कुमार कृष्णन
मधुमेह रोग पिछले कुछ दशकों में बड़ा स्वास्थ्य जोखिम बनकर उभरा है। बच्चों से लेकर युवा और वयस्कों से लेकर बुजुर्गों तक सभी उम्र के लोग इस रोग के शिकार पाए जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में 500 मिलियन (50 करोड़) से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और अगले 30 वर्षों में यह संख्या दोगुनी से अधिक अर्थात 130 करोड़ तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है।
14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है, क्योंकि इस बीमारी के उपचार के लिए इंसुलिन के आविष्कारक फ्रेडरिक बंटिंग की जन्म तिथि भी 14 नवंबर ही है। बंटिंग और चार्ल्स बेस्ट ने मिलकर इंसुलिन का आविष्कार किया था। राष्ट्रीय मधुमेह माह हर वर्ष नवंबर माह को घोषित किया गया है ताकि न केवल देशभर बल्कि पूरे विश्व में इससे बचाव के लिए संवाद किया जा सके और लोगों की जीवन शैली में बदलाव के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
मधुमेह एक तरह की स्थायी बीमारी है जिसमें जीवन भर उपचार की जरूरत पड़ती है, इसके कारण मरीज और उसके परिवार पर आर्थिक भार पड़ता है। मधुमेह की बीमारी कई अन्य जटिल कारकों को भी साथ लाती है और यह महंगे साबित होते हैं। मधुमेह के दौरान हृदय रोगों की संभावना 21.4 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाती है। धमनी संबंधी रोग 17.5 प्रतिशत, अल्सर की संभावना 6.3 से 30 फीसदी, रेटिना संबंधी बीमारी 19.00 प्रतिशत और किडनी संबंधी रोगों की संभावना 26.3 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाती है।
मधुमेह वैश्विक और गैर-संचारी महामारी का रूप धारण कर चुका है। यह बीमारी विश्व की 6.6 फीसदी (285 मिलियन लोग) जनसंख्या को अपने घेरे में ले चुकी है जिनकी उम्र 20-79 वर्ष के बीच है। अंतरराष्ट्रीय मधुमेह फेडरेशन के अनुसार 2025 तक इसकी चपेट में संसार के 380 मिलियन लोग आ जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय मधुमेह फेडरेशन ने 2007 में अनुमान लगाया था कि संसार में सबसे ज्यादा मधुमेह रोगी (40.9 मिलियन) भारत में हैं। उसके बाद चीन (39.8 मिलियन), संयुक्त राज्य अमेरिका (19.2 मिलियन), रूस (9.6 मिलियन) और जर्मनी (7.4 मिलियन) का स्थान है।
भारत 40.9 मिलियन मधुमेह रोगियों के साथ विश्व में पहले स्थान पर है जो विश्व की 15 प्रतिशत जनसंख्या का हिस्सा है। यही नहीं, 2025 तक इसमें 70 मिलियन और रोगियों के जुड़ने की संभावना है। भारत में ग्लूकोज से परहेज नहीं कर पाना मधुमेह के लिए बहुत बड़ी समस्या है।
पिछले 10 वर्षों में विश्व स्तर पर और विशेष रूप से भारत में युवा आबादी के बीच टाइप 2 मधुमेह के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि के प्रमुख कारण बदलती लाइफस्टाइल के बीच एक्सरसाइज न करना और जंक फूड की बढ़ती खपत को माना जा रहा है। विश्व में भारत को डायबिटीज की राजधानी माना जाता है। युवा वयस्कों में टाइप 2 मधुमेह के प्रसार में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। अध्ययनों से पता चलता है कि 20-40 आयु वर्ग के लोगों में इसके मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके पीछे वंशानुगत और जीवन शैली में आए बदलाव, कैलोरी की मात्रा भोजन में बढ़ जाना और व्यायाम से दूर भागती पीढ़ी, किशोरों में मधुमेह रोग के प्रमुख कारण है। इसके महामारी का रूप धारण करने के पीछे वही सब कारण हैं जो विश्व के विकसित देशों में प्रचलित हैं। जैसे अंधाधुंध शहरीकरण, कैलोरी की खपत बढ़ना, मोटापा बढ़ना, फास्ट फूड का बढ़ता चलन । दूसरी ओर, शारीरिक श्रम वाले कार्यों में आ रही कमी और सेवा क्षेत्र की नौकरियों में बढ़ोतरी, वीडियो गेम्स का बढ़ता चलन, टेलीविजन और कम्प्यूटर जिससे लोग घंटों चिपककर बैठे रहते हैं, मधुमेह रोग का आमंत्रण देते है। संतोष की बात यह है कि गरीब ग्रामीण भारतीयों में यह बीमारी नहीं फैल रही पर अमीर भारतीयों के लिए यह एक गंभीर समस्या बन रही है। शहरी क्षेत्रों में स्थित झुग्गी-झोपडि़यों के निवासियों में भी यह रोग फैल रहा है, इसलिए अब यह कहा जाने लगा है कि मधुमेह केवल अमीरों और बड़े लोगों की ही बीमारी नहीं रह गई है। अब यह उच्च मध्य वर्ग, मध्य वर्ग यहां तक कि गरीबों को भी अपनी चपेट में ले रही है। भारतीयों में टाइप-2 डायबिटीज तेजी से बढ़ रहा है।
हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिट्स (आईसीएमआरइंडियाबी) के अध्ययन से पता चला है कि हर दसवें भारतीय को डायबिटीज है। देश में 101 मिलियन मधुमेह रोगी और 136 मिलियन प्री-डायबिटिक लोग रहते हैं। इसके कारण हार्ट और किडनी पर बुरा असर पड़ रहा है।
युवाओं में टाइप 2 मधुमेह के संभावित लक्षणों में बार-बार यूरिन आना, अधिक प्यास लगना, अत्यधिक भूख लगना, बिना कारण वजन कम होना, पुरानी थकान, धुंधली दृष्टि, धीमी गति से घाव भरना और बार-बार संक्रमण होना शामिल है। ये लक्षण बढ़े हुए रक्त शर्करा के स्तर का संकेत दे सकते हैं।
इस तरह खतरे की घंटी को देखते हुए भारत सरकार सातवीं पंचवर्षीय योजना (1987) में राष्ट्रीय मधुमेह नियंत्रण कार्यक्रम बनाने पर मजबूर हो गई थी। बजट की कमी के कारण तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक के कुछ जिलों में यह कार्यक्रम रोकना पड़ा था। हालांकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर-संचारी रोगों की विकरालता को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2008 में राष्ट्रीय मधुमेह, हृदयघात रोग नियंत्रण एवं बचाव कार्यक्रम की शुरूआत की थी। भारत सरकार ने 2010 में राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम में ही मधुमेह, हृदयाघात, धमनी रोग नियंत्रण कार्यक्रम को एक साथ मिला दिया था।
सरकार डायबिटीज की रोकथाम के लिए कई कार्यक्रम भी चला रही है। भारत सरकार ने डायबिटीज मरीजों के लिए एम डायबिटीज एप भी बनाया हुआ है। नेशनल हेल्थ पोर्टल के जरिए डायबिटीज से संबंधित जानकारियां लोगों तक पहुंचाई जाती है। गैर संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सरकारी अस्पतालों में डायबिटीज मरीजों के लिए जांच भी निशुल्क है।
भारत सरकार का स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हिस्से के रूप में डायबिटीज की रोकथाम के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
आयुष्मान भारत के तहत देश के सभी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में 30 साल से अधिक उम्र वालों की निशुल्क डायबिटीज जांच की जाती है। एनएचएम के तहत डायबिटीज मरीजों को इंसुलिन और डायबिटीज की अन्य दवाएं निशुल्क दी जाती हैं। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना के तहत भी डायबिटीज की दवाएं कम कीमत में दी जाती हैं। 1987 में राष्ट्रीय मधुमेह नियंत्रण कार्यक्रम भी शुरू किया गया था। जिसके तहत कई राज्यों को डायबिटीज की रोकथाम के लिए धन राशि आवंटित की जाती है।
आईसीएमआर की रिपोर्ट के बाद जल्द ही कोई कमेटी बनाई जा सकती है। जिसका काम देश में डायबिटीज की रोकथाम पर केंद्रित होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, भविष्य में डायबिटीज पर बनने वाली किसी भी नीति के लिए आईसीएमआर की रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा। इसके आधार पर डायबिटीज की रोकथाम के लिए कुछ नए कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। फिलहाल सरकार स्वास्थ्य बजट का 5 से 10 फीसदी हिस्सा डायबिटीज के इलाज और रोकथाम में खर्च कर रही है।
डायबिटीज की रोकथाम के लिए सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा दे रही है। केंद्र सरकार मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहित कर रही है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि मोटे अनाज से डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है।
आईसीआरआईएसएटी में स्मार्ट फूड इनिशिएटिव ने इस पर एक रिसर्च भी की है, जिसमें बताया गया है कि बाजरा खाने से शुगर लेवल में 12 से 15 फीसदी तक की कमी आती है। इससे प्री डायबिटीज स्टेज में एचबीए1सी में 15 फीसदी तक की गिरावट देखी गई है।
सरकार की अपील और मोटे अनाज के असर को देखते हुए देश में 150 से ज्यादा स्टार्टअप मोटे अनाज की खपत को बढ़ाने के लिए काम कर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोगों से डाइट में मोटे अनाज को शामिल करने की अपील की है। एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. स्वप्निल जैन कहते हैं कि डायबिटीज की रोकथाम के लिए मोटा अनाज काफी फायदेमंंद है।
गेंहू की तुलना में ये शरीर में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। लोगों को मौसम के हिसाब से अपनी डाइट में मोटा अनाज शामिल करना चाहिए। जो लोग मोटे अनाज का सेवन कर रहे हैं उनमें शुगर लेवल भी कंट्रोल में दिख रहा है।
नई दिल्ली में सन 2011 में भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त रूप से यह तय किया था कि राष्ट्रीय मधुमेह कार्यक्रम की निरंतर निगरानी करते हुए इसे आगे बढ़ाना है।
इस कार्यक्रम की सफलता के लिए यह जरूरी है कि लोग अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएं और स्वस्थ जीवन शैली का अनुसरण करें। इसके तहत खान-पान पर ध्यान, शारीरिक श्रम को बढ़ावा देना, तम्बाकू, शराब के सेवन से दूर रहना और आत्म संयम बरतना, ये ऐसे कारक हैं जो मधुमेह की बीमारी से हमें दूर रखने में सहायक साबित होते हैं।
पद्मभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का दावा है कि योग के द्वारा मधुमेह पर काबू पाया जा सकता है। मुंगेर स्थित बिहार योग विद्यालय में रसगुल्ला खिलाकर मधुमेह के मरीजों की विदाई होती है। बिहार योग विद्यालय मुंगेर ने इस क्षेत्र में लगातार अनुसंधान किए है। डॉ. स्वामी शंकरदेवानंद सरस्वती, एमबी, बीएस (सिडनी ) के अनुसार
सितंबर 1982 में कानपुर में आयोजित मधुमेह और अस्थमा शिविर योग की क्षमता को बेहतर ढंग से समझने की दिशा में एक कदम था। यह क्लिनिकल और अनुसंधान दोनों स्तरों पर एक बेहद सफल आयोजन था। कोर्स पूरा करने वाले सभी मधुमेह रोगियों में दवाएँ बंद करने के बाद उनके रक्त शर्करा के स्तर में कमी पाई गई। शिविर का आयोजन लायंस क्लब, कानपुर सिटी द्वारा किया गया और जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर के प्राचार्य ने निकट सहयोग प्रदान किया। मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर केके सिक्का और फिजियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एस. वर्मा ने परियोजना के अनुसंधान पक्ष का आयोजन किया, जबकि बिहार स्कूल ऑफ योग के डॉ. स्वामी शंकरदेवानंद ने कक्षाएं लीं और योगिक और चिकित्सा पक्षों को सह संबद्ध किया। यह शिविर यह तय करने के लिए आयोजित किया गया था कि भविष्य में अनुसंधान और शिविरों को अधिकतम लाभ के लिए कैसे चलाया जाएगा। इस शिविर में 30 रोगियों ने खुद को मधुमेह से पीड़ित बताया और जांच के बाद, 14 रोगियों में मधुमेह का सकारात्मक इतिहास पाया गया। इन 14 मरीजों में से 3 ने कोर्स पूरा नहीं किया।
शिविर शुरू होने के समय सभी वयस्क मधुमेह रोगी थे और 9 लोग दवा ले रहे थे। इन 9 लोगों में से 4 में अभी भी रक्त शर्करा का स्तर बढ़ा हुआ दिखा।
कोर्स की शुरुआत में सभी रोगियों ने अपनी दवाएँ बंद कर दीं और अपना मधुमेह आहार जारी रखा। उपवास और भोजन के बाद (भोजन के डेढ़ घंटे बाद) रक्त शर्करा का स्तर मापा गया। उन्होंने एक पाठ्यक्रम शुरू किया जिसमें निम्नलिखित अभ्यास शामिल थे। इन्हें पवनमुक्तासन भाग एक और दो, सूर्य नमस्कार, शशांकासन, उष्ट्रासन और वज्रासन,नाड़ी शोधन, ब्रह्मारी और उज्जायी, लघु शंखप्रक्षालन, कुंजल और नेति के अभ्यास के साथ ही साथ योग निद्रा और सरल अजपा जप के अभ्यास कराए गए।
दो सप्ताह के पाठ्यक्रम के अंत में, उपवास और भोजन के बाद रक्त शर्करा के स्तर को फिर से मापा गया। सभी ने इस पाठ्यक्रम के बाद व्यक्तिपरक कल्याण और तनाव, सिरदर्द और पाचन रोगों जैसे लक्षणों से मुक्ति की अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। मरीजों में जाँच के बाद अंतर पाया गया।वर्तमान में मधुमेह रोगियों के लिए, यहां तक कि जो लोग काफी हद तक नियंत्रित हैं, उनके लिए भी स्थिति बहुत खराब है। उन्हें अंधापन, हृदय और गुर्दे की बीमारी, अंगों का विच्छेदन और सामान्यीकृत दुर्बलता और थकान का सामना करना पड़ता है जो अपने आप में जीवन को दयनीय बना देता है। चिकित्सकों की दुविधाओं में से एक यह है कि हमें रोगियों को उनके पूर्वानुमान के बारे में कितना बताना चाहिए। यह स्थिति इसलिए मौजूद है क्योंकि, हमारे पास इसके इलाज का कोई तरीका नहीं है और हमें बीमारी को कम करने से ही संतुष्ट रहना पड़ता है ताकि मधुमेह की जटिलताओं को कम से कम किया जा सके। हम जानते हैं कि वे 99% मामलों में कुछ हद तक घटित होंगे और अक्सर हम रोगी को डराना नहीं चाहते हैं और उसके जीवन को भविष्य के लिए चिंता नहीं बनाना चाहते हैं।रोगियों को पूरी तरह से शिक्षित न करने की एक समस्या यह है कि वे आहार संबंधी निर्देशों की अवहेलना करते हैं और दवाओं का पालन नहीं करते हैं। मधुमेह के शुरुआती चरणों में यह समझ में आता है क्योंकि अक्सर बीमारी हल्की होती है और मधुमेह रोगियों को दर्द नहीं होता है या डॉक्टरों के अनुचित अनुरोधों का पालन करने के लिए कोई अन्य प्रोत्साहन नहीं मिलता है। बाद में जटिलताएँ उत्पन्न होने पर उन्हें अपनी मूर्खता पर पछतावा हो सकता है। इसलिए, रोगी को अनुपालन के लिए डराने की कोशिश करना एक उचित तर्क है।
डॉक्टरों की उपलब्ध तकनीकों में योग को शामिल करने से मधुमेह के उपचारात्मक पक्ष में एक नया द्वार खुल गया है। चूंकि योग अधिकांश मधुमेह रोगियों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प है, विशेष रूप से परिपक्वता की शुरुआत वाले मधुमेह के जटिल मामलों में, और शरीर के वजन को नियंत्रित करने की एक सिद्ध विधि के रूप में, इसे उपरोक्त श्रेणी के सभी मधुमेह रोगियों को अपनाया जाना चाहिए। यह रोगी के लिए उचित है क्योंकि आज तक ऐसा कोई अन्य तरीका ज्ञात नहीं है जो शर्करा चयापचय को इतनी तेजी से प्रभावित करने में सक्षम हो जितना योग ने दिखाया है कि यह कर सकता है। यदि रोगी के पास सुधार होने या कम से कम अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने की सबसे कम संभावना है, तो उसे यह विकल्प पेश किया जाना चाहिए। कोई भी समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। उचित आहार, चिकित्सा और योगिक नियंत्रण के बिना रोगी को उसके रोग का निदान बताना, रोगी को स्वयं की जिम्मेदारी लेने और स्वयं की मदद करने के प्रयास में आवश्यक हो सकता है। इससे डॉक्टर का काम भी आसान हो जाएगा।
अंत में, यही कहा जा सकता है कि हमेशा खतरे की घंटी की तरह बजने वाले मधुमेह रोग से जीतने का सुगम मार्ग यह है कि हम सभी स्तरों पर अपनी जीवन शैली को बदल दें। सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर इससे निपटने के लिए बहुत प्रयास किया है जो सराहनीय है लेकिन जरूरी यह है कि सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू किया जाए। जानकारी और परहेज इस बीमारी से बचने का सबसे उतम मार्ग है।
(विनायक फीचर्स)