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49.6 बता क्यों तले जा रहे मप्र-छग के पेंशनर्स

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लेख -17 दिसंबर- पेंशनर्स दिवस की बधाई स्वीकारें मजबूत बनें,

कोई ऐसा शक्तिमान आए जो पेंशनर्स का हक वापस दिलाए !

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भारत में 17 दिसंबर को 1983 से हर साल पेंशनर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1982 में सर्वोच्च अदालत ने सेवानिवृत्त अधिकारियों को सम्मान और शालीनता की गारंटी देने वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। हमारे देश में ‘पेंशनर्स दिवस’ दिवंगत डी.एस. नाकारा को कृतज्ञता के साथ याद करने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने 17.12.1982 के फैसले के माध्यम से समुदाय को सम्मान और शालीनता दिलाने के लिए वर्षों तक संघर्ष किया।

 

भारत में पेंशन प्रणाली ब्रिटिश सरकार द्वारा 1857 में लाई गई थी। यह योजना ब्रिटेन में उस समय प्रचलित पेंशन प्रणाली के समान थी, जिसे 1871 के भारतीय पेंशन अधिनियम द्वारा अंतिम रूप दिया गया था। रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन वित्त डीएस नाकारा 1972 में सेवानिवृत्त हुए। उन्हें भी अन्य पेंशनभोगियों की तरह पेंशन मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 17 दिसंबर 1982 को शीर्ष अदालत ने पेंशनभोगियों के पक्ष में फैसला सुनाया। दिवंगत न्यायमूर्ति वाई.वी. तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया था: “पेंशन न तो कोई उपहार है, न ही नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर अनुग्रह का मामला है, न ही कोई अनुग्रह भुगतान है। यह पिछली सेवाओं के लिए भुगतान है। यह एक सामाजिक कल्याण उपाय है जो उन लोगों को सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करता है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में नियोक्ता के लिए इस आश्वासन पर लगातार काम किया कि बुढ़ापे में उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा जाएगा।”

 

17 दिसंबर- पेंशनर्स दिवस पर, आइए हम सभी पेंशनभोगियों को न्याय दिलाने की अपनी लड़ाई जारी रखने का संकल्प लें।

दिवंगत न्यायमूर्ति वाई.वी. तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया था: “पेंशन न तो कोई उपहार है, न ही नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर अनुग्रह का मामला है, न ही कोई अनुग्रह भुगतान है। यह पिछली सेवाओं के लिए भुगतान है। यह एक सामाजिक कल्याण उपाय है जो उन लोगों को सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करता है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में नियोक्ता के लिए इस आश्वासन पर लगातार काम किया कि बुढ़ापे में उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा जाएगा।”

 

वर्तमान में पेंशनर्स को समय पर पेंशन, बढ़ती महंगाई राहत अनेक राज्यों में नहीं मिलती। सबसे अधिक शोषण वाला राज्य है

मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ देश में ये अव्वल दर्जे के और अनोखे राज्य है जहां पेंशनर्स के साथ भेदभाव किया जाता हैं एवं

महंगाई समान बढ़ने के बावजूद समय पर राहत नहीं दी जाती।

यहां आठ-नौ माह देरी से देने का रिवाज बनाकर, इस जबरा ट्रेन्ड, परिपाटी का हरबार छद्म पालन किया जा रहा हैं। अनेक संगठन प्रभावहीन कमजोर से हो गये। इनकी मांगों पर सरकार

ध्यान नहीं देती। ये न कोई प्रभाव – दबावपूर्ण आंदोलन कर सकते। क्योंकि सारे चुनाव निपट चुके, दूसरा ये कोई प्रभावी वोट बैंक भी नहीं इसलिए इनका असर भी नहीं।

 

सत्तासीन दल अपनी लुभावनी योजनाओं को चलाने के आधार

पर नया वोटबैंक बनाके उपयोग कर चुकी, अब कोई चुनाव नहीं।

नियमित कर्मियों को समय पर मिल जाता हैं महंगाई भत्ता मगर

पेंशनर्स का एरियर हजम हो जाता है। पेंशनर्स संगठनों में बंटे, कोई एकता नहीं, कोई सक्रियता नहीं, पेंशनर्स संघों के आव्हान पर उपस्थित ना होकर, ना आर्थिक मजबूती देकर उन्हें मजबूत ही करेंगे। संगठनों के भीतर नेतृत्वों में आपसी कलह भी पेंशनर्स की एकता ना हो पाने की कमजोरी है।

 

इसीलिए बहुत शोषण कर रही हैं धारा 49.6 मप्र-छग के पेंशनर्स को, राज्य पुनर्गठन आयोग 2000 की इस सीमा अर्थात प्रावधान, नियम की आड़ में, भ्रमित करके। बार-बार बेकलाईन पर खड़ा करके। पूछता है पेंशनर्स…?

 

17 दिसंबर- पेंशनर्स दिवस की बधाई स्वीकारें मजबूत बनें,

कोई ऐसा शक्तिमान आए जो पेंशनर्स का हक वापस दिलाए !

 

– मदन वर्मा ” माणिक ”

इंदौर, मध्यप्रदेश

दिनांक 16.12.2024

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