ट्रंप की नई नीति से पहले देश में बड़ी चुनौती
भारत के लिए टमाटर नई समस्या बन रहा है, दरअसल टमाटर के दाम आसमान छूने लगे हैं। जिसके चलते खाना भी महंगा होने लगा है। इसने भारतीय रिजर्व बैंक यानि आरबीआई की टेंशन भी बढ़ा दी है। दरअसल आरबीआई अर्थव्यवस्था में महंगाई को काबू करना चाहता है। जबकि टमाटर और प्याज समेत सब्जियों के बढ़ते दाम उसकी कवायद पर पानी फेरते दिख रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में टमाटर और प्याज की कीमतों में उछाल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों से भी बड़ी चिंता का विषय है। बढ़ती महंगाई को देखते हुए आरबीआई की ओर से अगली बैठक में ब्याज दरों में कटौती कर पाना मुश्किल होगा। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप की नीतियां आगे चलकर ग्लोबल ग्रोथ और सप्लाई चेन के लिए खतरा बन सकती हैं। हालांकि अभी आरबीआई के लिए सबसे बड़ी समस्या टमाटर है। पिछले महीने टमाटर के दाम 161% बढ़ गए, इसका कारण देर से और ज्यादा बारिश होना है। आलू और प्याज के दाम भी बढ़े हैं, इसने खाने-पीने का खर्च बढ़ा दिया है। क्रिसिल के मुताबिक अक्टूबर में घर का बना खाना यानि चावल, रोटी, दाल, सब्जी, सलाद, दही वगैराह पिछले 14 महीनों में सबसे महंगे हो गए। अमेरिकी चुनाव से पहले ही दिसंबर में आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम होती जा रही थी। लेकिन, अब महंगाई दर आरबीआई की सीमा 2%-6% से ज्यादा हो गई है।
लिहाजा, कई विशेषज्ञों का मानना है कि अप्रैल में अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कमी नहीं कर पाएगा। तब तक नए अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियों का असर भी दिखने लगेगा, खासकर एक्सचेंज रेट पर बड़ा असर होगा। नवभारत टाइम्स ने भी इस पर प्रमुखता से रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिसमें तंज किया गया है कि पहले टमाटर, फिर ट्रंप, दोनों ही चीजें आरबीआई के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। आरबीआई कब और कितनी जल्दी अर्थव्यवस्था को मदद दे पाएगा, यह देखना होगा। महंगाई और आमदनी में कमी से ग्राहकों की खरीदारी कम हो रही है, खासकर बड़े शहरों में। डॉलर मजबूत हो रहा है, इस तिमाही में विदेशी निवेशकों यानि एफआईआई ने भारतीय शेयर बाजार से 13 अरब डॉलर से ज्यादा निकाल लिए हैं। अगर महंगाई कम होने के बाद ग्लोबल ट्रेड वॉर छिड़ती है तो भारतीय ब्याज दरों में कमी से पूंजी का पलायन और बढ़ सकता है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद टैरिफ की दीवार खड़ी की जाएगी। इससे दुनियाभर में उत्पादन नेटवर्क में गड़बड़ी पैदा हो सकती है। इन टैरिफ से अमेरिकी ग्राहकों के लिए चीजें महंगी होंगी। इससे फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती धीमी कर सकता है। चीन के निर्यातकों पर अगर ज्यादा बुरा असर पड़ता है तो इससे भारत को फायदा हो सकता है। हालांकि चीन अपनी मुद्रा युआन को डॉलर के मुकाबले कमजोर होने देता है तो भारत को होने वाला यह फायदा ज्यादा समय तक नहीं रहेगा। रिपोर्ट कहती है कि व्यापार को लेकर सख्त रुख रखने वाले ट्रंप भारत को भी नहीं छोड़ेंगे। यह मानने के कई कारण हैं कि नई अमेरिकी सरकार अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए भारत पर दबाव डालेगी। साल 2019 में ट्रंप ने दशकों पुरानी ‘जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज’ के तहत भारत से कुछ ड्यूटी-फ्री आयात में कटौती कर दी थी। इसका कारण यह था कि भारत ने अमेरिका को अपने बाजार में ‘न्यायसंगत और उचित’ पहुंच नहीं दी थी। यह तो बस एक छोटा सा झटका था। इस बार दांव और ऊंचे हैं।
रिपोर्ट में एलन मस्क का उदाहरण दिया गया है। ट्रंप ने सरकारी कार्यकुशलता के एक नए विभाग का सह-प्रमुख नियुक्त किया है। मस्क की कंपनी ‘स्पेसएक्स’ की सहायक कंपनी ‘स्टारलिंक इंक’ भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं देना चाहती है। इसके लिए ‘स्टारलिंक इंक’ भारत सरकार से शुल्क तय करने का अनुरोध कर रही है। भारत सरकार इस विचार से सहमत दिख रही है। हालांकि मुकेश अंबानी और सुनील भारती मित्तल जैसे बड़े उद्योगपति इसका विरोध कर रहे हैं। वे सैटेलाइट और टेरेस्ट्रियल मोबाइल स्पेक्ट्रम के बीच समानता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिस्पर्धी नीलामी की मांग कर रहे हैं। कुल मिलाकर भारत के सामने यह बड़ी आर्थिक चुनौती खड़ी है।
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