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महाकुंभ की प्रेरणा: भलाई से बड़ा कोई पुण्य नहीं

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पंकज सीबी मिश्रा / विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी

 

महाकुंभ की दिव्य व्यवस्था, वहां की चहल – पहल और साधू संतो की चर्चा अब मीडिया में सुर्खियां बटोर रही । जहां एक और सोशल मीडिया केवल अनोखे बाबाओं के रील दिखा रही वही देश भर के न्यूज चैनल महाकुंभ के व्यवस्था और दुर्वव्यवस्था का आंकलन कर रहे । नेता पक्ष महाकुंभ की तैयारी को लेकर सरकार की प्रशंसा कर रही तो विपक्ष महाकुंभ को विफल दिखाने का हर संभव कोशिश कर रहा और ऐसे में जनपद जौनपुर के पत्रकार और प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा रोज आपके लिए महाकुंभ से जुड़ी एक खबर आप तक पहुंचा रहे जिसने सहयोगी है प्रिंट मीडिया के वो अखबार जिन्होंने पुण्य कमाने हेतु ऐसे आलेखों को प्राथमिकता दी है । बीते दिनों कुंभ में टेंट अग्नि कांड ने विपक्ष को बोलने का मौका दिया किंतु अब भी देश में कुछ सनातन विद्रोही इस ताक में है की कैसे लोगो को लूटे कैसे झूठ फैलाया जाय और कैसे अनर्गल ढंग से कमाई की जाए। यह तर्क आपको एक सच्ची कहानी के माध्यम से जोड़ कर बताता हूं । एक सज्जन दक्षिण भारत से महाकुंभ में स्नान हेतु पधारे और स्टेशन पर उतर गंतव्य महाकुंभ शिविर की ओर चलना आरंभ किए । एकदम शांत निर्मल स्थान , संगम में स्नान करने हेतु आगे बड़े और अब उनकी जुबानी सुनिए की हुआ क्या । सज्जन ने बातचीत में बताया कि, मैं चला तो चलते चलते दोपहर हो गई , एक ऑटो को हाथ दिया –सेक्टर 8 छोड़ दो भाई ! ऑटो वाला: 300 रूपये लूंगा , हमने कहा एक किलोमीटर भी नहीं बचा है फिर इतना पैसा क्यों .! मैं ही दस मिनट में पहुंच जाऊंगा, ऑटो वाला: आगे बढ़ जाओ अपना रास्ता नापो, तबतक एक ऑटो और आकर रुका, कहा जाना है , मैंने बताया सेक्टर 8 । नया ऑटो वाला: चलिए हम छोड़ देंगे , मैं बोला कितना लोगे ! वह बोला वही जो अब तक ईश्वर से मांगा उतना ही । मुझे आश्चर्य हुआ पर मैं बैठ गया । उसने हमें सेक्टर 8 छोड़ा । हम पैसे देने लगे तो मना कर दिया लेने से, हमने कहा की कुछ तो ले लो,उसने कहा की जिद्द करते हैँ तो 30 रूपये दे दीजिए किंतु यह भी मैं किसी शिविर के दान बॉक्स में डाल दूंगा । हमने ऐसे ही पूछ लिया की क्यों ? बालक पालने लायक काम कैसे चलता होगा ! कमा लेते हो क्या ? तब उस आटो वाले भाई ने बताया की वह मैकेनिकल इंजिनियर है और महत्वपूर्ण पद पर है किसी कम्पनी में । मेरी जिज्ञासा बढ़ गई और मैं हैरान सा पूछा कि फिर ये रिक्शा ? कहने लगा की मेरे पिताजी यहां कल्पवास करते हैँ हर साल, एक बार उन्हें किसी महात्मा का पता चला तो आशीर्वाद लेने के लिए चले, ऑटो प्रयास करने पर भी नहीं मिला और पैदल जाने पर लेट हो गए, महात्मा वहाँ से तबतक जा चुके थे, पिताजी ने जब खिन्न मन से यह घटना घर पर बताई की ऑटो समय पर न मिलने से एक यति महात्मा के दर्शन से वंचित रह गया, तब से मैने ( ऑटो वाले) ने संकल्प लिया कि कुम्भ में या हर साल माघ मेला में यहां ऑटो चलायेंगे, बिना किराये और बर्गेनिंग किए सवारी को बैठाकर ले चलेंगे ताकि कोई किसी से मिलने और स्नान से वंचित न रह जाए । धन्य है ऐसे माता – पिता जिन्हे ऐसे श्रवण कुमार जैसे पुत्र मिलते है और दूसरी तरफ वो ऑटो चालक और डॉक्टर लुटेरे जो धार्मिक कार्यों में पथिको और घायलों को लूट कर पाप कमाते है । ना खुद कभी सुखी रहते है न उनका परिवार सुखी हो पाता है । काली कमाई का अंत हमेसा काला ही होता है । आजकल अयोध्या धाम और वाराणसी के काशी विश्वनाथ धाम में लुटेरे ऑटो चालकों का आतंक भी कुछ कम नहीं। शाम के बाद दो किमी का किराया अस्सी रुपए तक ले लेते है । भगवान भला करें।

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