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मुद्दे की बात : भारत और चीन सीमा पर तनाव का मसला

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भारत ने इस मामले में देर से क्यों उठाया कदम

संसद के दोनों सदनों में चीन के मसले पर स्वप्रेरणा से बयान देने और एक संसदीय समिति को जानकारी देने का सरकार का फैसला सकारात्मक तो है, लेकिन यह देर से उठाया गया कदम है। सन 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि एलएसी पर चीन के अतिक्रमण और गलवान की घातक झड़पों के बाद, सरकार ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की हरकतों को लेकर चीन के साथ हुई बातचीत का विवरण देने से परहेज किया है। सिर्फ सीमा पर टकराव के छह स्थलों, जैसा कि 2021, 2022 और 2024 में हुए थे, से वापसी से जुड़े समझौतों की ही घोषणा की है।

माहिरों का नामना है कि एक लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रीय हित के मसलों पर जनता को अंधेरे में नहीं रखा जाना चाहिए। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक  विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान और विदेश सचिव विक्रम मिस्री की ब्रीफिंग पर्याप्त जान पड़ती है। जयशंकर ने एलएसी वार्ता के तीन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है कि रिश्ते के अन्य हिस्सों में सामान्य जुड़ाव एलएसी से जुड़े तनाव के समाधान पर निर्भर है। भारत ने निरंतर जुड़ाव और चरण-दर-चरण वाले नजरिए की नीति अपनाई है जिसमें भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय के लिए कार्य तंत्र की 17 बैठकें, वरिष्ठ सर्वोच्च सैन्य कमांडरों की बैठक तंत्र की 21 बैठकें और दोनों देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों तथा विशेष प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकें शामिल हैं। अंत में उन्होंने कहा कि सैनिकों की वापसी का लक्ष्य पूरी तरह से हासिल होने के साथ अगली प्राथमिकताएं सैनिकों को पीछे हटाना एवं निर्गमन (डी-इंडक्शन) होंगी। इसके बाद पिछले कुछ सालों की समस्याओं के मद्देनजर सीमावर्ती इलाकों में रिश्तों को प्रबंधित करने के बारे में चर्चा होगी। जयशंकर ने कहा कि डेपसांग और डेमचोक के लिए, “गश्त व्यवस्था” पर सहमति हुई है, लेकिन गश्त फिर से शुरू करने को लेकर काम अभी भी “चल रहा है”। उत्तर एवं दक्षिण पैंगोंग त्सो झील, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स के अन्य क्षेत्रों के लिए अस्थायी और सीमित प्रकृति के कदमों के जरिए वापसी का लक्ष्य हासिल किया गया। जो कि एलएसी पर बफर जोन से संबंधित एक व्यंजना सरीखी है। हालांकि सरकार के लगभग 2,500 शब्दों के बयान में चीनी कार्रवाई के कारणों के बारे में कोई संकेत नहीं दिया गया और ना ही इस बात का कोई संदर्भ दिया गया कि कब यथास्थिति या 2020 की स्थिति में वापसी की उम्मीद की जा सकती है। बयान में किसी भी बिंदु पर भारत की क्षेत्रीय अखंडता का जिक्र किए बिना, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हितों को बरकरार रखने पर जोर दिया गया। सरकार को अब एलएसी की आम समझ बनाने और सीमा का सीमांकन करने के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। देश को 2020 से पहले मोदी और शी के बीच लगभग 20 बैठकों के बारे में बताना महत्वपूर्ण है, जिसके बावजूद पीएलए ने इस किस्म की हरकत की। पिछले कुछ सालों के अनुभवों से भारत के सत्ता प्रतिष्ठान में बैठे ‘कबूतरों और बाजों’ को यह समझ में आ जाना चाहिए कि इस किस्म का गहन जुड़ाव शांति की गारंटी नहीं दे सकता है और न ही पिछले कुछ सालों में नई दिल्ली और बीजिंग की तरह के गहन और निरंतर जुड़ाव के बिना संघर्षों को हल किया जा सकता है।

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