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मुद्दे की बात : जादू-टोने के नाम पर नारी का अपमान

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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार-पुलिस पर जताई नाराजगी

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि एक महिला को जादू टोने के आरोपों के मामले में सार्वजनिक तौर पर अपमानित कर शारीरिक बल का प्रयोग किया गया। अदालत ने कहा कि यह कोर्ट के विवेक को झकझोरने वाले तथ्य हैं। यह सचाई है कि 21वीं सदी में ऐसे कृत्य हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीटी. रविकुमार की अगुवाई वाली बेंच पटना हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें मामले की जांच पर रोक लगाई गई थी।

इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई हैं, खासकर नवभारत टाइम्स ने इस मुद्दे को खास महत्व दिया। वैसे तो यह मामला मार्च, 2020 में बिहार के चंपारण जिले का है। यहां 13 लोगों पर शिकायतकर्ता की दादी पर जादू-टोने का आरोप लगाते हुए हमला करने का आरोप है। आरोप है कि आरोपियों ने उन्हें जादूगरनी कहते हुए सार्वजनिक रूप से जलील किया और उनके कपड़े फाड़ दिए। बचाव में आई एक अन्य महिला पर भी हमला किया गया। पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज की थी। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और मैजिस्ट्रेट ने मामले का संज्ञान लिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने आरोपियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की प्रकृति पर हैरानी जताई। अदालत ने कहा कि गरिमा समाज में किसी व्यक्ति के अस्तित्व के मूल में होती है। कोई भी कार्य, जो किसी व्यक्ति की गरिमा को कम करता है, चाहे वह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया हो वह संविधान की भावना के विरुद्ध है। संविधान सभी व्यक्तियों को सुरक्षा सुनिश्चित करता है। गरिमा से समझौता होने पर मानवाधिकार खतरे में पड़ जाते हैं। अदालत ने राज्य सरकार की आलोचना की कि उसने हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई राहत को चुनौती क्यों नहीं दी। एफआईआर दर्ज करने में भी पुलिस ने टालमटोल किया, जिसके चलते शिकायतकर्ता को मैजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य के मुद्दों पर मुकदमा लड़ने का निर्णय केवल राज्य को होने वाले वित्तीय लाभ पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि यह न्याय और कानून के शासन के प्रति उसकी जिम्मेदारी को भी दर्शाना चाहिए। अदालत ने मामले में ट्रायल कोर्ट को रोजाना सुनवाई करने का निर्देश दिया। आरोपियों को 15 जनवरी को पेश होने का आदेश दिया गया, ताकि सुनवाई हो सके।

अदालत ने कहा कि सभी नागरिकों का यह मूल कर्तव्य है कि वे सभी में सौहार्द और भाईचारे की भावना को बढ़ावा दें। कोर्ट ने कहा कि जादू-टोना जैसे आरोप आमतौर पर महिलाओं पर लगाए जाते हैं, खासतौर पर विधवाओं या बुजुर्ग महिलाओं पर। इन आरोपों का परिणाम अक्सर सार्वजनिक अपमान, बर्बरता और कभी-कभी मौत भी होता है। ऐसे मामले न केवल भारत के कानूनी ढांचे बल्कि अंतरराष्ट्रीय संधियों और घोषणाओं के खिलाफ हैं, जो महिलाओं को ऐसे शोषण से बचाने की वकालत करते हैं। कोर्ट ने ऐसे मामलों को संवैधानिक भावना पर धब्बा कहा और अदालत की चिंता को दर्शाता है।

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