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अंग्रेज कवि डिरेजियो का महाकाव्य ‘फकीर ऑफ जंघीरा’ और भागलपुर की विश्वविख्यात जहांगीरा पहाड़ी

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शिव शंकर सिंह पारिजात

उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित भागलपुर के सुल्तानगंज स्थित जंघीरा अथवा जहांगीरा पहाड़ी जो वर्तमान में अजगैबीनाथ पहाड़ी भी कहलाता है, की ख्याति श्रावणी मेला के कारण पूरे देश में है। पर एक अंग्रेज कवि द्वारा जंघीरा (जहांगीरा) की पृष्ठभूमि पर रचित एक महाकाव्य ने इसकी ख्याति पूरी दुनिया में फैला दी। उस अंग्रेज कवि का नाम है हेनरी लुईस विवियन डेरेजियो (1809-1831) और उस कालजयी रचना का नाम है ‘फकीर ऑफ जंघीरा’।

 

भारतीय नवजागरण के सूत्रधारों में से एक, प्रखर चिंतक, शिक्षाविद् और अप्रतिम प्रतिभा के धनी यूरेशियन मूल के कवि डिरेज़ियो की मान्यता भारत में अंग्रेजी में लिखनेवाले पहले कवि के रूप में होती है। अतुल्य प्रतिभा के धनी डेरेजियो मात्र 17 वर्ष की उम्र में कोलकाता के प्रतिष्ठित हिन्दू कालेज (वर्तमान प्रेसिडेंसी कॉलेज) में असिस्टेंट हेडमास्टर नियुक्त हुए। उनके क्रांतिकारी विचारों ने बड़ी संख्या में छात्रों को प्रभावित किया जो ‘युवा बंगाल’ के नाम से विख्यात होकर ‘डिरेज़ियोवादी’ कहलाये।

भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा के मध्य स्थित जंघीरा (जहांगीरा) पहाड़ी की पृष्ठभूमि में 2050 पंक्तियों में रचित और 1829 में प्रकाशित डेरेजियो की कृति ‘फकीर ऑफ जंघीरा’ को भारत में अंग्रेजी में लिखित पहली लंबी कविता माना जाता है। अपनी काव्यात्मक विशिष्टताओं के कारण इस महाकाव्य की तुलना लार्ड बायरन की कविताओं से की जाती है जिसके संस्करण ऑक्सफोर्ड सहित विश्व के कई देशों ने प्रकाशित किये हैं। ‘फकीर ऑफ जंघीरा’ नलिनी नाम की एक युवती और जंघीरा पहाड़ी की गुफा में रहने वाले डाकूओं के सरगना एक फकीर की दुखांत एवं मार्मिक प्रेम-गाथा है।

यह बात गौरतलब है कि डिरेज़ियो का जन्म एक एंग्लो इंडियन परिवार में बंगाल में हुआ था और उनकी शिक्षा-दीक्षा भी बंगाल में ही हुई, लेकिन उन्हें साहित्य-सृजन की प्रेरणा भागलपुर की मिट्टी से मिली थी। भागलपुर की गंगा, उसके आस-पास बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य, खेत-खलिहान, ग्रामीण परिवेश आदि को देखकर उनमें एक ऐसी स्वत:स्फूर्त प्रेरणा जागी कि उन्होंने अपनी पहली रचना लिख डाली और इसे यहीं से प्रकाशन हेतु उस समय की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका कोलकाता के ‘इंडिया गज़ट’ को भेज दी । जिसके प्रकाशित होते ही रातों-रात उनकी शोहरत साहित्य-जगत के उभरते सितारे के रूप में हो गयी।

हुआ यूं कि सन 1823 में 14 साल की उम्र में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद जब कल्पनाशील व स्वछंद विचारों वाले युवा डिरेज़ियो को कोलकाता की एक ब्रिटिश फ़र्म में क्लर्क की नौकरी रास न आई तो उसे छोड़ वे भागलपुर में अपनी मौसी के पास आ गये जहां उनके मौसा आर्थर जानसन इंडिगो प्लांटर अर्थात् नीलहे साहब थे। भागलपुर में अपने मौसा की नील (इंडिगो) की खेती के प्रबंधन में हाथ बंटाने के बाद फ़ुरसत के समय में वे अपने मौसा की कोठी के निकट बहती गंगा और उसके आस-पास के प्राकृतिक दृश्य देखने निकल जाते। इस नैसर्गिक वातावरण ने कवि-हृदय डिरेज़ियो को इस क़दर प्रभावित किया कि उनके अंदर साहित्य सृजन की भावना जग उठी जिसकी परिणति ‘फकीर ऑफ जंघीरा’ के रूप में विश्वप्रसिद्ध रचना के रूप में हुई।

लेखक थॉमस एडवर्ड्स ने डेरेजियो की जीवनी ‘द यूरेशियन पोएट, टीचर एण्ड जर्नलिस्ट’ में उनके भागलपुर के दिनों का बड़ा ही चित्रात्मक वर्णन प्रस्तुत किया है।

अंग्रेजों के शासन काल में भागलपुर यूरोपीयों का पसंदीदा शहर बन गया था। 1824 में भागलपुर की यात्रा करनेवाले विशप हेबर बताते हैं कि भोगलीपुर (भागलपुर) की आबोहवा बड़ी ही उम्दा थी । यह उस समय भारत के स्वाथ्यकर स्थानों में एक माना जाता था। इसी दौरान डिरेजियो भी यहां आये थे। भागलपुर और राजमहल में नयी अंग्रेजी शासन-व्यवस्था लागू हो जाने के कारण गोरे हुक्मरानों के साथ यहां अंग्रेज नीलहे साहेबों, डॉक्टरों, संभ्रांत लोगों, जमींदारों व सैलानियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। यहां पर बसे ईसाई समुदाय के लोग यूरोपियन ईसाई, यूरेशियन ईसाई और नेटिव ईसाई कहलाते थे। ईसाईयों की बढ़ती संख्या के साथ यहां ईसाई मिशनरियां भी वज़ूद में आने लगीं। तत्कालीन कमिश्नर जी.एफ. ब्राउन ने स्थानीय घंटाघर के निकट करीब 13 बीघा जमीन खरीद कर चर्च का निर्माण करवाया। बाद में चंपानगर व अन्य स्थानों में भी चर्च बने। आज भागलपुर की टिल्हा कोठी, सदर अस्पताल स्थित विक्टोरिया मेमोरियल, यूनिवर्सिटी कैम्पस स्थित क्लीवलैंड मेमोरियल आदि यूरोपीय वास्तुकला के नायाब नमूने हैं। स्थानीय आशानंदपुर परबत्ती स्थित क्रिश्चियन सेमेट्री की चारदीवारी के अंदर यहां के ईसाईयों के इतिहास के जीवंत दस्तावेज दफन हैं।

भागलपुर की मनमोहक प्राकृतिक सुषमा, कलकल बहती गंगा का मनोहारी सूर्योदय-सूर्यास्त, निश्छल ग्रामीण परिवेश आदि का कवि हृदय डिरेज़ियो के मानसपटल पर गहरा असर पड़ा। वे‌ अक्सर नाव से गंगा की सैर पर निकल जाते। निकट के सुल्तानगंज में गंगा के बीच स्थित जंघीरा की पहाड़ी, जिसे स्थानीय लोग जहांगीरा या अजग़ैबीनाथ की पहाड़ी कहकर भी पुकारते हैं, का प्राकृतिक सौंदर्य व इसमें रहनेवाले साधु-फ़क़ीरों के रोमांचक क़िस्से-कहानियां उन्हें इतनी भायीं कि इसकी पृष्ठभूमि पर उन्होंने अपनी अमर काव्य-कृति ‘फ़क़ीर आफ़ जंघीरा’ लिख डाली। डिरेज़ियो के ‘फ़क़ीर आफ़ जंघीरा’ की गिनती आज विश्व के श्रेष्ठ अंग्रेज़ी साहित्य में होती है।

 

( *लेखक पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक एवं इतिहासकार है -विनायक फीचर्स)*

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