हरियाना/यूटर्न/29 नवंबर: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत गिरफतार किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने और उसे 20 साल की सजा के बाल न्यायालय जींद के आदेश को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि कथित घटना की तिथि पर बच्चे की मानसिकता की जांच करने के लिए प्रारंभिक आकलन पांच साल से अधिक समय बाद किया गया था, यह व्यावहारिक रूप से असंभव है कि वह पांच साल पहले क्या सोच रहा होगा। इस मामले में जींद निवासी एक क किशोर पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया गया और चार साल की बच्ची के खिलाफ यौन उत्पीडऩ करने के लिए 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
कोर्ट ने कहा कि घटना की तारीख और किशोर की गिरफतारी से तीन साल और चार महीने बाद, 28 सितंबर 2021 को अचानक सरकारी वकील जाग गए और प्रारंभिक मूल्यांकन करने के लिए जेजे अधिनियम की धारा 15 के तहत आवेदन दायर किया। जेजेबी ने 22 मार्च 2022 को व्यस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश पारित किया। वर्तमान मामले में किशोर के अलावा किसी और के अधिकार प्रभावित नहीं हुए। हाईकोर्ट ने कहा कि बाल न्यायालय ने गलतियों की सारी सीमाएं पार कर दीं। कार्यवाही पुलिस रिपोर्ट की जांच करके शुरू की जानी थी और फिर आरोप-पत्र तैयार करना था। फिर अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज कराने थे। हाई कोर्ट ने कहा कि इनमें से कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि ऐसा शायद ही कभी सुना जाता है। कानून के अनुसार कोई सुनवाई किए बिना ही उसे 20 साल की सजा सुना दी गई। पीठ ने अपने समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों की जांच की और पाया कि अपीलकर्ता एक बच्चा है और उसे अधिकतम सजा तीन साल दी जा सकती है। चूंकि अपीलकर्ता पहले ही तीन साल और नौ महीने कारावास में रह चुका था, इसलिए कोर्ट ने माना कि वह पहले ही पूरी सजा काट चुका है। परिणामस्वरूप हाई कोर्ट ने किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने के जेजेबी के आदेश को रद्द कर दिया और उसे किशोर के रूप में माना। एक मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने पीडि़त किशोर को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने की भी सिफारिश की।
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चार साल की बच्ची के यौन उत्पीडऩ के आरोपी की 20 साल की सजा रद्द, बाल न्यायालय जींद का था आदेश
Kulwant Singh
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