सियासी-हल्कों में छिड़ी बहस, एक्सपर्ट्स की निगाह अब है बिल संशोधन के नतीजों पर
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल मुस्लिम वोट-बैंक को खासी अहमियत देते हैं। इस साल के अंत में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे सियासी-हालात में भी सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक का समर्थन कर दिया। जो राष्ट्रपति से मंज़ूरी के बाद अब क़ानून की शक्ल ले चुका है। सरकार का दावा है कि इस क़ानून के ज़रिए वो पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी, वक़्फ़ संपत्तियों की कथित लूट रोकी जाएगी और प्रशासनिक जवाबदेही भी तय होगी। हालांकि, विरोधी दलों और कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि सरकार आख़िर एक ही धर्म में सारे सुधार लाने पर क्यों आमादा है। यह बिल उनकी नज़र में अल्पसंख्यक अधिकारों में दख़ल का मामला है। क्या ये संशोधन वास्तव में एक सुधार का क़दम है या मुसलमानों को निशाने में रखकर उठाया गया क़दम है ? क्या ये बिल भ्रष्टाचार ख़त्म करेगा और क्या वक़्फ़ बाय यूज़र को हटाने से एक धार्मिक बहस तेज़ होगी ?
दरअसल साल 2013 में जिन 123 वीआईपी संपत्तियों को वक़्फ़ को दिए जाने के आरोप हैं, उसका मामला आख़िर क्या है और इस क़दम का बिहार की राजनीति पर कैसा असर पड़ सकता है ? क्या है इस क़दम का राजनीतिक एजेंडा ? इन तमाम सवालों पर अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के अलावा बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में गहन चर्चा की। इन पहलुओं पर जेडीयू के नेता राजीव रंजन, संविधान विशेषज्ञ संजय हेगड़े और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी के साथ ही यूपीए सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के अलावा क़ानून और न्याय मामलों के मंत्री रहे सलमान ख़ुर्शीद शामिल रहे। विस चुनाव से ठीक पहले यह बिल बिहार की राजनीति में एक नई लकीर खींच सकता है, जहां मुस्लिमों का कई सीटों पर दबदबा है। यही वजह है कि पार्टी कोई भी हो, इफ़्तार पार्टी सब करते हैं। नीरजा के मुताबिक समझ नहीं आ रहा कि भाजपा ने बिहार चुनाव बीतने का इंतजार क्यों नहीं किया ? टीडीपी के साथ जेडीयू को भी इस मसले पर साथ ले आई और बिहार के पसमांदा मुस्लिम जेडीयू को वोट देते आ रहे हैं। इसके मायने, जेडीयू ये मान चुकी है कि मुस्लिम तबके का वोट उन्हें आने वाला नहीं, राजद के साथ जाएगा ही जाएगा, लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था। वैसे नीतीश की प्रासंगिकता अब भी है, क्योंकि कुर्मी, कोइरी, महादलित और पसमांदा मुस्लिम में उनकी पकड़ है।
जेडीयू नेता राजीव रंजन ने कहा, इस बिल को लेकर कई भ्रांतियां हैं, इसे लेकर विपक्षी दलों ने दुष्प्रचार किया। यह विधेयक जब कानून की शक्ल लेकर धरातल पर आएगा तो कई भ्रम दूर हो जाएंगे। सवाल तो हर परिवर्तन पर ही खड़े होते हैं, लेकिन संशोधनों में यह कोशिश होती है कि जहां गलतियां हुई हों उनका समाधान किया जा सके। इसे धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। बिहार में हिंदुओं के लिए भी बिहार धार्मिक बोर्ड बना है, जो मंदिरों की ऑडिट से लेकर तमाम व्यवस्थाएं देखता है। बोधगया में बौद्ध मंदिर के लिए एक कमेटी है, उसमें अधिकारी भी होते हैं और गैर बौद्ध भी होते हैं। अगर ये विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ होता तो हमारी पार्टी कतई भी इसका समर्थन नहीं करती। वहीं, नीरजा के मुताबिक भाजपा ने जैसे सभी सहयोगियों को इस विधेयक पर साथ लिया, यह उसकी राजनीतिक कुशलता है।
अगर सभी का साथ नहीं मिलता तो इसे पास कराना मुश्किल हो जाता। टीडीपी को देखें तो आंध्र प्रदेश में अगर मुस्लिम चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ़ हो जाते हैं तो उनके लिए चुनाव में मुश्किल हो जाएगा। हालांकि उनके विपक्षी जगन रेड्डी इस स्थिति में ही नहीं हैं कि वो उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाएं। बीजेपी ने जब अनुच्छेद 370 को हटाया था तो प्रधानमंत्री नहीं, गृहमंत्री बोले थे और कई शानदार तर्क दिए थे। उसी तरह से वक़्फ़ को लेकर भी गृहमंत्री ने पूरी तैयारी से तर्क दिए हैं। पीएम इस तरह की चीजें जानबूझकर गृहमंत्री पर छोड़ रहे हैं। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री वैश्विक चीजों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, दरअसल अर्थव्यवस्था, विदेश नीति बड़ी चुनौंतियां हैं।
दरअसल, वक़्फ़ संशोधन पर नया बिल, 1995 के वक़्फ़ एक्ट को संशोधित करने के लिए लाया गया है। जबकि इस विधेयक को संसद ने पारित कर दिया, फिर भी आपत्तियां आ रही हैं। यूपीए सरकार में मंत्री रहे सलमान ख़ुर्शीद के मुताबिक किस तरह से इसे लागू किया जाता है, इस पर बहुत कुछ निर्भर है। यह संशोधन कितना स्पष्ट है, मैं नहीं बता पाऊंगा। एक बड़ा प्रश्न वक़्फ़ बाय यूज़र को लेकर था। इसे पहले समाप्त किया जा रहा था, लेकिन अब यह बताया गया है कि इसे आगे के लिए समाप्त किया गया। पहले की संपत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, यह बड़ी राहत है।
दूसरी समस्या लिमिटेशन एक्ट है, इसे बहुत सुझबूझ के साथ पहले हटाया गया था, लेकिन अब इसे फिर से लागू कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि वक़्फ़ में जो अनियमितताएं हैं, उसे दूर करना है तो इसके लिए क्या प्रावधान किया गया है ? पारदर्शिता के लिए क्या प्रावधान है, इसका कहीं कोई जवाब नहीं है.
सलमान ख़ुर्शीद ने कहा कि वक़्फ़ प्रबंधन को लेकर जो बात है कि इसकी देखरेख कौन व कैसे करेगा ? उससे बड़ा प्रश्न उठा है कि सरकारी तंत्र को एक बड़ा रोल दे दिया गया है.। यह मामला कोर्ट तो जाएगा ही, लेकिन इसका प्रभाव क्या पड़ेगा, यह तभी देखने को मिलेगा, जब इसे लागू किया जाएगा। संसद में चल रही बहस में अमित शाह ने कहा था कि धार्मिक मामलों में बोर्ड का दखल नहीं होगा, बल्कि प्रशासनिक कार्यों में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जाएगा। इस बात पर ख़ुर्शीद कहते हैं कि सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की सहायता और सहयोग करें तो अच्छी बात होती, लेकिन ऐसा और कहीं तो नहीं है।
संजय हेगड़े कहते हैं कि कोई वक़्फ़ संपत्ति है और उस पर सवाल आता है कि वो वक़्फ़ की है या सरकारी है तो यह मुद्दा धार्मिक भी है और प्रशासनिक भी है। इसे कैसे अलग किया जा सकता है ? वहीं नीरजा कहती हैं कि उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट है, उसमें साफ है कि कोई भी गैर हिंदू इस समिति में किसी भी स्तर पर भाग नहीं ले सकता है। चाहे प्रबंधन जिला जज के साथ ही क्यों ना हो। जिला जज अगर मुसलमान है तो वह हट जाता है और किसी और को भेज देता है। कलेक्टर को मुंसिफ़ और मुद्दई बनाएंगे तो फिर इंसाफ़ कहां से आएगा ? इन प्रावधानों के खिलाफ़ जब कोर्ट में मामला आएगा तो ये सवाल कोर्ट भी पूछेगा।
————