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साइकिल पर घटिया रिफ्लेक्टर लगाने के मामले में नामचीन कंपनी डिकैथलॉन और बीआईएस सवालिया कटघरे में

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साइकिल इंडस्ट्री के हब लुधियाना में उद्यमियों ने इस मुद्दे पर खड़े किए अहम सवाल, जवाबदेही का दायरा बढ़े

चंडीगढ़ 16 नवंबर। चंडीगढ़ में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने साइकिल उपभोक्ता के हक में अहम फैसला सुनाया था। जिसके तहत आयोग ने नामचीन कंपनी डिकैथलॉन स्पोर्ट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को साइकिल की खरीद राशि ब्याज सहित लौटाने और मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। जिसे लेकर साइकिल इंडस्ट्री के हब लुधियाना में इस मुद्दे पर बहस खड़ी हो गई है। साइकिल इंडस्ट्री से जुड़े नामी कारोबारी आयोग के इस फैसले को तो सराहनीय मानते हैं। साथ ही वह एक राष्ट्रीय निकाय होने के कारण ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ट्स यानि बीआईएस के अलावा रिफ्लैक्टर निर्माताओं और साइकिल के निर्माताओं व विक्रेताओं को भी सवालिया कटघरे में खड़ा करते हैं।
यह था मामला :
आयोग ने चंडीगढ़ के ही रहने वाले शिकायतकर्ता रवि इंदर सिंह को 13,395 रुपए की साइकिल की राशि भुगतान की तारीख से 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ लौटाने और 10 हजार रुपए मुआवजे का आदेश दिया। शिकायतकर्ता ने 22 अगस्त, 2019 को डिकैथलॉन से 13,395 रुपए की साइकिल खरीदी थी। शिकायत के मुताबिक साइकिल में लगे रिफ्लेक्टर खराब होने से साइकिल सवार की दो बार दुर्घटना हुई। आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलों और सबूतों का विश्लेषण कर तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर माना कि साइकिल में लगे रिफ्लेक्टर की गुणवत्ता घटिया थी।
बीआईएस सवालिया कटघरे में :
एक राष्ट्रीय निकाय होने के कारण ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ट्स यानि बीआईएस की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वह मानकों के निर्माण के साथ ही उनका अनुपालन भी सुनिश्चित करे। लिहाजा उपभोक्ता आयोग द्वारा नामचीन कंपनी डिकैथलॉन की साइकिल में घटिया रिफ्लेक्टर लगे होने पर हर्जाना लगाने से मानक तय करने वाली निकाय बीआईएस की भी अहम जवाबदेही बन जाती है।
बीआईएस में रिश्वत का बोलबाला : चावला
युनाइटेड साइकिल पार्ट्स एंड मैन्युफैक्चर्रर्स एसोसिएशन यानि यूसीपीएमए के पूर्व प्रेसिडेंट डीएस चावला ने तो इस मामले में सीधे बीआईएस पर संगीन इलजाम लगाए। उन्होंने आयोग के फैसले को सराहनीय बताया। साथ ही सुझाव दिया कि उपभोक्ता की शिकायत के मद्देनजर जांच का दायरा बड़ा होना चाहिए था। सबसे अहम जवाबदेह मॉनिट्रिंग-बॉडी बीआईएस है। जिसका मुख्य काम ही रिफ्लेक्टर की क्वालिटी गहनता से जांच के बाद उसके मानक को प्रमाणित करना था। उन्होंने आरोप लगाया कि बीआईएस में रिश्वत का बोलबाला है। फील्ड में जाकर जांच करने की बजाए खानापूर्ति की जाती है।
चावला ने विस्तार से समझाया कि ऐसे मामले में कई चरण में जांच की जरुरत होती है। सबसे पहले निर्माता, फिर साइकिल एसेंबल करने वाले, उसके बाद डीलर तक क्रमवार जवाबदेही तय होना चाहिए। जांच प्रक्रिया के तहत रिफ्लेक्टर क्या मानकों के अनुसार बना, फिर साइकिल बनाते वक्त उनका इस्तेमाल किया। फिर डीलर ने क्या प्रोडक्ट बेचते वक्त उपभोक्ता को रिफ्लेक्टर उसी क्वालिटी के लगाकर दिए। जब हादसे की नौबत आई तो क्या रजिस्ट्रेशन नंबर वाले यानि बीआईएस से प्रमाणित रिफ्लेक्टर ही साइकिल पर लगे थे।
सरकार चलाए अवेयरनेस मुहिम :
सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि वह रिफ्लेक्टर लगाने के लिए अवेयरनेस मुहिम चलाए। आम लोगों को नहीं पता कि साइकिल में 10 रिफ्लेक्टर लगाने जरुरी होते हैं। सरकार को साइकिल ट्रैक बनाने पर भी फोकस करना होगा, वर्ना रिफ्लेक्टर लगने होने के बावजूद हाइवे पर साइकिल सवारों के हादसे का शिकार होने की आशंका बनी रहेगी।
जवाबदेह निर्माता और विक्रेता : लक्की
इस मामले में युनाइटेड साइकिल पार्ट्स एंड मैन्युफैक्चर्रर्स एसोसिएशन यानि यूसीपीएमए के प्रेसिडेंट हरसिमरजीत सिंह लक्की ने भी बेबाक प्रतिक्रिया जताई। उनके मुताबिक रिफलेक्टर बनाने वाली कंपनी की पहली जवाबदेही बनती है। फिर साइकिल निर्माता कंपनी दूसरी जवाबदेह है। वहीं बीआईएस मानक तय कराने वाली निकाय होने के नाते तकनीकी तौर पर जवाबदेह है।
जांच का दायरा व्यापक हो :
लक्की कहते हैं कि यह गंभीर चर्चा का मुद्दा है। यह भी जांच हो कि 20 इंच वाली साइकिलें कंपनियां कम क्यों बना रही हैं। जबकि तय मानक के मुताबिक 20 इंची साइकिल में 10 रिफ्लेक्टर लगाने जरुरी होते हैं। दो-दो रिफ्लेक्टर दोनों रिम पर और एक-एक आगे पीछे, जबकि चार पैडलों पर लगे होने चाहिएं। साथ ही साइकिल उपभोक्ता हादसे का शिकार होता है तो घटिया सामग्री के आरोप साबित होने पर अपराधिक मामला बनता है।
अभी मामले की स्टडी नहीं की : तेजविंदर
साइकिल पार्ट्स व रिफ्लेक्टर बनाने वाली बिगबैन इंडस्ट्री के मालिक तेजविंदर सिंह ने इस मामले में प्रतिक्रिया नहीं दी। उनके मुताबिक अभी चंडीगढ़ उपभोक्ता आयोग का फैसला उन्होंने नहीं पढ़ा, लिहाजा तथ्यजनक प्रतिक्रिया फिलहाल नहीं दे सकेंगे।
बीआईएस का पक्ष नहीं मिल सका :
इस मामले में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ट्स यानि बीआईएस के चंडीगढ़, पंजाब-हरियाणा प्रमुख विशाल तोमर से फोन पर संपर्क का प्रयास किया गया। हालांकि कई बार कोशिश के बावजूद नेटवर्क समस्या के चलते उनका पक्ष मालूम नहीं हो सका। दरअसल बीआईएस की जवाबदेही को लेकर कारोबारियों ने भी सवाल उठाए थे, लिहाजा ‘यूटर्न टाइम’ ने उनका भी पक्ष रखने का प्रयास किया था।
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