बड़ी जालसाजी : साइबर ठगों की मदद को आरोपी कर्मचारियों ने दस्तावेजी हेरफेर किया
गुरुग्राम 10 जनवरी। साइबर ठगों के साथ एयरटेल कंपनी के कर्मचारियों की मिलीभगत का पर्दाफाश किया गया। यह खुलासा गुरुग्राम पुलिस की साइबर क्राइम टीम और केंद्रीय गृह मंत्रालय से संबंधित इंडियन साइबर कोऑर्डिनेशन सेंटर ने किया।
पुलिस के मुताबिक कंपनी के दो कर्मचारी पार्ट टाइम जॉब दिलाने व इन्वेस्टमेंट कराने के नाम पर ठगी करने वाले वालों की मदद करते थे। दोनों आरोपी व्हाट्सएप/टेलीग्राम के माध्यम से ठगी करने वाले इंडोनेशियन व चाइनीज ठगों को वर्चुअल नंबर उपलब्ध कराते थे। पूछताछ के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी पहचान उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के टटीरी गांव के रहने वाले नीरज वालिया और हेमंत शर्मा के रूप में हुई। उनके कब्जे से ठगी की वारदात को अंजाम देने में इस्तेमाल दो मोबाइल भी बरामद हुए।
आरोपी नीरज के पास कंपनी में साइट वेरिफिकेशन की जिम्मेदारी है। हेमंत कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत है। कंपनी को नंबरों की एवज में हर महीने लगभग 8 से 10 लाख रुपये बिल के रूप में प्राप्त होते थे। कुछ दिन पहले साइबर थाना (पूर्व) में दी शिकायत में एक व्यक्ति ने बताया कि उसके पास गुरुग्राम के लैंडलाइन नंबर से काल प्राप्त हुई थी। उसे पार्टटाइम जॉब का ऑफर दिया गया था। उसे अलग-अलग होटल के रिव्यू डालने थे। एक टास्क को पूरा करते ही उसके बैंक खाते में 200 रुपये ट्रांसफर कर दिए गए थे। छानबीन में पता चला कि ठगों को वर्चुअल नंबर एयरटेल कंपनी के कर्मचारी उपलब्ध करा रहे हैं। इसके बाद पहचान शुरू की गई। पहचान के बाद दोनों से पूछताछ की, आरोप सही मिलने पर दोनों को को गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ में पता चला कि वारदात में इस्तेमाल लैंडलाइन/डीआइडी नंबर एकमदर्श सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के नाम जारी थे। जब यह कंपनी थी ही नहीं। इस तरह आरोपियों ने नियमों की अवहेलना कर फर्जी कंपनी के नाम लैंडलाइन नंबर जारी किया। आरोपियो ने माना कि फर्जी पते पर रजिस्टर्ड कंपनी के आपरेशनल मैनेजर के साथ मिलीभगत कर लैंडलाइन/डीआइडी नंबर के अलावा काफी नंबर एक इंडोनेशियन व्यक्ति को उपलब्ध कराए थे।
सहायक पुलिस आयुक्त (साइबर क्राइम) प्रियांशु दीवान के मुताबिक आरोपियों द्वारा आपस में बनाए व्हाट्सएप ग्रुप में और भी काफी कंपनियों के लिए क्लाउड बेस्ड सर्विसेज के कनेक्शन जारी करने के साक्ष्य मिले हैं।
प्रारंभिक पूछताछ में ही 500 से अधिक नंबर जारी करने के साक्ष्य मिल चुके हैं।
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