की इस टिप्पणी पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने तंज कसा कि मैं तो उप-राष्ट्रपति के बयान पर टिप्पणी करने में संयम बरतूंगी। काश यही संयम उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट पर बयान देते वक्त दिखाया होता।

जैसे तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार के कानूनों को रोककर संविधान की धज्जियां उड़ाईं, उसके बारे में उप-राष्ट्रपति का क्या कहना है ? आज राजभवन उन लोगों से भरे पड़े हैं, जो बेशर्मी से आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने के साथ  बीजेपी की लाइन पर चल रहे हैं। डीएमके ने भी न्यायपालिका पर उप राष्ट्रपति धनखड़ का बयान ‘अनैतिक’ करार दिया है।

डीएमके राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा ने कहा कि संविधान की रक्षा करने का अधिकारी होने से किसी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं मिल जाता कि वो संसद में पारित विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोक कर रख सकता है। सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि हमारी राजनीति में संविधान सबसे बड़ा है, लोकतांत्रिक ढांचे को बचाने लिए चेक एंड बैलेंस जरूरी है। राष्ट्रपति, सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रहते हुए, ऐसे मामलों में स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। उप-राष्ट्रपति की टिप्पणी आरएसएस-भाजपा की ओर से विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को कमज़ोर करने के लिए राज्यपाल की शक्तियों के दुरुपयोग को सही ठहराती है। पूरे देश में अगर किसी एक संस्थान पर भरोसा है,  तो वो है न्यायपालिका।

जब कुछ सरकारें ज्युडीशियरी के फ़ैसलों को पसंद नहीं करतीं तो वो इस पर अपनी सीमा को पार करने का आरोप लगाती है। क्या धनखड़ पता है कि संविधान के अनुच्छेद 142 ने सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार दिया है। राष्ट्रपति सिर्फ प्रतीकात्मक प्रमुख होते हैं। वो कैबिनेट के अधिकार और सलाह पर काम करते हैं, राष्ट्रपति के पास कोई निजी अधिकार नहीं होता।

पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी के मुताबिक उप राष्ट्रपति की टिप्पणी गलत है, इसमें बढ़ा-चढ़ा कर बातें कही हैं, जो एक ओर झुकी हुई हैं। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ये सब करने से सावधान रहना चाहिए। दरअसल उप राष्ट्रपति की टिप्पणी का आधार तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का वो फ़ैसला था, जिसमें उसने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे बिल पर एक निर्धारित समय के अंदर फ़ैसला लेना होगा। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि का डीएमके की स्टालिन सरकार से विधेयकों को लेकर काफी टकराव रहा है। सरकार कई बार उन पर विधेयक रोकने के आरोप लगा चुकी है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए  चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजों को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत अपने अधिकार क्षेत्र में पूर्ण न्याय करने के लिए प्रतिबद्ध है। अदालत को ये भी तय करना होता है कि लोकतंत्र की प्रक्रिया में किसी फर्जीवाड़े की वजह से बाधा ना आए।

————–

 

 

 

 

Leave a Comment

Rut kayrach क क क पेड़ों पेड़ों पेड़ों की की की की की की की को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को की की की