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दिव्यांग पूर्व सैनिक को टाइपिंग टेस्ट के लिए बाध्य करना गलत, क्लर्क पद दे पंजाब सरकार

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चंडीगढ/यूटर्न/18 दिसंंबर: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक दिव्यांग पूर्व सैनिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि देश की रक्षा करते हुए दिव्यांग होने वाले व्यक्ति को टाइपिंग टेस्ट के लिए बाध्य करना दुर्भाग्यपूर्ण, मनमाना और अवैध है। पटियाला निवासी सतिंदर पाल सिंह ने पंजाब सरकार द्वारा 2015 में निकाली गई क्लर्क भर्ती में पूर्व सैनिक श्रेणी में आवेदन किया था। याची ने लिखित परीक्षा पास कर ली, लेकिन वह टाइपिंग टेस्ट पास नहीं कर सका। इस टेस्ट में फेल होने के चलते सरकार ने उसे नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया। इसके खिलाफ याची ने 2016 में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याची ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान उसके दोनों हाथों की दो-दो अंगुलियां कट गई थीं। इसके चलते वह 40 प्रतिशत दिव्यांग हो गया था। दिव्यांग श्रेणी में सरकार ने टाइपिंग टेस्ट की छूट दी थी, लेकिन याची को दिव्यांग होने के बावजूद इन्कार कर दिया गया। पंजाब सरकार ने कहा कि टाइपिंग टेस्ट से छूट का लाभ केवल दिव्यांग श्रेणी में ही दिया जा सकता है, पूर्व सैनिक श्रेणी में इसका लाभ नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास पूर्व सैनिकों की आरक्षित श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने और शारीरिक अक्षमता दोनों पात्रता है। पंजाब सरकार द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार टाइपिंग टेस्ट से छूट उन्हीं उंमीदवारों को दी जाती है जो सिविल सर्जन द्वारा प्रमाणित शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त हों। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पूर्व सैनिक श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने वाला कोई उंमीदवार, यदि वह 40 प्रतिशत दिव्यांगता से पीडि़त है, तो उसे भी वही लाभ मिलना चाहिए, जो शारीरिक रूप से अक्षम श्रेणी के उंमीदवारों को मिलता है। देश की सेवा करते हुए 40 प्रतिशत दिव्यांगता झेलने वाले पूर्व सैनिक को टाइपिंग टेस्ट से छूट न देना भेदभावपूर्ण होगा। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के दावे पर विचार कर उसे क्लर्क के पद पर नियुक्ति दी जाए।
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